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Ground Reality Of India First Village Mana : मैं माणा हूं…पहले देश का आखिरी और अब पहला गांव,

पहचान तो बदल गई लेकिन क्या सूरत भी बदली?

The News Air by The News Air
शुक्रवार, 22 मार्च 2024
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Ground Reality Of India First Village Mana,मैं माणा हूं...पहले देश का आखिरी और अब पहला गांव, पहचान तो बदल गई लेकिन क्या सूरत भी बदली? - ground reality of india first village mana by uttarakhand folk singer kishan mahipal​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​
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नई दिल्ली, 22 मार्च (The News Air) एक ऐसा गांव जहां से पांडवों ने स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी। एक ऐसा गांव जो हिमालय की पहाड़ियों से घिरा है। एक ऐसा गांव जहां के कण-कण में शुद्धता और स्वच्छता है। एक ऐसा गांव जिसके एक-एक पत्थर पर दैवीय शक्तियों का वास है। एक ऐसा गांव जिसने अपने सीने पर सदियों से सनातन धर्म की पौराणिक और सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखा है। एक ऐसा गांव जिसे देश का ‘आखिरी गांव’ कहा जाता था, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी की एक पहल ने उसे आखिरी से पहले पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया।

इतना परिचय देने के बाद आप समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं देश के पहले गांव ‘माणा’ की। उत्तराखंड में 3200 मीटर की ऊंचाई पर चमोली जिले में स्थित माणा गांव बद्रीनाथ से लगभग 3 किमी दूर है। यह खूबसूरत गांव भारत-चीन सीमा से 24 किमी दूर है। 21 अक्टूबर 2022 को माणा में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा माणा को भारत के अंतिम गांव के बजाय देश का पहला गांव कहे जाने पर मुहर लगाई थी। पीएम मोदी ने कहा था- ‘मेरे लिए तो बॉर्डर पर बसा हर गांव देश का पहला गांव है।’ देश का पहला गांव बनने के बाद माणा को देश और दुनिया में एक अलग पहचान मिली। जिस गांव के बारे में लोग दूर-दूर तक कुछ नहीं जानते थे, वो गांव पिछले डेढ़ साल से अचानक गूगल पर सर्च किए जाने लगा। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि माणा को देश के पहले गांव का दर्जा मिले करीब डेढ़ साल हो गए हैं उसके बावजूद अभी तक वहां स्वास्थ्य सुविधाओं का टोटा है।

‘…गोपेश्वर पहुंचने से पहले हिम्मत हार जाते हैं मरीज’ : एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में उत्तराखंड के फेमस लोक गायक किशन महिपाल ने माणा गांव के लोगों की तकलीफ से रूबरू करवाया। दरअसल किशन महिपाल का पैतृत्व गांव माणा हैं। महिपाल का इस गांव से काफी गहरा नाता है। वह अपने गांव के प्रति बेहद लगाव रखते हैं। महिपाल बताते हैं कि भले ही माणा को आखिरी से पहला गांव बने एक साल से ज्यादा का वक्त हो गया हो, लेकिन अभी तक वहां स्वास्थ्य सुविधाओं का बड़ा अभाव है। वह कहते हैं माणा गांव में कुछ विकास नहीं हुआ है। जैसा था वैसा ही है। महिपाल बताते हैं माणा गांव में 800- 900 परिवार रहते हैं। माणा गांव में कोई अस्पताल नहीं है। अगर किसी आदमी को अचानक हार्ट अटैक आ जाए तो उसे गोपेश्वर ले जाना पड़ता है। गोपेश्वर चमोली जिले का मुख्यालय है। माणा गांव और गोपेश्वर के बीच की दूरी 150 किलोमीटर है। वह कहते हैं कई बार गोपेश्वर पहुंचने से पहले ही आधे रास्ते में मरीज की मौत हो जाती है। उनका कहना है कि गांव के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की सबसे ज्यादा जरूरत है।

 

