DIPAM Year End Review 2025: साल 2025 की विदाई के साथ ही वित्त मंत्रालय ने देश की आर्थिक सेहत को लेकर एक बेहद उत्साहजनक रिपोर्ट जारी की है। निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) की सालाना समीक्षा में यह सामने आया है कि सरकारी कंपनियों (CPSEs) ने लाभांश (Dividend) के जरिए सरकारी खजाने को उम्मीद से कहीं ज्यादा भर दिया है। यह रिपोर्ट बताती है कि सरकार की रणनीतिक विनिवेश और बेहतर प्रबंधन की नीतियों ने किस तरह सार्वजनिक संपत्ति की वैल्यू को कई गुना बढ़ा दिया है, जिससे न केवल सरकार बल्कि आम निवेशकों को भी फायदा हुआ है।
लक्ष्य से कहीं आगे निकला लाभांश का आंकड़ा
सरकार की यह रिपोर्ट उन आलोचकों के लिए एक जवाब है जो मानते थे कि सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने से सरकार की कमाई घट जाएगी। आंकड़ों की जुबानी कहानी कुछ और ही है। वित्त वर्ष 2024-25 में सरकार को सीपीएसई (CPSEs) से 55,000 करोड़ रुपये के लाभांश की उम्मीद थी, लेकिन असल में यह आंकड़ा 74,017 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
यह उछाल अचानक नहीं आया है। पिछले पांच सालों का ट्रेंड देखें तो वित्त वर्ष 2020-21 में जो लाभांश करीब 39,750 करोड़ रुपये था, वह अब लगभग दोगुना हो चुका है। इसका सीधा मतलब है कि सरकारी कंपनियां अब पहले से ज्यादा प्रोफेशनल और प्रॉफिटेबल तरीके से काम कर रही हैं।
मझगांव डॉक (MDL) से हुई मोटी कमाई
डीआईपीएएम (DIPAM) ने केवल लाभांश से ही नहीं, बल्कि शेयरों की बिक्री से भी बाजार में अपनी धाक जमाई। अप्रैल 2025 में, सरकार ने ‘मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड’ (MDL) में अपनी कुछ हिस्सेदारी ‘बिक्री प्रस्ताव’ (OFS) के जरिए बेची। इस सौदे में सरकार ने 3.61% शेयर बेचकर 3,673.42 करोड़ रुपये जुटाए। खास बात यह रही कि निवेशकों का भरोसा इतना ज्यादा था कि सरकार को ‘ग्रीन शू ऑप्शन’ (अतिरिक्त शेयर बेचने का विकल्प) का इस्तेमाल करना पड़ा। और सबसे दिलचस्प यह है कि शेयर बेचने के बाद कंपनी के शेयर गिरे नहीं, बल्कि और चढ़ गए, जिससे निवेशकों की भी चांदी हो गई।
संपादकीय विश्लेषण: ‘फैमिली सिल्वर’ को बेचने के बजाय चमकाने पर जोर
एक वरिष्ठ संपादक के तौर पर इस रिपोर्ट का विश्लेषण करें तो साफ दिखता है कि सरकार की रणनीति अब बदल गई है। पहले जहां सिर्फ विनिवेश (Disinvestment) पर जोर था, अब जोर ‘वैल्यू क्रिएशन’ (Value Creation) पर है। सरकार ने लाभांश की निगरानी के लिए एक ‘अंतर-मंत्रालयी मंच’ (CMC) बनाया है, जो यह सुनिश्चित करता है कि कंपनियां अपनी पूंजी को दबाकर न बैठें, बल्कि उसे शेयरधारकों और सरकार को लौटाएं। यह वित्तीय अनुशासन का एक बेहतरीन उदाहरण है। जब सरकारी कंपनियां अच्छा प्रदर्शन करती हैं, तो उसका सीधा असर राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) को कम करने पर पड़ता है, जो अंततः देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देता है।
आम आदमी पर क्या होगा असर?
शायद आप सोचें कि सरकारी कंपनियों के लाभांश से आम आदमी को क्या लेना-देना? दरअसल, यह पैसा सरकार के ‘गैर-कर राजस्व’ (Non-Tax Revenue) का बड़ा हिस्सा होता है। जब सरकार को अपनी कंपनियों से इतनी बड़ी रकम (74 हजार करोड़ से ज्यादा) मिलती है, तो उसे विकास कार्यों (सड़क, अस्पताल, स्कूल) के लिए आम जनता पर एक्स्ट्रा टैक्स लगाने की जरूरत कम पड़ती है। यह पैसा सीधे तौर पर देश के इंफ्रास्ट्रक्चर और कल्याणकारी योजनाओं में इस्तेमाल होता है।
जानें पूरा मामला
क्या है पृष्ठभूमि: निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM), वित्त मंत्रालय के तहत काम करता है। इसका मुख्य काम सरकारी कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी का प्रबंधन करना, विनिवेश करना और इन कंपनियों की वित्तीय सेहत पर नजर रखना है। 2025 की समीक्षा में विभाग ने यह भी बताया कि उसने क्षमता निर्माण आयोग के साथ मिलकर अधिकारियों को ट्रेनिंग दी है ताकि वे निवेशकों से बेहतर संवाद कर सकें।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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DIPAM की 2025 की समीक्षा में सीपीएसई लाभांश प्राप्ति ने सभी अनुमानों को पीछे छोड़ दिया।
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सरकार को 55,000 करोड़ के लक्ष्य के मुकाबले 74,017 करोड़ रुपये का लाभांश मिला।
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मझगांव डॉक में OFS के जरिए सरकार ने 3,673 करोड़ रुपये जुटाए।
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लाभांश में यह लगातार पांचवें साल वृद्धि दर्ज की गई है।
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सरकार अब अधिकारियों को ‘नेतृत्व और संचार कौशल’ की ट्रेनिंग भी दे रही है।








