Saudi Arabia vs UAE Conflict: मध्य पूर्व की भू-राजनीति में एक बड़ा भूचाल आ गया है। जो देश कल तक जिगरी दोस्त और एक-दूसरे की ढाल माने जाते थे, आज वही सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें खींचे खड़े हैं। सऊदी अरब ने यूएई को ’24 घंटे का अल्टीमेटम’ देते हुए साफ कह दिया कि यमन से अपनी सेना हटा लो, वरना अंजाम बुरा होगा। इस धमकी का असर ऐसा हुआ कि यूएई ने तुरंत अपने बचे हुए सैनिकों को वापस बुलाने का ऐलान कर दिया। लेकिन यह शांति की शुरुआत नहीं, बल्कि एक नए और खतरनाक संघर्ष की आहट है।
यमन बना अखाड़ा: क्यों भड़का सऊदी अरब?
तनाव की असल जड़ यमन का गृहयुद्ध है। सऊदी अरब ने आरोप लगाया कि यूएई यमन के दक्षिणी बंदरगाह शहर मुकल्ला के जरिए विद्रोहियों को हथियार और युद्ध वाहन सप्लाई कर रहा था। सऊदी खुफिया एजेंसियों का दावा है कि यूएई के फुजैरा बंदरगाह से आए जहाजों के ट्रैकिंग सिस्टम बंद थे और वे हथियार सीधे यूएई समर्थित अलगाववादी समूह ‘साउथर्न ट्रांजिशनल काउंसिल’ (STC) के लिए थे। सऊदी अरब को डर है कि ये हथियार उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं। इसी गुस्से में सऊदी गठबंधन ने मुकल्ला बंदरगाह पर हवाई हमले भी किए।
यूएई का यू-टर्न और अमेरिका की एंट्री
सऊदी के कड़े तेवर देख यूएई ने भले ही अपने सैनिक वापस बुला लिए हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। यूएई समर्थित एसटीसी (STC) अब भी यमन के कई अहम इलाकों पर कब्जा जमाए हुए है। यूएई ने कहा कि उसकी मौजूदगी सिर्फ आतंकवाद विरोधी मिशन तक सीमित थी, लेकिन सऊदी इसे अपनी सुरक्षा में सेंध मानता है। हालात बिगड़ते देख अमेरिका ने भी हस्तक्षेप किया है और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने दोनों देशों के नेताओं से बात कर शांति की अपील की है।
विश्लेषण: भारत के लिए खतरे की घंटी
संपादकीय विश्लेषण: एक वरिष्ठ संपादक के नजरिए से देखें तो यह संघर्ष भारत के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है। भारत अपनी तेल जरूरतों का 85% आयात करता है और सऊदी अरब व यूएई उसके सबसे बड़े सप्लायर हैं। अगर इन दोनों के बीच तनाव बढ़ता है, तो कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं, जिसका सीधा असर भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम और महंगाई पर पड़ेगा।
इसके अलावा, खाड़ी देश भारतीयों के लिए ‘दूसरा घर’ हैं। करीब 35 लाख भारतीय यूएई में और 25-30 लाख सऊदी अरब में काम करते हैं। अगर वहां हालात बिगड़ते हैं, तो इन लाखों भारतीयों की नौकरी और सुरक्षा पर खतरा मंडरा सकता है। भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती यह है कि वह न तो सऊदी को नाराज कर सकता है और न ही यूएई को, क्योंकि दोनों ही भारत के रणनीतिक साझेदार हैं। यह मोदी सरकार की विदेश नीति की अब तक की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा होगी।
आम आदमी पर असर
अगर खाड़ी में आग लगी, तो उसकी तपिश भारतीय रसोई तक पहुंचेगी। तेल महंगा होने से ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट बढ़ेगी, जिससे सब्जी, दूध और राशन सबकुछ महंगा हो जाएगा। साथ ही, खाड़ी देशों से आने वाला विदेशी मुद्रा भंडार (Remittances) भी प्रभावित हो सकता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
जानें पूरा मामला
क्या है पृष्ठभूमि: यमन में 2015 से गृहयुद्ध चल रहा है। शुरुआत में सऊदी अरब और यूएई ने मिलकर ईरान समर्थित हूति विद्रोहियों के खिलाफ गठबंधन बनाया था। लेकिन समय के साथ दोनों के हितों में टकराव आ गया। सऊदी अरब यमन की मान्य सरकार का समर्थन करता है, जबकि यूएई दक्षिणी अलगाववादियों (STC) का। अब यह ‘प्रॉक्सी वॉर’ खुलकर सामने आ गई है, जो पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर सकती है।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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Saudi Arabia ने यूएई को 24 घंटे में यमन छोड़ने का अल्टीमेटम दिया।
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धमकी के बाद UAE ने अपने सैनिकों की वापसी का ऐलान किया।
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सऊदी ने यमन के मुकल्ला बंदरगाह पर हवाई हमले किए।
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भारत की तेल आपूर्ति और लाखों भारतीयों की नौकरियों पर संकट के बादल।
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यह संघर्ष यमन के गृहयुद्ध को और भड़का सकता है।