‘बी कॉम्प्लेक्स कैप्सूल के अलावा कुछ नहीं मिलता’ : वह बताते हैं माणा में एक सरकारी अस्पताल है वहां बी कॉम्प्लेक्स के कैप्सूल के अलावा और कुछ नहीं मिलता है। गांव में एक अच्छा मेडिकल स्टोर तक नहीं है। वह कहते हैं माणा गांव को देश के पहले गांव का दर्जा तो मिल गया है लेकिन अभी तक वहां टूरिस्ट के लिए होम स्टे तक की सुविधा नहीं है। ठीक से शौचालय तक नहीं हैं। ऐसे में कोई माणा गांव आकर क्या करेगा। उन्होंने कहा उत्तराखंड की धामी सरकार को माणा गांव की स्वास्थ्य और अन्य मूलभूत सुविधाओं का बेहतर करने के लिए तेजी से प्रयास करना चाहिए।

‘बद्रीनाथ हाईवे ठीक हुआ लेकिन इससे गांव को क्या फायदा हुआ?’ : किशन महिपाल बताते हैं माणा गांव बद्रीनाथ से मात्र 3 किलोमीटर दूर है। बद्रीनाथ में सबसे ज्यादा यात्री आते हैं। बद्रीनाथ हाईवे पहले से काफी ठीक है लेकिन इससे माणा के गांव को क्या फायदा हुआ। पहले से जैसा देखते आए हैं वैसा ही है सबकुछ, हमारे लिए तो आज भी वह आखिरी गांव है। वह बताते हैं कि बद्रीनाथ में आने वाले यात्रियों के लिए भी बेहतर स्वास्थ्य सुविधा नहीं हैं। ऑक्सीजन की कमी के चलते कई लोग बीमार पड़ जाते हैं। वह कहते हैं पीएम मोदी ने माणा गांव को देश में पहला स्थान दिया है। गांव के लोगों को काफी उम्मीद है कि आने वाले 4-5 सालों में गांव के हालात पहले से काफी बेहतर हो जाएंगे। सरकार से अनुरोध है गांव में विकास की गति तेज करें।

माणा गांव की ऐसी समस्या जो कभी सुर्खियां नहीं बनीं : वह बताते हैं माणा एक बॉर्डर एरिया है। वहां ग्राम पंचायत में अच्छा फंड आता है। ग्राम प्रधान ही विकास योजनाओं को देखते हैं। वहां सरकारी ठेकों पर कार्य नहीं होता है। वहां जो भी फंड आता है वह ग्राम पंचायत में आता है और सारा काम ग्राम प्रधान के माध्यम से ही होता है। वह बताते हैं कि ग्राम सभा माणा के अंदर पठिया, धंतौली, गजकोटी, इंद्रधारा जैसे छोटे -छोटे 4-5 गांव आते हैं। इन गांवों में कुल 40-50 परिवार रहते हैं। ताज्जुब की बात है कि इन गांवों के लोगों को माणा ग्राम सभा में वोट देने का अधिकार नहीं है। इन्हें ग्राम सभा की ओर से कहा जाता है कि आप गोपेश्वर में जाकर मतदान करो। माणा गांव के 800- 900 परिवार ही ग्राम सभा को चुनने के लिए मतदान करते हैं। बाकी गांवों की अनदेखी की जाती है। महिपाल बताते हैं कि लैंड स्लाइड जैसी प्राकृतिक आपदा आने के दौरान माणा ग्राम सभा के पास केंद्र और राज्य सरकार से बड़ा आपदा फंड आता है। लेकिन माणा गांव के अलावा माणा ग्राम सभा में आने वाले छोटे-छोटे गांवों के लोगों को कुछ मदद नहीं मिलती है। ऐसे में यह लोग अपने को लाचार और बेबस महसूस करते हैं। वह कहते हैं मैंने एक माणा का निवासी होने के नाता कई बार इन लोगों की बात को उठाने की कोशिश की। लेकिन मेरी आवाज सरकार तक नहीं पहुंच पाई। सरकार को माणा ग्राम सभा के दायित्वों के निर्धारण पर फिर से विचार करना चाहिए, जिससे किसी भी ग्रामीण का हक ना मरें।

