Bangladesh Hindu Crisis India : भारतीय राजनीति में एक अभूतपूर्व घटना घट गई है जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के मुद्दे पर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक ही मंच पर खड़े दिखाई दे रहे हैं। संसद के भीतर पहली आवाज प्रियंका गांधी की आई, संसद के बाहर पहली आवाज आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की आई और मुख्यमंत्रियों की कतार में पहली आवाज योगी आदित्यनाथ की आई, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर की तरफ से पूर्ण खामोशी बरती जा रही है।
प्रियंका गांधी ने 10 दिन पहले उठाया था सवाल
16 दिसंबर को संसद में प्रियंका गांधी ने पहली बार बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया था। उन्होंने सीधे सवाल किया था कि बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यकों के साथ, जो हिंदुओं और ईसाइयों के साथ अत्याचार हो रहा है, उसके खिलाफ सरकार को आवाज उठानी चाहिए और बांग्लादेश की सरकार के साथ बातचीत करनी चाहिए।
प्रियंका ने कहा था कि अगर इसी तरीके से खामोशी बरती गई तो अंतरराष्ट्रीय मंच पर बांग्लादेश को लेकर जो भारत ने लड़ाई लड़ी उसका कोई मतलब नहीं बचेगा। लेकिन 10 दिन बीत जाने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
योगी आदित्यनाथ का तीखा बयान
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेश पाकिस्तान नहीं बना होता तो इस तरीके से हिंदू नहीं जलाया जाता और अगर जलाता तो फिर उसकी क्या दुर्गति होती यह भी जानता।
योगी ने विपक्ष पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वहां लोग मारे जा रहे हैं लेकिन कुछ लोग बोलते नहीं हैं। गांजा के मुद्दे पर कैंडल मार्च निकालते हैं लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश में जब हिंदू मारा जाता है तो मुंह बंद हो जाते हैं क्योंकि मरने वाला हिंदू है, दलित है। उन्होंने निंदा प्रस्ताव पारित करने की मांग की।
एक पत्थर से कई निशाने
योगी आदित्यनाथ का यह बयान कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है। उनके जहन में कांग्रेस है, समाजवादी पार्टी है, इन दोनों का गठबंधन है और वोट बैंक की सोच है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि इस वक्त देश चाह रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी बोलें और एक्शन में आएं, लेकिन वह एक्शन में नहीं आ रहे हैं।
यह समझना जरूरी है कि योगी आदित्यनाथ के पीछे संघ परिवार खड़ा है। देश के किसी और मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा लेकिन योगी ने कहा। यह अपने आप में एक संदेश है।
10 साल पहले और 10 दिन पहले का फर्क
एक क्षण के लिए 10 साल पहले की बात याद कीजिए। 25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान से लौटते हुए अचानक पाकिस्तान जाने का फैसला किया था। उस दिन नवाज शरीफ का जन्मदिन था, जिन्ना का जन्मदिन था, क्रिसमस का दिन था और अटल बिहारी वाजपेई का भी जन्मदिन था।
प्रधानमंत्री मोदी ने नवाज शरीफ को फोन किया और पूछा कि क्या वह लाहौर में रुक सकते हैं। उस वक्त उनके साथ एनएसए अजीत डोभाल और विदेश सचिव एस जयशंकर थे जो आज विदेश मंत्री हैं। उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि “जंग को अब जंग लग गई, अब जंग नहीं होगी।”
यानी 10 साल पहले प्रधानमंत्री मोदी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कई कदम आगे थे, लेकिन आज बांग्लादेश के मुद्दे पर पूरी खामोशी है।
विदेश मंत्रालय का रुख
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि बांग्लादेश में हाल के घटनाक्रमों पर भारत की नजर है और वे लगातार इसे देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ जो हो रहा है, जिसमें हिंदू, ईसाई और बौद्ध शामिल हैं, वह गंभीर चिंता का विषय है।
विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत बांग्लादेश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी चुनाव का समर्थन करता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ इतना कहना काफी है जब वहां हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं?
