Cancer Cases in India 2025: भारत में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और यह चिंता का विषय बन गया है क्योंकि जहां दुनियाभर में कैंसर से होने वाली मौतों की दर में कमी आ रही है वहीं भारत में इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक साल 2023 में भारत में कैंसर के 14 से 15 लाख मामले रिपोर्ट हुए और 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई। मणिपाल हॉस्पिटल के कैंसर विशेषज्ञ डॉ. सुरिंदर कुमार दबास के अनुसार यह आंकड़ा वास्तव में 10 गुना तक ज्यादा हो सकता है क्योंकि देश के दूरदराज इलाकों में बहुत से मामले रिपोर्ट ही नहीं होते।
देश के जाने-माने ऑनकोलॉजिस्ट डॉ. सुरिंदर कुमार दबास जो मणिपाल कॉम्प्रिहेंसिव कैंसर सेंटर एंड ऑनको रोबोटिक सर्जरीज नॉर्थ वेस्ट क्लस्टर के चेयरमैन हैं, उन्होंने कैंसर के बढ़ते मामलों के पीछे के कारणों, इससे बचाव के तरीकों और आधुनिक इलाज के बारे में विस्तार से जानकारी दी है जो हर इंसान के लिए जानना बेहद जरूरी है।
नॉर्मल सेल्स कैंसर सेल्स में कैसे बदलते हैं?
हमारे शरीर में जो नॉर्मल सेल्स होते हैं उनकी एक कंट्रोल्ड ग्रोथ होती है जिसका मतलब है कि सेल बनते भी हैं और टूटते भी हैं और यह पूरा मैकेनिज्म हमारे डीएनए के जरिए कंट्रोल होता है। लेकिन जब किसी कारण से डीएनए में बदलाव आता है जिसे म्यूटेशन कहते हैं तो सेल की ग्रोथ अनकंट्रोल्ड हो जाती है और सेल्स असामान्य होने लगते हैं। यही अनकंट्रोल्ड और असामान्य सेल ग्रोथ धीरे-धीरे कैंसर सेल्स में बदल जाती है।
डॉ. दबास बताते हैं कि डीएनए में यह बदलाव कई कारणों से हो सकता है जिनमें से कुछ कारण ऐसे हैं जिन्हें हम बदल सकते हैं यानी मॉडिफाई कर सकते हैं और कुछ ऐसे हैं जो हमारे कंट्रोल में नहीं हैं। अगर लंबे समय तक इन कारणों के संपर्क में रहें तो सेल्स में बदलाव होना शुरू होता है, डीएनए में म्यूटेशन आती है, फिर सेल की अनकंट्रोल्ड ग्रोथ होती है और यही कैंसर सेल्स में बदल जाती है।
कैंसर के मुख्य कारण जिन्हें बदला जा सकता है
कैंसर के जो कारण हमारे कंट्रोल में हैं उनमें सबसे ऊपर आता है लाइफस्टाइल और बिहेवियरल चेंजेस यानी जीवनशैली और व्यवहार में बदलाव। इसके अलावा ऑक्यूपेशनल और एनवायरमेंटल एक्सपोजर भी एक बड़ा कारण है जैसे अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसी फैक्ट्री में काम करता है जहां आर्सेनिक, एस्बेस्टस या बेंजीन जैसे केमिकल्स का इस्तेमाल होता है तो उसे लंग कैंसर या ब्लड कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
लाइफस्टाइल की बात करें तो इसमें स्मोकिंग, अल्कोहल, फिजिकल इनक्टिविटी यानी शारीरिक गतिविधि की कमी, मोटापा और डाइट में प्रोसेस्ड मीट, रेड मीट का ज्यादा सेवन तथा फल और सब्जियों की कमी शामिल है। तंबाकू चाहे किसी भी रूप में लिया जाए चाहे स्मोकिंग हो या चबाना, यह सिर से लेकर पैर तक हर तरह के कैंसर का कारण बन सकता है।
इंफेक्शन से भी होता है कैंसर
