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UNESCO लिस्ट में कैसे शामिल हुई दिवाली? जानिए इस विश्व प्रसिद्ध त्योहार की मान्यता के ‘गुप्त नियम’

भारत की संस्कृति का दुनिया में बजा डंका, पीएम मोदी ने भी जताई खुशी, अब पूरी दुनिया में अलग पहचान बनाएगा दीपों का यह पावन त्यौहार।

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शनिवार, 13 दिसम्बर 2025
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UNESCO
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UNESCO Intangible Cultural Heritage List : भारत के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक दीपावली अब सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की सांस्कृतिक धरोहर बन गई है। दीपों के इस त्यौहार को UNESCO की Intangible Cultural Heritage List में शामिल कर लिया गया है। नई दिल्ली स्थित लाल किले में हुई एक अहम बैठक में यह ऐतिहासिक फैसला लिया गया, जिसके बाद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पर अपनी खुशी जाहिर की है।

लाल किले से हुआ ऐतिहासिक फैसला

राजधानी दिल्ली के लाल किले में UNESCO की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई थी। इसी बैठक में फैसला लिया गया कि दीपावली को अब मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत माना जाएगा। भारत सरकार ने Press Release जारी करके इस बात की जानकारी दी है। यह फैसला भारत के लिए गर्व का विषय है क्योंकि UNESCO का मुख्य उद्देश्य ही शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति के जरिए दुनिया में शांति और समृद्धि को बढ़ावा देना है।

क्या है ‘इनटेंजिबल’ विरासत?

आपके मन में सवाल होगा कि आखिर यह Intangible Cultural Heritage क्या होता है? आसान भाषा में समझें तो यह वह विरासत है जिसे हम छू नहीं सकते, लेकिन महसूस कर सकते हैं और जी सकते हैं। जैसे कुंभ मेला कोई वस्तु नहीं है जिसे आप पकड़ सकें, लेकिन आप उसे महसूस करते हैं। ठीक उसी तरह दीपावली भी एक एहसास और परंपरा है। UNESCO के 194 सदस्य देशों ने माना है कि दीपावली इस लिस्ट में शामिल होने की पूरी हकदार है।

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हर 2 साल में मिलता है मौका

UNESCO में किसी भी धरोहर को शामिल कराने का एक खास Process होता है। हर देश को दो साल में एक बार अपनी एंट्री भेजने का मौका मिलता है। भारत ने 2024-25 के साइकिल के लिए दीपावली का नाम भेजा था। इस लिस्ट में शामिल होने के लिए पांच खास Parameters होते हैं, जिनमें मौखिक परंपराएं, Performing Arts, सामाजिक प्रथाएं, ज्ञान और पारंपरिक शिल्पकारी शामिल हैं। दीपावली इन सभी पैमानों पर खरी उतरी है।

सिर्फ हिंदुओं का त्यौहार नहीं

इस वीडियो रिपोर्ट में यह भी साफ किया गया है कि दीपावली केवल हिंदू समुदाय तक सीमित नहीं है। यह त्यौहार भारत की विविधता को एक सूत्र में पिरोता है। जहां हिंदू इसे भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाते हैं, वहीं जैन समुदाय इसे भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाता है। सिख समुदाय के लिए यह ‘बंदी छोड़ दिवस’ है। अलग-अलग धर्म होने के बावजूद दीयों की रोशनी सभी को एक साथ लाती है।

बंगाल से महाराष्ट्र तक अलग रंग

भारत के अलग-अलग हिस्सों में दीपावली मनाने के तरीके भी जुदा हैं। महाराष्ट्र में यह त्यौहार राजा बलि के न्यायप्रिय शासन की याद में मनाया जाता है, जिन्हें वहां न्याय का प्रतीक माना जाता है। वहीं अगर आप बंगाल, बिहार या ओडिशा के कुछ हिस्सों में जाएंगे, तो वहां दीपावली पर देवी लक्ष्मी की जगह माँ काली की पूजा की जाती है, जो शक्ति का प्रतीक हैं। यह विविधता ही इसे खास बनाती है।

कारीगरों के लिए उम्मीद की किरण

इस फैसले का असर आम आदमी पर भी गहरा होगा। दीपावली को Heritage List में शामिल करने का एक बड़ा आधार ‘ट्रेडिशनल क्राफ्टमैनशिप’ भी है। दीपावली पर बनने वाले मिट्टी के दीये, मूर्तियां और स्थानीय मिठाइयां बनाने वाले कारीगरों और Artisans को इससे वैश्विक पहचान मिलेगी। यह सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि स्थानीय कला और संस्कृति को जिंदा रखने का एक जरिया भी है।

जानें पूरा मामला

UNESCO यानी संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, दुनिया भर की उन जगहों और परंपराओं को संरक्षित करता है जो मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत की ओर से इस बार दीपावली को आधिकारिक रूप से नामित किया गया था। लाल किले में हुई बैठक में इस पर मुहर लगने के बाद, अब दीपावली को वैश्विक स्तर पर एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पहचान और संरक्षण मिलेगा।

मुख्य बातें (Key Points)
  • UNESCO ने दीपावली को अपनी Intangible Cultural Heritage List में शामिल कर लिया है।

  • यह घोषणा नई दिल्ली के लाल किले में आयोजित एक बैठक के दौरान की गई।

  • जैन धर्म में इसे निर्वाण दिवस और सिख धर्म में बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है।

  • इस फैसले से मिट्टी के दीये और मूर्तियां बनाने वाले स्थानीय कारीगरों को वैश्विक पहचान मिलेगी।

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