Brain Drain in India : भारत से हर साल 13 लाख से ज्यादा छात्र विदेश पढ़ने जा रहे हैं, जबकि विदेश से सिर्फ 46 हजार छात्र भारत आते हैं। नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट ने देश के हायर एजुकेशन सिस्टम की कड़वी सच्चाई सामने रख दी है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब संसद में विकसित भारत शिक्षा अधिनियम (VBSA Bill) पर बहस जारी है।
25:1 का चौंकाने वाला अनुपात
नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों ने दुनिया को आर्यभट्ट, शीलभद्र और धर्मपाल जैसे विद्वान दिए। लेकिन आज भारत का हायर एजुकेशन किस दिशा में जा रहा है, यह नीति आयोग की रिपोर्ट साफ बता रही है।
“इंटरनेशनलाइजेशन ऑफ हायर एजुकेशन इन इंडिया: प्रोस्पेक्ट्स, पोटेंशियल एंड पॉलिसी रेकमेंडेशन” नाम की इस रिपोर्ट के आंकड़े डराने वाले हैं।
2021-22 में भारत ने सिर्फ 46,878 अंतरराष्ट्रीय छात्रों को होस्ट किया। इसके मुकाबले 11.59 लाख भारतीय छात्र विदेश गए। 2024 तक यह आंकड़ा 13.36 लाख हो गया है।
सीधे शब्दों में कहें तो जब भारत के 25 छात्र विदेश पढ़ने जाते हैं, तब विदेश से सिर्फ 1 छात्र भारत आता है।
29,000 करोड़ का आउटफ्लो
ब्रेन ड्रेन का असर सिर्फ प्रतिभाओं के जाने तक सीमित नहीं है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत “स्टडीज अब्रॉड” कैटेगरी में आउटवर्ड रेमिटेंस में 2000% की बढ़ोतरी हुई है।
2013-14 में यह रकम 975 करोड़ रुपये थी। सिर्फ 10 साल बाद यह 29,000 करोड़ रुपये हो गई।
इसका मतलब है कि हर साल हजारों करोड़ रुपये भारत से बाहर जा रहे हैं। यह पैसा अगर देश में ही खर्च होता, तो यहां के शिक्षण संस्थान बेहतर बन सकते थे।
युवा देश का दर्द
भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है। यहां की औसत उम्र सिर्फ 28.4 साल है। लेकिन क्या भारत इस यंग पॉपुलेशन का फायदा उठा पा रहा है?
सबसे स्किल्ड छात्र, सबसे तेज दिमाग वाले बच्चे विदेश जा रहे हैं। इससे भारत का बेस्ट माइंड का यूटिलाइजेशन नहीं हो पा रहा।
रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर भी गहरा असर पड़ रहा है। जब बेहतरीन दिमाग बाहर चला जाएगा, तो यहां का इनोवेशन इकोसिस्टम कैसे मजबूत होगा? इंडीजीनस R&D इंटरनेशनल स्टैंडर्ड को मैच नहीं कर पा रहा।
कहां जाते हैं भारतीय छात्र?
रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय छात्रों की टॉप पसंद ये देश हैं:
- कनाडा
- अमेरिका
- यूनाइटेड किंगडम
- ऑस्ट्रेलिया
इन चारों देशों में मिलाकर लगभग 8 लाख भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि प्रतिशत के हिसाब से लातविया में सबसे ज्यादा भारतीय छात्र हैं – 17.4%।
कौन आता है भारत पढ़ने?
भारत में पढ़ने आने वाले छात्रों में सबसे ज्यादा नेपाल से हैं। इसके बाद अफगानिस्तान, अमेरिका, बांग्लादेश और यूएई का नंबर आता है। यह अपने आप में बहुत कुछ कहता है। विकसित देशों के छात्र भारत को पहली पसंद नहीं मान रहे।
ब्रेन ड्रेन की 4 बड़ी वजहें
पहली वजह – शिक्षा की घटती क्वालिटी: सेंट्रल यूनिवर्सिटीज के हॉस्टल्स की हालत खराब है। इंफ्रास्ट्रक्चर कमजोर है। क्लासरूम्स में स्मार्ट पैनल्स नहीं हैं। टीचर्स समय पर नहीं आते।
QS वर्ल्ड रैंकिंग में भारतीय संस्थान टॉप 100 में भी नहीं आते। ऐसे में जो अफोर्ड कर सकता है, वह बाहर क्यों नहीं जाएगा?