कुछ इंफेक्शन भी कैंसर का कारण बनते हैं जिनमें सबसे प्रमुख है हेपेटाइटिस बी और सी जो लिवर कैंसर का कारण बनते हैं। इसके अलावा एचपीवी यानी ह्यूमन पेपिलोमा वायरस एक ऐसा वायरस है जो थ्रोट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर और एनल कैंसर का कारण बन सकता है। यह वायरस ओरल सेक्स, एनल सेक्स और मल्टीपल पार्टनर्स के जरिए फैलता है।
डॉ. दबास बताते हैं कि एचपीवी वायरस के लिए वैक्सीन उपलब्ध है और यही एकमात्र कैंसर वैक्सीन है जो आज के समय में उपलब्ध है। इसके अलावा जो रूसी वैक्सीन या अन्य कैंसर वैक्सीन की बातें होती हैं वो अभी प्रमाणित नहीं हैं। अमेरिका में थ्रोट कैंसर बहुत कॉमन है और इसका मुख्य कारण ओरल सेक्स के जरिए एचपीवी इंफेक्शन है।
जेनेटिक कारण सिर्फ 5 से 10 प्रतिशत
कैंसर के कुछ जेनेटिक कारण भी होते हैं जो जन्म से आते हैं या जन्म के बाद भी जेनेटिक्स में बदलाव हो सकता है। लेकिन डॉ. दबास स्पष्ट करते हैं कि जेनेटिक फैक्टर्स 5 से 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होते, बाकी सभी कारण ऐसे हैं जिन्हें हम बदल सकते हैं और जिनमें लाइफस्टाइल सबसे बड़ा कारण है।
यह समझना जरूरी है कि कैंसर मल्टीफैक्टोरियल है यानी एक नहीं बल्कि कई कारण मिलकर कैंसर का कारण बनते हैं। अगर आपके पास कम कारण हैं तो कैंसर होने की संभावना कम है और अगर ज्यादा कारण हैं तो संभावना ज्यादा है। इसलिए जितने कारणों को आप अवॉइड कर सकते हैं करना चाहिए।
भारत में कैंसर क्यों बढ़ रहा है?
डॉ. दबास बताते हैं कि जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वो अंडर रिपोर्टिंग हैं क्योंकि यह डाटा वही है जो हॉस्पिटल्स आईसीएमआर को सबमिट करते हैं। देश के दूरदराज के गांवों में जहां हेल्थ केयर की सुविधा नहीं है वहां लोगों को पता भी नहीं चलता कि उन्हें कैंसर है। ब्लड कैंसर में तो महीने भर में मौत हो जाती है और जब तक लोग हेल्थ केयर तक पहुंचते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसलिए अगर 1 लाख में 100 का आंकड़ा बताया जा रहा है तो वास्तव में यह 1000 के आसपास हो सकता है।
भारत में कैंसर बढ़ने के पीछे कई कारण हैं। पहला है लाइफस्टाइल में बदलाव जिसमें जनरेशन दर जनरेशन डाइट बदल रही है। अब हम वेस्टर्न डाइट पर आ गए हैं जिसमें मीट, प्रोसेस्ड मीट, सैचुरेटेड फैट ज्यादा है और फल, सब्जियां, सैलेड कम हो गया है। टोबैको और अल्कोहल का सेवन भी बढ़ा है खासकर टीनएजर्स में। फिजिकल इनक्टिविटी यानी शारीरिक गतिविधि की कमी सबसे बड़ा कारण बन रही है जो मोटापे को जन्म दे रही है।
मोटापा कैंसर का बड़ा कारण
मोटापा कई तरह के कैंसर का कारण बनता है जिसमें ब्रेस्ट कैंसर, एंडोमेट्रियल कैंसर यानी यूट्रस का कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर प्रमुख हैं। डॉ. दबास एक चौंकाने वाला आंकड़ा बताते हैं कि आज भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाई ऑगमेंट है जिसकी महीने में करीब 90 करोड़ की सेल है और दूसरे नंबर पर एक साल के अंदर ही ओजंपिक नाम की वेट रिडक्शन दवाई आ गई है जिसकी मंथली सेल 88 करोड़ है। यह दर्शाता है कि देश में मोटापा कितनी बड़ी समस्या बन चुका है।
