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भारत में दो बार छपा था 10,000 Rupee Note, कालाबाजारी की वजह से हुआ बंद

साल 1954 में शुरू हुए 10,000 और 5,000 के बड़े नोटों को आम जनता की पहुंच से दूर और कालाबाजारी का हथियार बनने पर मोरारजी देसाई सरकार ने 1978 में अमान्य घोषित कर दिया था।

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मंगलवार, 16 दिसम्बर 2025
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10000 Rupee Note
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10,000 Rupee Note History: आपने अपनी जेब में 1, 2, 5, 100, 500 और 2000 रुपये के नोट तो जरूर देखे होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारतीय इतिहास में एक समय ऐसा भी था जब बाजार में 10,000 रुपये का नोट चलता था? यह नोट देश में एक नहीं, बल्कि दो बार छापा गया था, लेकिन कालाबाजारी और जमाखोरी के चलते इसे हमेशा के लिए चलन से बाहर करना पड़ा।

नोटबंदी के दौर में अक्सर नोटों पर खूब चर्चा होती है। इसी चर्चा के बीच बहुत से लोगों को यह जानकर हैरानी होती है कि हमारे देश में 10,000 रुपये का नोट भी अस्तित्व में था। आज हम आपको उसी ऐतिहासिक नोट की कहानी और उसके बंद होने के पीछे की असली वजह बताने जा रहे हैं।

आजादी के बाद हुई थी बड़े नोटों की वापसी

भारत की आजादी के बाद एक बार फिर बाजार में बड़े नोटों की वापसी हुई थी। साल 1954 में सरकार ने 10,000 रुपये के नोट के साथ-साथ 5,000 रुपये के नोट का प्रचलन भी शुरू किया था। उस समय उम्मीद थी कि इससे अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी, लेकिन हकीकत में इन दोनों ही बड़े नोटों से आम जनता को कोई फायदा नहीं हुआ।

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आम आदमी की पहुंच से दूर थे ये नोट

उस दौर की आर्थिक स्थिति आज से बिल्कुल अलग थी। यह वह समय था जब एक आम आदमी का पूरे महीने का खर्च महज 100 रुपये में चल जाया करता था। बहुत कम लोग ऐसे थे जिनकी सैलरी 10,000 रुपये हुआ करती थी।

लिहाजा, 10,000 रुपये के नोट की जरूरत आम आदमी को बिल्कुल भी नहीं थी। उस दौर में बहुत से लोग तो ऐसे थे जिन्होंने कभी 100 रुपये का नोट भी नहीं देखा था, ऐसे में 10,000 का नोट उनके लिए एक सपने जैसा था। इन बड़े नोटों का इस्तेमाल काफी कम था और यह केवल बड़े कारोबारियों तक ही सीमित रह गया था।

कालाबाजारी और जमाखोरी का बने जरिया

इन बड़े नोटों का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि देश में कालाबाजारी और जमाखोरी एक बार फिर से बढ़ने लगी। आम जनता के काम न आने वाले ये नोट कालाबाजारियों के लिए पैसा इकट्ठा करने का आसान जरिया बन गए थे। बड़े कारोबारी ही इसका इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा था।

मोरारजी देसाई सरकार का सख्त फैसला

देश में बढ़ती कालाबाजारी को देखते हुए सरकार को सख्त कदम उठाना पड़ा। साल 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए 10,000 रुपये के साथ-साथ 5,000 रुपये के नोट को भी वापस लेने का निर्णय लिया।

सरकार ने एक कानून लाकर इन नोटों को ‘अमान्य’ घोषित कर दिया। उस समय जिनके पास भी ये नोट थे, उन्हें बैंक में जमा कराने के लिए केवल कुछ ही दिनों की मोहलत दी गई थी। इस तरह से 10,000 रुपये का नोट चलन से बाहर हो गया और इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह गया।

‘जानें पूरा मामला’

भारत में करेंसी का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। 1954 में हाई-वैल्यू करेंसी (5,000 और 10,000) को दोबारा शुरू किया गया था। लेकिन, इनका इस्तेमाल वैध लेन-देन से ज्यादा अवैध जमाखोरी में होने लगा। इसी को रोकने के लिए 1978 में ऐतिहासिक विमुद्रीकरण (Demonetization) किया गया, जिसने इन बड़े नोटों को सिस्टम से बाहर कर दिया।

‘मुख्य बातें (Key Points)’
  • देश में 10,000 रुपये के नोट दो बार छापे गए थे।

  • साल 1954 में 10,000 और 5,000 रुपये के नोटों का प्रचलन शुरू हुआ था।

  • इन नोटों से कालाबाजारी और जमाखोरी बढ़ने लगी थी, आम जनता को कोई फायदा नहीं था।

  • 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार ने कानून लाकर इन नोटों को बंद कर दिया था।

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