Brightcom Group के खिलाफ SEBI के अंतरिम आदेश के बारे में कई खबरें आ चुकी हैं। कंपनी और उसके प्रमोटर्स/डायरेक्टर्स की तरफ से अकाउंटिंग में बरती गई कथित अनियमितता पर सेबी ने ये आदेश दिए हैं। हालांकि, मार्केट रेगुलेटर के ये आदेश कुछ मजेदार और जटिल मसलों से जुड़े हैं। कम से कम अकाउंटिंग में अनियमितता से जुड़े अमाउंट के लिहाज से सेबी की तरफ से ऐसे आदेश पहली बार जारी किए गए हैं। इनमें से एक का संबंध इंडियन अकाउंटिंग स्टैंडर्ड्स (IndAS) की सेबी की डिटेल जांच से है। अकाउंटिंड से जुड़ी सेबी की इतनी डिटेल जांच पहले देखने को नहीं मिली थी।
मजेदार बात यह है कि इस जांच का संबंध किसी नए-एज की डिजिटल टेक कंपनी से है। यह ऐसी इंडस्ट्री है जिसकी अपनी जटिलताएं और अनिश्चितताएं हैं। स्पष्ट रूप से कहा जाए तो सेबी की तरफ से परेशान करने वाले कई आरोप लगाए गए हैं। इसलिए अकाउंटिंग को लेकर सेबी की चिंताएं गंभीर दिखती हैं। इसके बारे में कहा जा सकता है कि सेबी की जांच यह बताती है कि यह पूरा मामला क्या है।
लेकिन, उससे पहले यह ध्यान में रखना जरूरी है कि यह सेबी का अंतरिम आदेश है। इसका मतलब है कि इस मामले में सेबी की आगे भी जांच हो सकती है। इससे इस मामले में नया मोड़ आ सकता है। दूसरा, यह आदेश शो कॉज नोटिस की वजह से और स्ट्रॉन्ग हो जाता है। इसका मतलब है कि सेबी ने जो कुछ कहा है वह सिर्फ आरोप हैं, जिस पर BGL और दूसरे लोगों को अपने जवाब पेश करने के मौके हैं।
आखिर में, अगर आरोप की पुष्टि सेबी के अंतिम आदेश में हो भी जाती हो तो इसे अपील के जरिए चैलेंज किया जा सकता है। इन सब के बावजूद कुछ ऐसे डेवलपिंग एरियाज पर इस मसले की स्टडी हो सकती है, जिनके मायने फ्यूचर के लिए हो सकते हैं।
SEBI ने आरोप लगाया है कि BGL ने अकाउंटिंग में गड़बड़ियां की है। पहला, उसने करीब 1,000 रुपये के बड़े अमाउंट के impairment losses की अकाउंटिंग में देर की। इसका मतलब है कि पहले के सालों में हुए लॉसेज को उन सालों की अकाउंटिंग में शामिल नहीं किया गया। इन्हें काफी बाद में शामिल किया गया। दूसरा, सेबी ने कहा है कि इस तरह के impairment loss को गलत तरीके से किया गया। ऊपर की लाइन में अकाउंटिंग करने की जगह इसकी नीचे की लाइन में अकाउंटिंग की गई। इस वजह से उस साल ऑपरेशंस से हुए प्रॉफिट को दिखाने में गड़बड़ी हो सकती है।
तीसरा, यह वह मसला है, जो ज्यादा टेक्निकल हो जाता है। सेबी ने आरोप लगाया है कि जिस कैपिटलाइजेशन को दिखाया गया है वह वास्तव में एक्सपेंसेज था। सेबी ने कहा है कि रिसर्च एक्सपेंसेज को एक्सपेंसेज माना जाता है न कि एसेट। अगर एक्सपेंसेज को गलत तरीके से एसेट मान लिया जाए तो प्रॉफिट बढ़कर दिखता है। यहां तक कि एसेट्स को भी ज्यादा दिखाया गया है।
चौथा, आरोप लगाया गया है कि कथित impairment सब्सिडियरी कंपनियों में हुआ। BGL होल्डिंग कंपनी थी, जिसकी बुक्स में ये एसेट्स नहीं थे, लेकिन सब्सिडियरीज में इनवेस्टमेंट थे। होल्डिंग कंपनी बीजीएल को क्या और कब impairment करना चाहिए था और सब्सिडियरीज में इनवेस्टमेंट पर लॉस दिखाना चाहिए था, यह सबसे बड़ा सवाल है।
impairment को लेकर चिंता का संबंध यूरोप में प्राइवेसी नियमों में बदलाव से है। सेबी ने कहा है कि बीजीएल को न सिर्फ एक्सचेंजों को इस मैटेरियल डेवलपमेंट के बारे में बहुत पहले बताना चाहिए था बल्कि impairment losses को भी काफी पहले अकाउंटिं में शामिल करना चाहिए था। ये मसले ध्यान देने योग्य हैं, क्योंकि सेबी ने संभवत: पहली बार अकाउंटिंग के नए नियमों की पड़ताल की है।