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माणा में रहते हैं भोटिया जनजाति के 150 परिवार : समुद्रतल से 3219 मीटर की ऊंचाई पर सरस्वती नदी के किनारे बसे माणा गांव में भोटिया जनजाति के करीब 150 परिवार निवास करते हैं। यह गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ कई अन्य कारणों से भी अपनी अलग पहचान रखता है। इस गांव को भारत में ट्रेकिंग के लिए सबसे अच्छे स्थानों में से एक माना जाता है। उत्तराखंड के चार छोटे धाम तो आपने सुने ही होंगे, उसमें से एक है बद्रीनाथ। यहां से 3 किमी दूर माणा गांव है। जिला चमोली के इस गांव से 24 किमी दूर चीन की सीमा शुरू होती है। हिमालय की पहाड़ियों से घिरे इस गांव का इतिहास कई हजारों साल पुराना है।

स्वरोजगार की मिसाल है यह गांव : माणा गांव के ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय हाथ और मशीन से ऊनी वस्त्रों का निर्माण करना है। शीतकाल में ग्रामीण भेड़-बकरियों की ऊन निकालकर उनकी कताई करते हैं और तकली या मशीन से उसके तागे बनाते हैं। इसके बाद वे टोपी, जुराब, हाथ के दस्ताने, कोट, शॉल, दन्न, मफलर आदि उत्पाद तैयार करते हैं। ग्रामीण आलू, राई, गोभी का भी अच्छा उत्पादन करते हैं। यात्राकाल में बद्रीनाथ धाम के दर्शनों को पहुंचने वाले तीर्थयात्री माणा गांव के सैर-सपाटे पर पहुंचते हैं और गांव में ऊनी वस्त्रों की खरीदारी करते हैं। इसके साथ ही ग्रामीण औषधीय उत्पादों की बिक्री भी करते हैं। नवंबर से अप्रैल तक ठंड बढ़ने से ग्रामीण जनपद के निचले क्षेत्रों में चले जाते हैं। इसके बाद मई से अक्टूबर तक वे दोबारा अपने पैतृक गांव में रहते हैं।

महाभारत काल से जुड़ा है गांव का इतिहास : माणा गांव से जुड़ी आपको कई कहानियां सुनने को मिलेंगी, कहते हैं इस गांव का नाम ‘मणिभद्र आश्रम’ से लिया है। मणिभद्र यक्ष देवता को गांव का संरक्षक देवता भी माना करते थे। गांव के लोगों का कहना है कि इस गांव का इतिहास कई हजारों साल पुराना है। द्वापर युग मतलब महाभारत काल से भी इसका इतिहास जुड़ा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माणा वही गांव है जहां से पांडवों ने स्वर्ग का रास्ता तय किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडव जब स्वर्ग जा रहे थे, तब इसी गांव से निकले थे। पांडव जब स्वर्ग जा रहे थे, तब द्रौपदी भी उनके साथ थीं। पांडव सशरीर स्वर्ग जाना चाहते थे। उनकी इस यात्रा में एक कुत्ता भी साथ था। हालांकि, रास्ते में ही सब एक-एक करके गिरने लगे। सबसे पहले द्रौपदी गिरीं और उनकी मौत हो गई। फिर सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीम भी गिर पड़े। सिर्फ युधिष्ठिर ही आखिरी तक बचे। वो ही सशरीर स्वर्ग पहुंच सके। युधिष्ठिर के साथ जो कुत्ता था, वो यमराज थे। महाभारत से जुड़ा एक और किस्सा है। इस गांव में ‘भीम पुल’ भी बना है। माना जाता है कि इस पुल को भीम ने बनाया था। ये पुल असल में एक बड़ा सा पत्थर है, जो सरस्वती नदी के ऊपर बना है। भीम पुल इस गांव के अहम पर्यटन स्थलों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पांडव माणा गांव से स्वर्ग जा रहे थे, तब द्रौपदी को सरस्वती नदी पार करने में मुश्किल हो रही थी। तो ऐसे में भीम ने एक बड़ा सा पत्थर उठाकर यहां रख दिया। ये पत्थर ही पुल बन गया। द्रौपदी ने पुल के जरिए नदी को पार कर लिया। एक किवंदती ये भी है कि भीम पुल वही जगह है जहां वेदव्यास ने भगवान गणेश को महाभारत लिखवाई थी।

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