Javed Akhtar vs Mufti Nadvi Debate : प्रसिद्ध गीतकार और लेखक जावेद अख्तर और इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती शमाइल नदवी के बीच ‘ईश्वर के अस्तित्व’ (Does God Exist?) को लेकर हुई एक जोरदार बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस बहस में जावेद अख्तर ने धर्म और ईश्वर पर कई तीखे सवाल उठाए, जिनका मुफ्ती नदवी ने अपने तर्कों और विज्ञान के उदाहरणों के साथ जवाब दिया।
जावेद अख्तर का सवाल: खुदा क्या कर रहा था?
जावेद अख्तर ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि कोई भी धर्म पूरी तरह से सवाल करने की आजादी नहीं देता। उन्होंने पूछा, “किसी भी मजहबी किताब में डायनासोर का जिक्र क्यों नहीं है? ये दुनिया कैसे बनी, कैसे मिटेगी, मरने के बाद क्या होगा, सब लिखा है, लेकिन डायनासोर का पता किसी को नहीं था।” उन्होंने आगे एक चुभता हुआ सवाल दागा कि 14 बिलियन साल पहले यूनिवर्स बनने से पहले खुदा क्या कर रहा था? क्या वह खामोश बैठकर जमाइयां ले रहा था और फिर अचानक उसे यूनिवर्स बनाने का खयाल आया?
‘फेथ और लॉजिक पर तकरार’
जावेद अख्तर ने मुफ्ती साहब से पूछा कि अगर आपके पास तर्क और सबूत हैं, तो आप ‘फेथ’ (आस्था) की मांग क्यों करते हैं? उन्होंने कहा कि आज हम जिन सुविधाओं (बिजली, माइक, कार) का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे उन लोगों की देन हैं जिन्होंने सवाल किए थे, न कि आस्था रखकर चुप बैठ गए थे। अख्तर ने कहा कि हमें विनम्रता (Humility) रखनी चाहिए और मान लेना चाहिए कि हमें बहुत कुछ नहीं मालूम।
‘मुफ्ती नदवी का पलटवार: सवाल इलॉजिकल है’
मुफ्ती शमाइल नदवी ने जावेद अख्तर के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि यूनिवर्स के बनने से पहले खुदा क्या कर रहा था, यह सवाल ही अतार्किक (Illogical) है। उन्होंने समझाया कि ‘पहले’ और ‘बाद’ का ताल्लुक समय (Time) से है, और समय की शुरुआत ही यूनिवर्स के साथ हुई है। जब समय था ही नहीं, तो ‘पहले’ का सवाल ही गलत है। उन्होंने कार का उदाहरण देते हुए कहा कि इंजन कार चलाता है, इसका मतलब यह नहीं कि कार को किसी ने बनाया नहीं है।
‘मैथमेटिक्स की किताब में डायनासोर क्यों नहीं?’
डायनासोर वाले सवाल पर मुफ्ती नदवी ने कहा कि “आज तक मुझे किसी मैथमेटिक्स की किताब में भी डायनासोर का जिक्र नहीं मिला, तो क्या मैथ्स की किताब बेकार हो गई?” उन्होंने तर्क दिया कि मजहबी किताबों का उद्देश्य साइंस या डायनासोर के बारे में बताना नहीं, बल्कि नैतिकता (Morality) और ईश्वर का ज्ञान देना है। उन्होंने ‘साइंटिज्म’ (Scientism) का विरोध करते हुए कहा कि विज्ञान ही ज्ञान का एकमात्र स्रोत नहीं हो सकता। आप मेटल डिटेक्टर से प्लास्टिक नहीं ढूंढ सकते, वैसे ही साइंस से मेटाफिजिकल रियलिटी को साबित नहीं किया जा सकता।
‘संपादकीय विश्लेषण: आस्था और तर्क का अंतहीन द्वंद्व’
यह बहस सदियों पुराने आस्था बनाम विज्ञान के संघर्ष का एक आधुनिक उदाहरण है। जावेद अख्तर जहां तार्किकता और प्रत्यक्ष प्रमाणों (Empirical Evidence) पर जोर देते हैं, वहीं मुफ्ती नदवी दर्शन और मेटाफिजिक्स के जरिए ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। अख्तर का यह कहना सही है कि सवाल पूछने से ही मानव सभ्यता आगे बढ़ी है, लेकिन नदवी का यह तर्क भी वजनदार है कि विज्ञान हर सवाल का जवाब नहीं दे सकता, खासकर उन सवालों का जो उसकी परिधि (Physical World) से बाहर हैं। यह बहस दिखाती है कि दोनों विचारधाराएं अपनी-अपनी जगह मजबूत हैं और शायद कभी एक बिंदु पर नहीं मिल सकतीं।
‘जानें पूरा मामला’
यह बहस एक सार्वजनिक मंच पर आयोजित की गई थी, जहां जावेद अख्तर और मुफ्ती शमाइल नदवी आमने-सामने थे। विषय था ‘क्या ईश्वर का अस्तित्व है?’। दोनों ने अपने-अपने पक्ष रखे, जिसमें जावेद अख्तर ने नास्तिकता और तर्क का पक्ष लिया, जबकि मुफ्ती नदवी ने आस्तिकता और दार्शनिक तर्कों का सहारा लिया।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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जावेद अख्तर ने पूछा कि धार्मिक किताबों में डायनासोर का जिक्र क्यों नहीं है।
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उन्होंने सवाल किया कि यूनिवर्स बनने से पहले खुदा क्या कर रहा था।
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मुफ्ती नदवी ने कहा कि ‘समय’ यूनिवर्स के साथ शुरू हुआ, इसलिए ‘पहले’ का सवाल गलत है।
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नदवी ने कहा कि विज्ञान से ईश्वर (मेटाफिजिकल रियलिटी) को साबित नहीं किया जा सकता।
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दोनों के बीच ‘फेथ’ और ‘साइंटिज्म’ को लेकर तीखी बहस हुई।