बेरिएट्रिक सर्जरी यानी मोटापा कम करने की सर्जरी जिसके बारे में पहले कभी नाम भी नहीं सुना जाता था वह आज बहुत आम हो गई है। यह सब फिजिकल इनक्टिविटी और खराब खानपान का नतीजा है जो अंततः कैंसर के मामले बढ़ा रहा है।
प्रदूषण और रेडिएशन का खतरा
प्रदूषण चाहे इनडोर हो या आउटडोर, लंग कैंसर का एक बड़ा कारण है। इसके अलावा रेडिएशन एक्सपोजर भी कैंसर का कारण बनता है। डॉ. दबास बताते हैं कि लो डोज रेडिएशन एक्सपोजर कैंसर का कारण बनता है और यह बिल्डिंग मटेरियल से, जमीन से निकलने वाली रेडॉन गैस से और पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक रेडिएशन से हो सकता है।
जापान और कोरिया में जहां न्यूक्लियर इंसिडेंट हुआ था वहां 50-60 साल बाद भी थायराइड कैंसर बहुत कॉमन है। इसी तरह पहाड़ी इलाकों जैसे नेपाल, नॉर्थ ईस्ट, कश्मीर में युवा लड़कियों में थायराइड कैंसर बहुत देखने को मिलता है क्योंकि वहां रेडिएशन एक्सपोजर ज्यादा है।
मोबाइल और लैपटॉप से कैंसर का सच
बहुत से लोग सोचते हैं कि मोबाइल या लैपटॉप से कैंसर हो सकता है। डॉ. दबास बताते हैं कि जब 2003 में मोबाइल आया था तब बहुत स्टडी हुई कि क्या मोबाइल से ब्रेन ट्यूमर का कोई संबंध है। स्टडीज में यह साबित नहीं हो पाया लेकिन किसी भी चीज को कैंसर से जोड़ने के लिए 20 से 30 साल का समय चाहिए। यह जरूर प्रमाणित है कि लो डोज रेडिएशन एक्सपोजर कैंसर का कारण बनता है।
एक्सरे और सीटी स्कैन भी लो डोज रेडिएशन का स्रोत हैं। पहले एक्सरे और सीटी स्कैन इतने कॉमन नहीं थे लेकिन अब कहीं भी जाओ तुरंत एक्सरे और सीटी स्कैन करा दिया जाता है। इसलिए बिना जरूरत के ये टेस्ट नहीं कराने चाहिए और किसी एक्सपर्ट की राय लेनी चाहिए।
मैमोग्राफी कब करानी चाहिए?
डॉ. दबास एक महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं कि ब्रेस्ट कैंसर नॉर्मली 40 साल की उम्र के बाद कॉमन होता है। अगर 30 साल की महिला ब्रेस्ट चेकअप के लिए जाती है तो उसे मैमोग्राफी की जरूरत नहीं है क्योंकि यंग महिलाओं के ब्रेस्ट डेंस होते हैं और मैमोग्राफी उनमें मदद नहीं करती। इसके बजाय अल्ट्रासाउंड ब्रेस्ट या एमआरआई ब्रेस्ट बेहतर है।
मैमोग्राफी में रेडिएशन एक्सपोजर होता है जबकि अल्ट्रासाउंड और एमआरआई में ऐसा नहीं है। 40-45 साल से पहले मैमोग्राफी का कोई रोल नहीं है और इससे पहले ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीन करवाना है तो अल्ट्रासाउंड या एमआरआई बेहतर विकल्प है।
दो लोगों में एक को कैंसर क्यों होता है?
यह सवाल बहुत आम है कि दो लोग एक जैसी जिंदगी जीते हैं, दोनों शराब पीते हैं, सिगरेट पीते हैं, अनहेल्दी खाना खाते हैं लेकिन एक को कैंसर होता है और दूसरे को नहीं। डॉ. दबास बताते हैं कि हर इंसान के शरीर की संरचना अलग होती है। किसी को शराब की दो पैग से असर होता है तो किसी को चार पैग से भी नहीं होता।
इसमें इम्यून सिस्टम, डाइजेस्टिबिलिटी और हॉर्मोनल बैलेंस जैसे फैक्टर काम करते हैं। जो व्यक्ति एडिक्शन में नहीं है उसके कैंसर होने के चांस उससे कम हैं जो एडिक्शन में है, लेकिन एडिक्शन वाले लोगों में भी चांस अलग-अलग हो सकते हैं।
हेल्दी लोगों को भी क्यों होता है कैंसर?