दूसरी वजह – कम एजुकेशन बजट: विकसित देश अपनी GDP का 6% से ज्यादा शिक्षा पर खर्च करते हैं। भारत में लेटेस्ट बजट में यह सिर्फ 4.5% है। खुद नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) ने कहा है कि कम से कम 6% होना चाहिए।
जो फंड मिलता भी है, उसका सही इस्तेमाल नहीं होता। करप्शन की समस्या अलग है।
तीसरी वजह – अच्छी नौकरियों की कमी: PhD करने के बाद भी लो-क्वालिटी जॉब ढूंढनी पड़ती है। टेक्निकल स्किल्स होने के बावजूद कंपनियां हायर नहीं करतीं। बेहतर अवसरों के लिए युवा विदेश सेटल होना चाहते हैं।
चौथी वजह – विदेशों की बेहतर व्यवस्था: दूसरे देश अच्छी स्कॉलरशिप दे रहे हैं। वे भारतीय छात्रों को अट्रैक्ट कर रहे हैं। जब विदेश में पढ़ाई आसान और सस्ती हो, तो छात्र वहीं जाएंगे।
रिपोर्ट के सुझाव
नीति आयोग की रिपोर्ट में कुछ समाधान भी सुझाए गए हैं:
- इंटरनेशनलाइजेशन एट होम
- एलुमिनाई कनेक्ट प्रोग्राम
- NIRF रैंकिंग के टॉप 100 संस्थानों में क्वालिटी सुधारना
नया हायर एजुकेशन बिल (VBSA) भी इसी दिशा में कदम है। इसका उद्देश्य है कि भारत का हायर एजुकेशन ग्लोबल स्टैंडर्ड पर आए।
सबसे ज्यादा नुकसान किसका?
एक नया ट्रेंड सामने आया है। पहले सिर्फ अमीर परिवार बच्चों को विदेश भेजते थे। अब मिडिल क्लास भी जैसे-तैसे पैसे जोड़कर बच्चों को बाहर भेज रहा है।
लेकिन इस पूरी व्यवस्था का सबसे ज्यादा नुकसान देश के मार्जिनलाइज्ड सेक्शन को हो रहा है। वंचित समुदाय के बच्चों के पास न विदेश जाने का विकल्प है, न देश में अच्छी शिक्षा का।
2047 का बड़ा सवाल
यह रिपोर्ट दो बड़े सवाल छोड़ जाती है:
पहला – क्या इस रिपोर्ट के बाद भारत का ब्रेन ड्रेन रुकेगा?
दूसरा – क्या हम अपने एजुकेशन सिस्टम को इतना सुधार पाएंगे कि 2047 तक भारत विकसित भारत बन सके?
विकसित भारत बनने के लिए सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर काफी नहीं है। अच्छी शिक्षा देना जरूरी है। अगर सबसे प्रतिभाशाली दिमाग देश छोड़कर जाते रहे, तो विकास का सपना कैसे पूरा होगा?
मुख्य बातें (Key Points)
- भारत से हर साल 13.36 लाख छात्र विदेश जाते हैं, जबकि सिर्फ 46,878 विदेशी छात्र भारत आते हैं
- 10 साल में विदेश भेजे जाने वाले पैसे में 2000% बढ़ोतरी – 975 करोड़ से 29,000 करोड़
- भारतीय संस्थान QS वर्ल्ड रैंकिंग के टॉप 100 में नहीं आते
- एजुकेशन बजट GDP का सिर्फ 4.5% है, जबकि NEP के अनुसार 6% होना चाहिए
- सबसे ज्यादा प्रभावित देश का वंचित समुदाय है






