Online Fraud Victim डिजिटल लेनदेन के इस दौर में एक छोटी सी लापरवाही या अनजाने में ली गई रकम किसी भी आम आदमी के लिए जी का जंजाल बन सकती है। मुंबई के अंधेरी वेस्ट मार्केट में घरेलू सामान बेचने वाले सुधीर के साथ कुछ ऐसा ही हुआ, जब एक अनजान ग्राहक से यूपीआई के जरिए महज 826 रुपये लेना उनके लिए भारी पड़ गया। इस मामूली रकम के उनके खाते में आते ही बैंक ने उनका अकाउंट फ्रीज कर दिया, जिससे पिछले डेढ़ महीने से उनकी दुकानदारी और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है।
सुधीर की यह कहानी अकेले उनकी नहीं है, बल्कि देश भर के उन 36,000 से ज्यादा लोगों की है जिनके खाते फरीदाबाद के एनआईटी में हुई 4.43 करोड़ रुपये की एक बड़ी साइबर ठगी के बाद ब्लॉक कर दिए गए हैं। दरअसल, जब साइबर ठगी होती है और पीड़ित हेल्पलाइन नंबर 1930 पर शिकायत करता है, तो गृह मंत्रालय के निर्देश पर वह रकम जिस-जिस खाते में जाती है, उन सभी को सुरक्षा के लिहाज से ब्लॉक कर दिया जाता है।
दुकानदारों और रेहड़ी वालों पर दोहरी मार
इस कार्रवाई की सबसे बड़ी मार उन छोटे दुकानदारों, पेट्रोल पंप मालिकों और रेहड़ी-पटरी वालों पर पड़ रही है, जो रोजमर्रा के व्यापार में डिजिटल पेमेंट स्वीकार करते हैं। पुलिस जांच में सुधीर जैसे कई लोगों का ठगी से कोई लेना-देना नहीं पाया गया है, फिर भी बैंक खाता चालू करने में आनाकानी कर रहे हैं। सुधीर का सवाल जायज है कि एक दुकानदार को कैसे पता चलेगा कि ग्राहक जो पैसे भेज रहा है, वह उसकी मेहनत की कमाई है या ठगी का हिस्सा।
संसद से सड़क तक मची है पुकार
उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और दिल्ली समेत दर्जनों राज्यों से लोग फरीदाबाद के एनआईटी साइबर थाने के चक्कर काट रहे हैं। कई लोग तो इतने मजबूर हो चुके हैं कि उन्हें अपना ही जमा पैसा निकालने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। थाना प्रभारी जितेंद्र कुमार के अनुसार, हर हफ्ते दर्जनों लोग फोन कर गुहार लगा रहे हैं कि उनके खाते में मात्र 200 या 500 रुपये आने की वजह से उनका पूरा व्यापार ठप हो गया है।
जांच बनाम कार्रवाई का संकट
पुलिस ने इस मामले में लखनऊ और सीतापुर से हिमांशु और गौरव समेत नौ लोगों को गिरफ्तार तो किया है, लेकिन असली चुनौती उन निर्दोषों को राहत देने की है जो इस तकनीकी जाल में फंस गए हैं। पुलिस ने बैंक और गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इन समस्याओं के समाधान का आग्रह किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि खाता ब्लॉक करने से पहले एक प्राथमिक जांच होनी चाहिए ताकि अपराधियों और आम दुकानदारों के बीच फर्क किया जा सके।
वरिष्ठ संपादक का विश्लेषण
यह मामला भारत में डिजिटल बैंकिंग की सुरक्षा नीतियों और उनके व्यवहारिक क्रियान्वयन के बीच की एक बड़ी खाई को उजागर करता है। साइबर क्राइम को रोकने के लिए ‘खाता ब्लॉक’ करना एक प्रभावी कदम हो सकता है, लेकिन बिना किसी स्क्रूटनी के हजारों निर्दोषों की आर्थिक रीढ़ तोड़ देना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है। सुधीर जैसे छोटे व्यापारियों के लिए बैंक खाता ही उनका जीवन आधार है। प्रशासन को 1930 हेल्पलाइन के प्रोटोकॉल में सुधार करने की जरूरत है ताकि ‘फ्लेग’ की गई छोटी रकम को होल्ड पर रखा जाए, न कि पूरे खाते को महीनों तक फ्रीज किया जाए।
जानें पूरा मामला
यह विवाद 24 अक्टूबर 2025 को फरीदाबाद के एनआईटी इलाके में हुई 4.43 करोड़ की बड़ी साइबर ठगी से शुरू हुआ। इस ठगी की रकम कई लेयर्स में हजारों बैंक खातों में ट्रांसफर हुई। सुरक्षा नियमों के तहत पुलिस और गृह मंत्रालय ने उन सभी खातों को फ्रीज कर दिया जिनमें यह पैसा पहुंचा। अब पुलिस उन खातों को रिओपन कराने के लिए बैंकों को पत्र लिख रही है जिनका ठगी से सीधा संबंध नहीं पाया गया है।
मुख्य बातें (Key Points)
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यूपीआई से ठगी की रकम आने पर देश भर में 36,000 से ज्यादा बैंक खाते ब्लॉक किए गए।
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मुंबई के दुकानदार सुधीर का खाता मात्र 826 रुपये लेने की वजह से डेढ़ महीने से बंद है।
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साइबर हेल्पलाइन 1930 पर शिकायत के बाद संदिग्ध रकम वाले सभी खातों को ऑटोमैटिक ब्लॉक किया जाता है।
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पीड़ित अब खाता खुलवाने के लिए पुलिस थानों से लेकर हाई कोर्ट तक के चक्कर काटने को मजबूर हैं।