कुछ लोग सब कुछ सही करते हैं – हेल्दी खाना खाते हैं, एक्सरसाइज करते हैं, शराब-सिगरेट नहीं पीते फिर भी उन्हें कैंसर हो जाता है। डॉ. दबास बताते हैं कि ऐसे मामलों में जेनेटिक म्यूटेशन जिम्मेदार होती है। यह म्यूटेशन रेडिएशन एक्सपोजर से हो सकती है जो बिल्डिंग मटेरियल, जमीन या बार-बार होने वाले एक्सरे और सीटी स्कैन से मिलती है।
इसके अलावा एचपीवी वायरस भी एक कारण है। आजकल ओरल कैंसर उन महिलाओं में भी देखने को मिल रहा है जो न गुटखा खाती हैं न स्मोकिंग करती हैं। यह एचपीवी वायरस के कारण थ्रोट कैंसर है।
नॉन स्मोकर्स में लंग कैंसर क्यों बढ़ रहा है?
लंग कैंसर अब उन लोगों में भी देखने को मिल रहा है जो स्मोकिंग नहीं करते, खासकर महिलाओं में। डॉ. दबास बताते हैं कि इसके पीछे तीन मुख्य कारण हैं – प्रदूषण, पैसिव स्मोकिंग और जेनेटिक डिफेक्ट। ईजीएफआर नाम का एक जीन है जिसकी म्यूटेशन एडिनोकार्सिनोमा नाम की लंग कैंसर की वैरायटी में पाई जाती है जो नॉन स्मोकर्स और खासकर महिलाओं में ज्यादा होती है।
महिलाओं में पैसिव स्मोकिंग ज्यादा होती है जो किचन के धुएं से, गैस से या एक्टिव स्मोकर पार्टनर से होती है। ज्यादातर किचन वेल वेंटिलेटेड नहीं होते और ओपन किचन नहीं होते जिससे धुएं की कंसंट्रेशन ज्यादा होती है। चिमनी लगाने से इसमें काफी मदद मिलती है।
छुपे हुए कार्सिनोजन जिनके बारे में हमें पता नहीं
डॉ. दबास कुछ ऐसे कार्सिनोजन के बारे में बताते हैं जिनके बारे में आम लोगों को जानकारी नहीं है। प्लास्टिक मटेरियल इनडाइजेस्टेबल होता है और अगर इसका एक्सपोजर हो रहा है तो यह गट फ्लोरा यानी पेट के बैक्टीरिया को बदलता है जो कोलोरेक्टल कैंसर का कारण बन सकता है।
हेयर डाई और हेयर स्ट्रेटनिंग में फॉर्मेल्डिहाइड नाम का केमिकल यूज होता है जो स्किन से अब्सॉर्ब होता है और हॉर्मोंस को चेंज करता है। अमेरिका की एक स्टडी के अनुसार जो महिलाएं ज्यादा हेयर स्ट्रेटनिंग करती हैं उनमें ब्रेस्ट कैंसर का इंसिडेंस ज्यादा है क्योंकि यह केमिकल फैट को एस्ट्रोजन हॉर्मोन में कन्वर्ट करता है जो ब्रेस्ट कैंसर का कारण बनता है।
प्लास्टिक की बोतल और पैकेज्ड फूड का सच
प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से कैंसर होता है इसका कोई सीधा एविडेंस नहीं है लेकिन जो इनडाइजेस्टेबल प्लास्टिक मटेरियल खाने में मिला होता है वह खतरनाक है। पैकेज्ड फूड में कई बार छोटे-छोटे प्लास्टिक फाइबर्स दिखते हैं जो एडल्टरेशन है और यह कभी पेट में नहीं पचते।
नॉन स्टिक बर्तनों में एक लेयर लगी होती है जो गर्म करने पर खाने में मिल जाती है। डॉ. दबास कहते हैं कि पहले जिस तरह खाना स्टोर होता था वह सही तरीका था। स्टील के बर्तन, कांसे के बर्तन में रिएक्शन नहीं होते थे। अब प्लास्टिक और नॉन स्टिक बर्तनों का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है जो सही नहीं है।
माइक्रोवेव में खाना गर्म करना कितना सही?
