Assam Demographic Crisis : पड़ोसी मुल्क में मचे घमासान के बीच असम के मुख्यमंत्री ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने दिल्ली से लेकर दिसपुर तक खलबली मचा दी है। उनका कहना है कि राज्य में जनसांख्यिकी संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है और अगर हालात नहीं संभले, तो असम की मूल पहचान इतिहास बन सकती है। यह चेतावनी एक ऐसे समय में आई है जब सीमा पार से भारत को तोड़ने की धमकियां दी जा रही हैं।
‘10% और बढ़े तो हम उनमें मिल जाएंगे’
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने गुवाहाटी में मीडिया से बात करते हुए एक चौंकाने वाला आंकड़ा पेश किया। उन्होंने दावा किया कि असम की मौजूदा आबादी में करीब 40% लोग बांग्लादेशी मूल (Bangladeshi Origin) के हैं। उन्होंने साफ शब्दों में चेतावनी दी कि अगर इस आबादी में महज 10% का और इजाफा होता है, तो असम का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। सीएम सरमा ने कहा, “अगर यह आंकड़ा बढ़ता है, तो हम खुद-ब-खुद उनमें (बांग्लादेश में) शामिल हो जाएंगे।” उनका यह बयान राज्य के मूल निवासियों के लिए एक खतरे की घंटी है, जो दशकों से अपनी पहचान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
आंकड़ों का खेल और भविष्य का डर
सीएम सरमा ने अपने दावे को साबित करने के लिए पुराने आंकड़ों का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि 1961 से लेकर अब तक हर दशक में एक खास समुदाय की आबादी में 4 से 5% की बढ़ोतरी देखी गई है। सरकारी और सामाजिक अनुमानों के मुताबिक, 2021 में राज्य में मुस्लिम आबादी करीब 38% थी। अगर यही Trend जारी रहा, तो 2027 तक यह आंकड़ा 40% को पार कर जाएगा। मुख्यमंत्री का कहना है कि जब किसी राज्य में एक समुदाय की आबादी 50% से ज्यादा हो जाती है, तो वहां बाकी समुदायों के लिए संतुलन बनाए रखना बेहद मुश्किल हो जाता है। यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, बल्कि आने वाले कल की एक डरावनी तस्वीर है।
बांग्लादेशी नेता की धमकी पर पलटवार
असम के सीएम का यह बयान तब आया है जब हाल ही में बांग्लादेश के एक नए नेता, नेशनल सिटीजन पार्टी के हसनत अब्दुल्ला ने भारत के खिलाफ जहर उगला था। अब्दुल्ला ने धमकी दी थी कि अगर भारत ने ढाका को परेशान किया, तो वे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों (Seven Sisters) को मुख्य भूमि से अलग कर देंगे। उसने ‘चिकन नेक’ (Chicken’s Neck) यानी सिलीगुड़ी कॉरिडोर को ब्लॉक करने की बात कही थी। इसी के जवाब में हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि यह मसला अब सिर्फ सामाजिक नहीं रहा, बल्कि यह सीधे तौर पर National Security से जुड़ गया है।
अस्तित्व की लड़ाई या राजनीति?
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि पिछले 5 सालों से वह जिस ‘अनियंत्रित प्रवासन’ (Uncontrolled Migration) की बात कर रहे हैं, वह कोई चुनावी मुद्दा नहीं है। उनके अनुसार, यह असम की मूल आबादी, उनकी संस्कृति और भाषा के लिए ‘करो या मरो’ की स्थिति है। उन्होंने कहा कि पहचान की राजनीति (Identity Politics) असम में अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक मजबूरी बन गई है। बांग्लादेश में जारी राजनीतिक अस्थिरता का सीधा असर असम पर पड़ रहा है, और अगर सीमा पार से हो रही घुसपैठ को नहीं रोका गया, तो पूर्वोत्तर का नक्शा बदलने में देर नहीं लगेगी।
आम पाठक पर असर: इस खबर का सीधा असर असम और पूर्वोत्तर के आम नागरिकों पर है, जिन्हें डर है कि बढ़ती जनसंख्या असंतुलन के कारण उनके रोजगार, जमीन और सांस्कृतिक अधिकारों पर संकट आ सकता है।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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असम CM का दावा: राज्य में 40% आबादी बांग्लादेशी मूल की है।
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बड़ी चेतावनी: 10% और वृद्धि होने पर असम की पहचान खत्म होने का खतरा।
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आंकड़े: 1961 से हर दशक में 4-5% की वृद्धि, 2027 तक 40% पार होने का अनुमान।
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बाहरी खतरा: बांग्लादेशी नेता हसनत अब्दुल्ला द्वारा ‘चिकन नेक’ कॉरिडोर को काटने की धमकी के जवाब में आया बयान।
FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न






