Aravali Controversy Update को लेकर पूरे देश में गुस्सा फूट पड़ा है। सोशल मीडिया पर #SaveAravali ट्रेंड कर रहा है और यह मामला अब सिर्फ राजस्थान या हरियाणा तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। दिल्ली और उत्तर भारत के अस्तित्व को बचाने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला अब एक सरकारी फीते में सिमट कर रह गई है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार के एक जवाब ने पहाड़ की परिभाषा ही बदल दी है, जिससे आने वाले समय में दिल्ली का दम घुटने और राजस्थान के रेगिस्तान बनने का खतरा पैदा हो गया है।
क्या पहाड़ को फीते से नापा जाएगा?
जरा सोचिए, जिस पहाड़ ने सदियों से आपको रेगिस्तान की धूल से बचाया, हवा को छानकर शुद्ध किया, आज उसे कागज पर छोटा कर दिया गया है। वीडियो के मुताबिक, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अरावली की पहचान के लिए ऊंचाई को आधार बनाया जाना चाहिए। सरकार के नए मानक के अनुसार, भू-स्थल से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियां ही ‘अरावली’ मानी जाएंगी। इसका सीधा मतलब यह है कि 100 मीटर से छोटे टीले और पहाड़ अब अरावली का हिस्सा नहीं हैं और वे कानूनी संरक्षण से बाहर हो गए हैं।
90% अरावली पर खतरे की घंटी
यह फैसला तकनीकी तौर पर भले ही ‘विकास और पर्यावरण में संतुलन’ के नाम पर लिया गया हो, लेकिन हकीकत बेहद डरावनी है। अरावली कोई एक सीधी दीवार नहीं है, बल्कि हजारों छोटी-बड़ी पहाड़ियों की एक निरंतर श्रृंखला है। जानकारों का कहना है कि अगर 100 मीटर वाला नियम लागू रहा, तो अरावली का करीब 90% हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा। इसका परिणाम यह होगा कि वहां खनन (Mining) और निर्माण कार्य की खुली छूट मिल जाएगी। पत्थर माफिया पहाड़ों का सीना चीर देंगे और रेगिस्तान को रोकने वाली यह प्राकृतिक दीवार हमेशा के लिए टूट जाएगी।
दिल्ली बनेगी रेगिस्तान, पानी को तरसेंगे लोग
इस फैसले का सबसे भयानक असर दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत पर पड़ेगा।
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प्रदूषण: अरावली के हटते ही थार मरुस्थल की धूल भरी आंधी सीधे दिल्ली में प्रवेश करेगी, जिससे सांस लेना दूभर हो जाएगा।
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जल संकट: अरावली की चट्टानें बारिश का पानी रोककर भूजल (Groundwater) रिचार्ज करती हैं। पहाड़ टूटे तो पानी बह जाएगा और आने वाले सालों में पीने के पानी का भयंकर संकट खड़ा हो जाएगा।
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भीषण गर्मी: जंगल कटेंगे तो तापमान बढ़ेगा, लू जानलेवा हो जाएगी और मौसम पूरी तरह बेकाबू हो जाएगा।
सियासत और माफिया का खेल
इस मुद्दे पर अब राजनीति भी गरमा गई है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी अब माना है कि अरावली को तकनीकी माप (फीते) से नहीं, बल्कि उसके पर्यावरणीय महत्व से देखा जाना चाहिए। उन्होंने भी ‘सेव अरावली’ अभियान का समर्थन किया है। वहीं, एनएसयूआई (NSUI) ने 26 दिसंबर को जयपुर में ‘अरावली बचाओ पैदल मार्च’ का ऐलान किया है। आरोप लग रहे हैं कि खनन माफिया कागजों में हेराफेरी करते हैं—वे 100 मीटर की पहाड़ी को कागज पर 60-80 मीटर का दिखा देते हैं ताकि उसे काटने का लाइसेंस मिल जाए।
विशेषज्ञ विश्लेषण: सांसों का सौदा
यह केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है, बल्कि यह एक ‘इकोलॉजिकल डिजास्टर’ की पटकथा है। सरकार का यह तर्क कि परिभाषा स्पष्ट होने से भ्रम दूर होगा, जमीनी हकीकत से परे लगता है। अरावली की उपयोगिता उसकी ऊंचाई में नहीं, बल्कि उसके विस्तार और निरंतरता में है। जैसे ही आप छोटी पहाड़ियों को संरक्षण से हटाते हैं, आप इकोसिस्टम की कड़ी को तोड़ देते हैं। यह फैसला भविष्य की पीढ़ियों को कंक्रीट के जंगल और जहरीली हवा सौंपने जैसा है। जब रक्षक दीवार ही नहीं रहेगी, तो विकास का महल किस जमीन पर खड़ा होगा?
जानें पूरा मामला
20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की सिफारिश मान ली थी कि 100 मीटर से ऊंची पहाड़ी ही अरावली मानी जाएगी। इसके विरोध में 11 दिसंबर 2025 (अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस) से ‘सेव अरावली’ मुहिम शुरू हुई। लोगों का तर्क है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली 90% पहाड़ियां अब खनन के लिए खुल जाएंगी। इसी के विरोध में 26 दिसंबर को जयपुर में बड़ा प्रदर्शन होने वाला है।
मुख्य बातें (Key Points)
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Aravali Controversy: 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली मानने से सरकार का इनकार।
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इससे अरावली का 90% हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा और खनन माफिया हावी होंगे।
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अरावली हटने से दिल्ली-एनसीआर में धूल भरी आंधी और गंभीर जल संकट आएगा।
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26 दिसंबर को जयपुर में एनएसयूआई द्वारा ‘अरावली बचाओ पैदल मार्च’ निकाला जाएगा।