माइक्रोवेव में खाना गर्म करने के बारे में डॉ. दबास बताते हैं कि पहले जब खाना बनता था तो स्लो हीट से बनता था जिससे सारे न्यूट्रिएंट्स मेंटेन रहते थे। अब माइक्रोवेव में फास्ट हीटिंग होती है जिससे बेसिक चीजें भी खराब हो जाती हैं और प्रोसेसिंग भी बेहतर नहीं होती।
शुगर से भी होता है कैंसर
शुगर यानी चीनी से भी कैंसर का खतरा बढ़ता है लेकिन सीधे तौर पर नहीं। शुगर मोटापे का कारण बनती है और मोटापे से कोलोन कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और यूट्रस कैंसर होता है। जितनी जरूरत है उतनी शुगर तो लेनी है क्योंकि शरीर को ग्लूकोज चाहिए लेकिन अनवांटेड शुगर से बचना चाहिए।
स्ट्रेस और कैंसर का संबंध
स्ट्रेस यानी तनाव सीधे तौर पर कैंसर का कारण नहीं बनता लेकिन इनडायरेक्टली जरूर कनेक्टेड है। स्ट्रेस में इम्यून सिस्टम डाउन होता है जिससे इम्यून सेल्स कैंसर सेल्स से नहीं लड़ पाते। स्ट्रेस में एड्रिनलिन और कॉर्टिसोल हॉर्मोन ज्यादा बनते हैं जो ब्लड वेसल्स को बढ़ाते हैं जो कैंसर को स्प्रेड करने में मदद करती हैं।
डॉ. दबास बताते हैं कि जो मरीज स्ट्रेस में सर्जरी कराता है और जो बिना स्ट्रेस के कराता है उनकी रिकवरी में फर्क होता है। नेगेटिव माइंडसेट के साथ ऑपरेशन थिएटर जाने वाले की रिकवरी स्लो होती है जबकि पॉजिटिव एटीट्यूड वाले की बेटर होती है। यही नहीं, स्ट्रेस ट्रीटमेंट के असर को भी कम करता है।
कैंसर से बचाने वाली डाइट
कैंसर से बचाव में डाइट की बहुत बड़ी भूमिका है। डॉ. दबास बताते हैं कि फाइबर वाली डाइट लेनी चाहिए जिससे कॉन्स्टिपेशन नहीं होता और कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा कम होता है। आज 30 से 40 प्रतिशत लोग इनडाइजेशन और कॉन्स्टिपेशन की शिकायत करते हैं जिसका कारण सेडेंटरी लाइफस्टाइल और फाइबर वाली डाइट की कमी है।
फाइबर वाले फल में अमरूद सबसे ऊपर है खासकर इंडियन अमरूद जो फैंसी वाला नहीं है। केला सबसे स्टेबल फूड है जिसमें बहुत फाइबर है और महंगा भी नहीं है। संतरा, मौसमी में भी बहुत फाइबर है। सब्जियों में सारी ग्रीन वेजिटेबल्स, कॉलीफ्लावर और खासकर बंद गोभी में सबसे ज्यादा फाइबर है। आलू में कार्ब ज्यादा है जो मोटापे का कारण बनता है इसलिए इसे सीमित मात्रा में खाना चाहिए।
एंटीऑक्सीडेंट्स बहुत जरूरी
एंटीऑक्सीडेंट्स कैंसर से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मिर्च सबसे बड़ी एंटीऑक्सीडेंट है लेकिन आजकल बच्चे स्पाइसी फूड नहीं खाते। स्पाइसेस जरूरी हैं क्योंकि इनसे लार बनती है जिसमें अमाइलेज एंजाइम होता है जो खाना पचाने में मदद करता है। हल्दी भी एक बेहतरीन एंटीऑक्सीडेंट है लेकिन कितने लोग इसे यूज करते हैं।
डॉ. दबास कहते हैं कि हमारा फूड हैबिट पूरी तरह बदल गया है और हम वेस्टर्न डाइट पर आ गए हैं। जो पुराने इंग्रेडिएंट थे जैसे हल्दी, अदरक, मिर्च जो एक स्टेबल डाइट दे रहे थे वो अब नहीं रहे। इन्हें वापस अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए।
भारत में जागरूकता की कमी
भारत में कैंसर को लेकर जितनी जागरूकता होनी चाहिए उतनी नहीं है। लोग समय पर स्क्रीनिंग नहीं कराते, प्रिवेंटिव टेस्ट नहीं करवाते जिससे बीमारी देर से पकड़ में आती है। डॉ. दबास कहते हैं कि लोग सोचते हैं कि हेल्थ सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन अपनी सेहत अपनी जिम्मेदारी है।
सबसे बड़ी बात यह है कि कैंसर का कोई अर्ली सिम्टम नहीं होता। जब तक सिम्टम आते हैं तब तक आप एडवांस स्टेज में पहुंच चुके होते हैं। इसलिए सिम्टम से पहले चेकअप कराना जरूरी है जिसे स्क्रीनिंग कहते हैं। जैसे नई गाड़ी में 1000 किलोमीटर के बाद सर्विस करानी होती है वैसे ही 40 साल के बाद शरीर की भी सर्विस जरूरी है।
कौन से टेस्ट कराने चाहिए?
