Trump C5 Group Plan: दुनिया की भू-राजनीति में एक बार फिर भारत का परचम लहराने वाला है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक ऐसे नए और शक्तिशाली समूह को बनाने पर विचार कर रहे हैं जो मौजूदा G7 की जगह ले सकता है। इस नए समूह का नाम ‘कोर-5’ यानी C5 बताया जा रहा है। इसमें दुनिया की पांच सबसे बड़ी महाशक्तिया अमेरिका, चीन, रूस, भारत और जापान शामिल होंगी।
क्या है C5 का पूरा कॉन्सेप्ट?
C5 यानी ‘कोर फाइव’ का विचार सबसे पहले डोनाल्ड ट्रम्प की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के एक लंबे और अप्रकाशित मसौदे में सामने आया था। अमेरिकी रक्षा वेबसाइट Defense One और कुछ मीडिया Reports ने इसका खुलासा किया था। हालांकि, White House ने सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार नहीं किया है, लेकिन वाशिंगटन के नीति-निर्माण हलकों में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। इस समूह में वे पांच देश शामिल हैं जो दुनिया के सबसे ताकतवर और प्रभावशाली मुल्क हैं। इन सभी देशों की आबादी 10 करोड़ से ज्यादा है और ये मिलकर दुनिया की करीब आधी आबादी (3.5 अरब लोग) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
G7 से कितना अलग होगा C5?
यह प्रस्ताव G7 से बिल्कुल अलग सोच पर आधारित है। जहां G7 उन देशों का समूह है जो लोकतंत्र, साझा मूल्यों और पश्चिमी नीतियों पर चलते हैं, वहीं C5 में विचारधारा नहीं बल्कि ‘ताकत’ (Power) और ‘वैश्विक हैसियत’ को पैमाना माना गया है। इसमें यूरोपीय देशों को जगह नहीं दी गई है। यह समूह सौदेबाजी और व्यावहारिक हितों (Practical Interests) पर काम करेगा। इसका कामकाज G7 की तरह ही होगा और इसके नियमित Summits आयोजित किए जाएंगे। इसका पहला और अहम एजेंडा मध्यपूर्व की सुरक्षा, खासकर इजराइल और सऊदी अरब के बीच रिश्तों को सामान्य बनाना हो सकता है।
ट्रम्प की रणनीति और भारत की जीत
इस प्रस्ताव के पीछे ट्रम्प की अनौपचारिक और व्यावहारिक विदेश नीति काम कर रही है। उनका मानना है कि दुनिया को मजबूत नेताओं के जरिए चलाया जा सकता है, जिनके पास सैन्य और आर्थिक ताकत हो। भारत के लिए यह प्रस्ताव एक बड़ी कूटनीतिक जीत साबित हो सकता है। इससे भारत को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और एशिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में मान्यता मिलेगी। साथ ही, चीन और रूस जैसी महाशक्तियों के साथ भारत को सीधा Platform मिलेगा।
यूरोप के लिए खतरे की घंटी
Reports के मुताबिक, इस प्रस्ताव का सबसे विवादित पहलू यूरोप को हाशिए पर रखना है। ट्रम्प प्रशासन यूरोप को अब पहले की तरह केंद्रीय भूमिका में नहीं देखता। रणनीति में चिंता जताई गई है कि यूरोप एक तरह के सभ्यतागत संकट से गुजर रहा है। ट्रम्प का मानना है कि 2014 में क्रीमिया संकट के बाद रूस को G7 से बाहर करना एक बड़ी गलती थी, और अगर रूस साथ होता तो शायद यूक्रेन युद्ध नहीं होता।
चुनौतियां और वास्तविकता
हालांकि, यह अभी केवल एक प्रस्ताव है और कोई आधिकारिक अमेरिकी नीति नहीं है। इसे जमीन पर उतारना काफी मुश्किल हो सकता है, खासकर तब जब यूक्रेन युद्ध के चलते रूस और चीन के साथ सहयोग करना अमेरिका के लिए टेढ़ी खीर है। विशेषज्ञों को डर है कि इससे NATO और Quad (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे पुराने गठबंधन कमजोर हो सकते हैं और चीन के प्रति अमेरिकी नीति नरम पड़ सकती है।
जानें पूरा मामला
यह पूरा घटनाक्रम ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” और “डील-मेकिंग” नीति का विस्तार है। ट्रम्प पारंपरिक सहयोगियों के बजाय उन नेताओं के साथ काम करना पसंद करते हैं जो वास्तव में शक्तिशाली हैं। White House ने भले ही अभी इसे गुप्त दस्तावेज मानने से इनकार किया हो, लेकिन अगर C5 अस्तित्व में आता है, तो यह वैश्विक राजनीति की दिशा बदल देगा और भारत को एक निर्णायक Super Power के रूप में स्थापित करेगा।
मुख्य बातें (Key Points)
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Members: अमेरिका, चीन, रूस, भारत और जापान इस नए समूह का हिस्सा होंगे।
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Objective: यह समूह G7 की जगह ले सकता है और विचारधारा के बजाय ताकत पर आधारित होगा।
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India’s Gain: भारत को वैश्विक महाशक्ति के रूप में मान्यता मिलेगी और यूरोप का प्रभाव कम होगा।
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Challenges: यह अभी सिर्फ एक प्रस्ताव है और यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दों के कारण इसे लागू करना कठिन है।






