Rare Earth Permanent Magnet India : केंद्र सरकार ने शुक्रवार 27 दिसंबर 2025 को भारत में दुर्लभ मृदा स्थायी चुंबक (Rare Earth Permanent Magnet – REPM) के स्वदेशी उत्पादन के लिए 7,280 करोड़ रुपये की एक ऐतिहासिक योजना को मंजूरी दे दी है। इस पहल के तहत देश में सालाना 6,000 मीट्रिक टन चुंबक बनाने की क्षमता विकसित की जाएगी, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

चीन पर 81% निर्भरता होगी खत्म
भारत की स्थायी चुंबकों के मामले में चीन पर निर्भरता चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुकी थी। आधिकारिक व्यापार आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 से 2024-25 के दौरान भारत के स्थायी चुंबक आयात का 81.3 प्रतिशत हिस्सा चीन से आता था और मात्रा के आधार पर यह निर्भरता 90.4 प्रतिशत तक पहुंच गई थी।
यह स्थिति न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि रणनीतिक सुरक्षा के लिहाज से भी खतरनाक थी, क्योंकि ये चुंबक रक्षा उपकरणों और एयरोस्पेस प्रणालियों में अनिवार्य रूप से इस्तेमाल होते हैं। अब इस नई योजना से भारत इस निर्भरता से मुक्त होने की दिशा में आगे बढ़ेगा।
क्या होते हैं दुर्लभ मृदा स्थायी चुंबक?
आरईपीएम यानी रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट दुनिया के सबसे शक्तिशाली स्थायी चुंबकों में से हैं। इनकी खासियत यह है कि ये छोटे आकार में भी अत्यधिक चुंबकीय शक्ति देते हैं और लंबे समय तक स्थिर रहते हैं।
इन चुंबकों का उपयोग कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में होता है जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहनों की मोटर, पवन टरबाइन जनरेटर, उपभोक्ता और औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोस्पेस और रक्षा प्रणालियां तथा सटीक सेंसर और एक्चुएटर। आज के दौर में जब भारत स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर तेजी से बढ़ रहा है, इन चुंबकों की स्वदेशी आपूर्ति बेहद जरूरी हो गई थी।
योजना की प्रमुख विशेषताएं
इस महत्वाकांक्षी योजना को सात वर्षों में लागू किया जाएगा। पहले दो वर्ष एकीकृत आरईएम सुविधाओं की स्थापना के लिए होंगे और उसके बाद पांच वर्ष तक बिक्री से जुड़े प्रोत्साहन का वितरण किया जाएगा।
कुल 7,280 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय में से 6,450 करोड़ रुपये बिक्री-आधारित प्रोत्साहन के रूप में आवंटित किए गए हैं जो पांच वर्षों में दिए जाएंगे। इसके अलावा उन्नत और एकीकृत आरईएम विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना के लिए 750 करोड़ रुपये की पूंजीगत सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
पांच कंपनियों को मिलेगा मौका
इस योजना की एक खास बात यह है कि कुल 6,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष की क्षमता को वैश्विक प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से अधिकतम पांच लाभार्थियों के बीच बांटा जाएगा। प्रत्येक लाभार्थी 1,200 मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक के उत्पादन के लिए पात्र होगा।
इस व्यवस्था से न केवल पर्याप्त पैमाने पर उत्पादन सुनिश्चित होगा बल्कि विविधीकरण भी होगा, जिससे किसी एक कंपनी पर निर्भरता नहीं रहेगी और आपूर्ति श्रृंखला मजबूत बनेगी।
भारत में दुर्लभ मृदा खनिजों का विशाल भंडार
भारत के पास दुर्लभ मृदा खनिजों का समृद्ध संसाधन आधार उपलब्ध है, जो इस योजना की सफलता की बुनियाद बनेगा। देश के कई तटीय और अंतर्देशीय क्षेत्रों में मोनाजाइट के भंडार पाए जाते हैं।
आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 13.15 मिलियन टन मोनाजाइट की उपस्थिति का अनुमान है, जिसमें से लगभग 7.23 मिलियन टन दुर्लभ मृदा ऑक्साइड (REO) निहित है। ये संसाधन आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड, गुजरात और महाराष्ट्र में स्थित तटीय रेतीले टीलों, लाल रेतीले टीलों और अंतर्देशीय जलोढ़ क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
इसके अलावा गुजरात और राजस्थान के कठोर चट्टानी क्षेत्रों में लगभग 1.29 मिलियन टन इन-सीटू आरईओ संसाधनों की पहचान की गई है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने अतिरिक्त 482.6 मिलियन टन दुर्लभ मृदा अयस्क संसाधनों का भी आकलन किया है।
2030 तक दोगुनी होगी मांग
भारत में आरईपीएम की मांग तेजी से बढ़ रही है और अनुमान है कि यह 2030 तक दोगुनी हो जाएगी। इसके पीछे कई कारण हैं जिनमें इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का विस्तार, नवीकरणीय ऊर्जा का बढ़ता उपयोग, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में तेजी और रणनीतिक अनुप्रयोगों में वृद्धि प्रमुख हैं।
ऐसे में घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करने और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत बनाने के लिए स्वदेशी विनिर्माण क्षमता का विकास समय की मांग बन गया था।
आत्मनिर्भर भारत और नेट जीरो 2070 से जुड़ाव