डॉ. दबास बताते हैं कि ब्लड टेस्ट से सारे कैंसर पता नहीं लगते, सिर्फ ब्लड कैंसर का पता लगता है। अलग-अलग कैंसर के लिए अलग टेस्ट हैं। ओरल कैंसर के लिए मुंह में कोई छाला है जो दो-तीन हफ्ते में ठीक न हो रहा हो तो स्पेशलिस्ट को दिखाना चाहिए। ब्रेस्ट के लिए सेल्फ एग्जामिनेशन जरूरी है और 40 से पहले अल्ट्रासाउंड, 40 के बाद मैमोग्राफी करानी चाहिए।
लंग कैंसर के लिए लो डोज सीटी स्कैन की एक्यूरेसी 50 से 70 प्रतिशत है जबकि एक्सरे की सिर्फ 40 प्रतिशत। कोलोरेक्टल कैंसर के लिए 40 साल के बाद कोलोनोस्कोपी करानी चाहिए और फिर हर 5 साल में। सर्वाइकल कैंसर के लिए पैप स्मियर टेस्ट है। ये सारे टेस्ट 5 से 6000 रुपये में हो जाते हैं।
कैंसर के वार्निंग साइन
कुछ वार्निंग साइन हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी है। आवाज में बदलाव जो दवाई या स्टीम से ठीक न हो रहा हो तो वोकल कॉर्ड कैंसर हो सकता है। ब्रेस्ट में गांठ या डिस्चार्ज, स्टूल या यूरिन में खून, पोस्ट मेनोपॉज ब्लीडिंग, नाक या मुंह से खून, थूक में खून – ये सब असामान्य है और डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
शरीर में कहीं भी गांठ हो तो चेक कराना चाहिए हालांकि हर गांठ कैंसर नहीं होती। कोई भी बदलाव जो दो-तीन हफ्ते में ठीक न हो रहा हो, डॉक्टर से मिलना चाहिए।
कौन से कैंसर तेजी से बढ़ रहे हैं?