बांग्लादेश की बदलती तस्वीर
जिस बांग्लादेश को भारत ने अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर जन्म दिया था, वही बांग्लादेश अब पाकिस्तान के करीब जाकर खड़ा हो रहा है। उसकी आर्थिक और सामरिक नीतियां पाकिस्तान के साथ गलबहियां डालकर खड़ी हो चुकी हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान भी 17 साल बाद बांग्लादेश लौट आए हैं। 2008 में भ्रष्टाचार के आरोपों में वह लंदन भाग गए थे। अब वह कह रहे हैं कि उनके पास एक रोडमैप है जो नया बांग्लादेश बनाएगा।
पाकिस्तान-बांग्लादेश की नजदीकी
पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश के सामरिक संबंध मजबूत हो रहे हैं। यह सिर्फ आर्थिक मुद्दे नहीं बल्कि हथियार और सेना का साथ खड़ा होना भी शामिल है। यानी जो लड़ाई बांग्लादेश बनाने के लिए लड़ी गई थी, वह 360 डिग्री घूमकर वहीं आ खड़ी हुई है।
अमेरिका की रिपोर्ट और चीन का खेल
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट में खुले तौर पर कहा गया है कि अगर भारत चीन के करीब जाता है तो यह बड़ी भूल होगी। इस रिपोर्ट में लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का जिक्र है और बताया गया है कि चीन इसका लाभ उठा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार चीन अपनी तीन फैसिलिटीज में 10 से ज्यादा इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल लोड कर रहा है। दक्षिण चीन सागर, सेनकाकू द्वीप के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश को लेकर भी चीन गंभीर रुख अपना रहा है। चीन पाकिस्तान को लड़ाकू विमान दे रहा है और दोनों देशों के रिश्ते लगातार गहरा रहे हैं।
2049 तक चीन का लक्ष्य
अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन 2049 तक चीनी राष्ट्र का महान पुनरुद्धार हासिल करते हुए अमेरिका को भी दरकिनार करेगा। वह अपनी एक वर्ल्ड क्लास सेना खड़ी करेगा जो लड़ सके और जीत सके। और उसकी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास के मायने में भारत के क्षेत्रों को भी प्रभावित करेगी।
बंगाल और असम चुनाव का प्रभाव
केंद्र सरकार की खामोशी के बीच यह याद रखना जरूरी है कि बंगाल में अगले 3 महीने के भीतर चुनाव होने हैं और असम में भी चुनाव होने हैं। बांग्लादेश का यह मुद्दा इन चुनावों को सीधे प्रभावित करेगा।
बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता बंगाल में प्रदर्शन कर रहे हैं और हाथों में भगवा झंडा लेकर निकल रहे हैं। यह एक संदेश है कि दिल्ली की खामोशी के बावजूद इस अंतरराष्ट्रीय प्रभाव का असर बंगाल के चुनाव पर पड़ेगा।
क्रिसमस पर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल
देश के भीतर क्रिसमस के मौके पर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की भूमिका अलग-अलग जगहों पर नजर आई। इसने सरकार से यह सवाल किया कि क्या कानून का राज नहीं है? एक तरफ देश के भीतर अल्पसंख्यकों (ईसाइयों) पर हमले हो रहे हैं और दूसरी तरफ बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार पर खामोशी है।
संघ और मोदी सरकार के बीच टकराव
यह पूरा मामला संघ और मोदी सरकार के बीच एक नए टकराव की ओर इशारा करता है। हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर जो संघ अभी भी पालना-पोसना चाहता है, उसे मौजूदा मोदी सरकार नहीं समझ पा रही है कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को साधते हुए हिंदुत्व के सवाल पर कैसे आगे बढ़ें।
दूसरी तरफ राहुल गांधी लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी विचारधारा को लेकर सीधे संघ को घेर रहे हैं और संघ के आश्रित प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोल रहे हैं।
संघ के सहयोगी संगठनों का भविष्य
एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या संघ के सामने अपने अस्तित्व का संकट है? क्रिसमस के वक्त बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद जिस तरह उभरे, क्या आने वाले वक्त में किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, आदिवासी कल्याण आश्रम जैसे तमाम संगठन भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ेंगे?
अगर ऐसा हुआ और सरकार की खामोशी फिर भी रही तो इसका मतलब एक ही होगा कि संघ हाशिए पर चला जाए, यह मौजूदा मोदी सरकार की भी जरूरत है।
क्या है पृष्ठभूमि
बांग्लादेश की स्थापना इंदिरा गांधी के दौर में हुई थी जब पूर्वी पाकिस्तान के रूप में वह था और उसका व्यापक असर उत्तरपूर्वी राज्यों पर पड़ रहा था। तब से लेकर अभी तक बांग्लादेश के साथ भारत के रिश्ते स्ट्रैटेजिक तौर पर सहयोगी के रूप में रहे। लेकिन इस वक्त के हालात बिल्कुल अलग हैं। बांग्लादेश की नई परिस्थिति न सिर्फ नॉर्थ ईस्ट को प्रभावित करती है बल्कि संघ की उस राजनीतिक सोच और विचारधारा पर भी सीधा हमला करती है जो हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर रची गई है।
मुख्य बातें (Key Points)
- प्रियंका और योगी एक मंच पर: बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के मुद्दे पर पहली बार कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ एक ही स्टैंड पर दिखे।
- पीएम मोदी की खामोशी: 10 दिन से ज्यादा समय बीत गया लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर की तरफ से कोई ठोस बयान नहीं आया।
- बांग्लादेश-पाकिस्तान नजदीकी: जिस बांग्लादेश को भारत ने जन्म दिया वह अब पाकिस्तान के करीब जा रहा है और सामरिक संबंध मजबूत हो रहे हैं।
- संघ-मोदी सरकार टकराव: हिंदुत्व के मुद्दे पर संघ और मोदी सरकार के बीच अंतर्विरोध उभर रहा है, बंगाल और असम चुनाव इससे प्रभावित होंगे।
- अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का संकट: अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच जो नई गठबंधन बन रहे हैं उसमें भारत की स्थिति कठिन हो रही है।