यह योजना कई राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाती है और सरकार की व्यापक रणनीति का अभिन्न हिस्सा है। दुर्लभ मृदा चुंबक ऊर्जा-कुशल मोटरों, पवन ऊर्जा प्रणालियों और अन्य हरित प्रौद्योगिकियों में व्यापक रूप से उपयोग होते हैं, इसलिए यह पहल देश के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन और नेट जीरो 2070 लक्ष्य से सीधे जुड़ी हुई है।
साथ ही घरेलू स्तर पर आरईएम का उत्पादन राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता दोनों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इन चुंबकों का उपयोग रक्षा और एयरोस्पेस प्रणालियों में होता है।
राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन से तालमेल
जनवरी 2025 में अनुमोदित राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) का उद्देश्य महत्वपूर्ण खनिजों की दीर्घकालिक और टिकाऊ आपूर्ति सुनिश्चित करना है। यह मिशन खनिज अन्वेषण और खनन से लेकर प्रसंस्करण और पुनर्प्राप्ति तक के सभी चरणों को शामिल करता है।
आरईपीएम योजना इसी मिशन के साथ तालमेल में काम करेगी और महत्वपूर्ण खनिजों की मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने में योगदान देगी।
खनन कानून में सुधार से मिला बल
खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 के माध्यम से खनन क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किए गए हैं। इस संशोधन से खनिज अन्वेषण के सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहन मिला है।
सरकार को खनिज रियायतों की नीलामी का अधिकार प्राप्त हुआ है और एक नई अन्वेषण लाइसेंस प्रणाली की शुरुआत हुई है। इन सुधारों से दुर्लभ मृदा खनन और प्रसंस्करण में तेजी आने की उम्मीद है।
विदेशों में खनिज अधिग्रहण के प्रयास
भारत ने महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते किए हैं। खान मंत्रालय ने ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, जाम्बिया, पेरू, जिम्बाब्वे, मोजाम्बिक, मलावी और कोटे डी आइवर जैसे खनिज समृद्ध देशों के साथ साझेदारी की है।
खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) अर्जेंटीना जैसे देशों में लिथियम और कोबाल्ट सहित रणनीतिक खनिज संपदाओं की विदेशी खोज और अधिग्रहण में लगी हुई है। यह कंपनी नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (MECL) का संयुक्त उद्यम है।
आम आदमी पर क्या होगा असर?
इस योजना का सीधा फायदा आम भारतीयों को भी मिलेगा। जैसे-जैसे स्वदेशी उत्पादन बढ़ेगा, इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें कम हो सकती हैं क्योंकि उनकी मोटर में इस्तेमाल होने वाले चुंबक सस्ते मिलेंगे।
पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा उपकरणों की लागत में भी कमी आ सकती है, जिससे बिजली की दरें स्थिर रहेंगी या कम हो सकती हैं। साथ ही इस योजना से हजारों रोजगार के अवसर पैदा होंगे, खासकर उन राज्यों में जहां दुर्लभ मृदा खनिजों के भंडार हैं।
विकसित भारत @2047 की ओर कदम
यह योजना भारत को वैश्विक उन्नत सामग्री उत्पादक बाजार में एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। घरेलू क्षमता स्थापित करके और डाउनस्ट्रीम संबंधों को मजबूत करके यह पहल रोजगार सृजन, औद्योगिक क्षमता वृद्धि और आत्मनिर्भर भारत तथा विकसित भारत @2047 के दृष्टिकोण को साकार करने में सहायक सिद्ध होगी।
क्या है पृष्ठभूमि
दुर्लभ मृदा धातुओं और स्थायी चुंबकों की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में कई बार व्यवधान आए हैं, जिन्होंने इन रणनीतिक संसाधनों तक सुरक्षित और विविध पहुंच की आवश्यकता को स्पष्ट किया। चीन पर अत्यधिक निर्भरता और भू-राजनीतिक तनाव ने भारत जैसे देशों के लिए स्वदेशी क्षमता विकसित करना अनिवार्य बना दिया। भारत खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP), हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा (IPEF) और महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (iCET) जैसे बहुपक्षीय मंचों में भी सक्रिय भागीदारी कर रहा है।
मुख्य बातें (Key Points)
- 7,280 करोड़ की योजना मंजूर: सरकार ने दुर्लभ मृदा स्थायी चुंबक के स्वदेशी उत्पादन के लिए बड़ी योजना को हरी झंडी दी, जिसमें 6,450 करोड़ बिक्री प्रोत्साहन और 750 करोड़ पूंजीगत सब्सिडी शामिल।
- चीन पर निर्भरता खत्म होगी: वर्तमान में 81.3% आयात चीन से होता है, अब 6,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष की स्वदेशी क्षमता से यह निर्भरता कम होगी।
- रणनीतिक क्षेत्रों को फायदा: इलेक्ट्रिक वाहन, पवन ऊर्जा, रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण चुंबक अब देश में ही बनेंगे।
- पांच कंपनियों को मौका: वैश्विक बोली प्रक्रिया से अधिकतम पांच लाभार्थी चुने जाएंगे, प्रत्येक 1,200 मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक उत्पादन कर सकेंगे।
- सात वर्षों में लागू होगी: दो वर्ष सुविधा स्थापना और पांच वर्ष प्रोत्साहन वितरण के लिए।