भारत में जिन कैंसर में तेजी से उछाल आ रहा है उनमें लंग कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, एंडोमेट्रियल यानी यूट्रस कैंसर और फूड पाइप कैंसर शामिल हैं। ओरल कैंसर तो पहले से ही टॉप पर है। ब्रेस्ट और यूट्रस कैंसर मोटापे और फिजिकल इनक्टिविटी से, कोलोरेक्टल कैंसर खराब डाइट से और लंग कैंसर प्रदूषण और स्मोकिंग से बढ़ रहा है।
एसिडिटी को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। जब पेट का एसिड ऊपर फूड पाइप में आता है तो उसकी लेयर को जलाता है जिससे सेल चेंज होते हैं और कैंसर सेल्स में बदल सकते हैं। एच पाइलोराई नाम का बैक्टीरिया भी कैंसर का कारण बनता है।
कैंसर इलाज में नई टेक्नोलॉजी
कैंसर के इलाज में तीन मुख्य विभाग हैं – सर्जरी, रेडिएशन और कीमोथेरेपी। सर्जरी में अब रोबोटिक सर्जरी लेटेस्ट इनोवेशन है जिसमें ब्लड लॉस नहीं होता, रिकवरी जल्दी होती है, कैंसर क्लीयरेंस बेहतर होती है और कॉम्प्लिकेशन कम होते हैं। रोबोटिक सर्जरी में चार आर्म्स होते हैं और सर्जन दूर बैठकर सर्जरी करता है जिससे सब कुछ उसके कंट्रोल में रहता है।
रेडिएशन में प्रोटोन थेरेपी नई है जिसमें नॉर्मल एरिया को कम रेडिएशन लगती है लेकिन यह बहुत महंगी है। कीमोथेरेपी के अलावा अब टारगेट थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी आ गई है। टारगेट थेरेपी मुख्य रूप से कैंसर सेल्स पर असर करती है। इम्यूनोथेरेपी में हमारी इम्यून सेल्स को एक्टिवेट किया जाता है जो कैंसर सेल्स को खत्म करती हैं और इसके साइड इफेक्ट बहुत कम हैं।
कार्ट टी सेल थेरेपी और जीन थेरेपी
ब्लड कैंसर में कार्ट टी सेल थेरेपी नई है जो एक तरह की इम्यूनोथेरेपी है। इसमें टी सेल्स को एक्टिवेट करके कैंसर सेल्स को किल किया जाता है। भविष्य में जीन थेरेपी पर फोकस है जिसमें डिफेक्टिव जीन को आइडेंटिफाई करके करेक्ट किया जा सके।
दो साल पहले अमेरिका में एक स्टडी आई थी जिसमें स्टेज फोर के रेक्टम कैंसर को इम्यूनोथेरेपी से क्योर किया गया। कैंसर वैक्सीन पर भी रिसर्च चल रही है कि कैंसर होने के बाद भी वैक्सीनेशन से ठीक किया जा सके।
कैंसर इलाज महंगा क्यों है?
डॉ. दबास बताते हैं कि कैंसर का इलाज हर जगह उपलब्ध नहीं है और जहां है वहां प्राइवेट सेक्टर में है जो आम आदमी अफोर्ड नहीं कर सकता। गवर्नमेंट स्कीम्स हैं लेकिन उन्हें अवेल करने में टाइम लगता है। उनके 20-25 साल के करियर में उन्होंने देखा है कि लोग कैंसर का इलाज कराना चाहते हैं लेकिन पैसे की वजह से नहीं करा पाते।
10 प्रतिशत लोगों के पास भी हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है। अगर हेल्थ इंश्योरेंस हो तो इकोनॉमिक बर्डन नहीं रहता और आराम से प्राइवेट सेक्टर में इलाज करा सकते हैं। यह टू वे रिस्पॉन्सिबिलिटी है – एक आम आदमी की कि वो अपनी हेल्थ पर ध्यान दे, रेगुलर चेकअप कराए और दूसरी सरकार की कि ऐसी स्कीम लाए जिससे इलाज अफोर्डेबल हो।
मुख्य बातें (Key Points)
• मोटापा कैंसर का बड़ा कारण है – ब्रेस्ट, यूट्रस और कोलोरेक्टल कैंसर मोटापे से जुड़े हैं, फिजिकल एक्टिविटी और सही डाइट जरूरी है
• प्लास्टिक, हेयर डाई, नॉन स्टिक बर्तन – ये छुपे हुए कार्सिनोजन हैं जिनसे बचना चाहिए, स्टील के बर्तनों का इस्तेमाल बेहतर है
• 40 साल के बाद स्क्रीनिंग जरूरी – कैंसर का कोई अर्ली सिम्टम नहीं होता, जब सिम्टम आते हैं तब तक लेट हो चुका होता है
• फाइबर वाली डाइट और एंटीऑक्सीडेंट्स – अमरूद, केला, हरी सब्जियां, हल्दी, अदरक, मिर्च कैंसर से बचाव में मदद करते हैं
• हेल्थ इंश्योरेंस जरूरी है – कैंसर का इलाज महंगा है, बिना इंश्योरेंस के इलाज कराना मुश्किल है






