Impeachment Motion Against Justice Swaminathan : मद्रास हाईकोर्ट के एक जज के फैसले ने देश की राजधानी दिल्ली के सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया है। जस्टिस स्वामीनाथन के एक आदेश के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट हो गया है और उनकी कुर्सी अब खतरे में पड़ गई है। कांग्रेस की प्रियंका गांधी से लेकर एआईएमआईएम के ओवैसी तक, 107 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर स्पीकर को नोटिस सौंप दिया है।
विपक्ष के बड़े चेहरे एक साथ
जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ लामबंद हुए इन 107 सांसदों में विपक्ष के कई कद्दावर नेता शामिल हैं। नोटिस देने वालों में कांग्रेस की प्रियंका गांधी और गौरव गोगोई, डीएमके सांसद कनिमोझी, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, एनसीपी की सुप्रिया सुले और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी जैसे बड़े नाम हैं।
यह अपने आप में बड़ी बात है कि कई मुद्दों पर एक-दूसरे से मतभेद रखने वाले दल, जैसे कांग्रेस और ओवैसी, इस मुद्दे पर पूरी तरह एकजुट नजर आ रहे हैं। पूरा विपक्ष जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ खुलकर सामने आ गया है।
आखिर जज ने ऐसा क्या फैसला सुनाया?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जस्टिस स्वामीनाथन ने ऐसा कौन सा फैसला सुना दिया, जिसने पूरे विपक्ष को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया? यह पूरा विवाद एक मंदिर में दीप जलाने को लेकर शुरू हुआ, जिसने देखते ही देखते बड़े राजनीतिक बखेड़े का रूप ले लिया।
यह मामला तमिलनाडु के तिरुपन कुंद्रम पहाड़ी पर स्थित अरुलमिगु सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर से जुड़ा है, जहां एक दरगाह के पास स्थित ‘दीपथून’ (पत्थर का दीप स्तंभ) पर दीप जलाया जाना था।
क्या है पूरा विवाद?
इस विवाद की जड़ में 1 दिसंबर को जस्टिस स्वामीनाथन द्वारा एक याचिका पर सुनाया गया फैसला है। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि दीपथून पर दीप जलाना मंदिर का कर्तव्य है। जब अधिकारियों ने इसकी अनुमति नहीं दी, तो मामला फिर कोर्ट पहुंचा।
इसके बाद 3 दिसंबर को एकल पीठ ने एक और अहम आदेश जारी किया। कोर्ट ने भक्तों को खुद दीपक जलाने की अनुमति दे दी। इतना ही नहीं, कोर्ट ने भक्तों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सीआईएसएफ (CISF) को भी निर्देश दे दिए। जस्टिस स्वामीनाथन के इसी फैसले के बाद से बवाल मचा हुआ है।
न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल
विपक्षी सांसदों ने जस्टिस स्वामीनाथन के कामकाज के तरीकों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। विपक्ष का आरोप है कि जज न्यायपालिका की निष्पक्षता, पारदर्शिता और धर्मनिरपेक्षता के पैमानों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं।
नोटिस में आरोप लगाया गया है कि जज ने एक विशेष राजनीतिक विचारधारा के आधार पर भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ जाकर मामलों में फैसले सुनाए हैं। उन पर एक वरिष्ठ अधिवक्ता और एक विशेष समुदाय के वकीलों के प्रति अनुचित पक्षपात दिखाने का भी आरोप लगा है।
सड़क से संसद तक संग्राम
फैसले के बाद तमिलनाडु से लेकर दिल्ली तक सियासी पारा चढ़ गया है। राज्य की डीएमके सरकार ने इस आदेश को लागू नहीं किया और मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। मदुरई पीठ ने तो पिछले हफ्ते मदुरई जिला कलेक्टर और पुलिस आयुक्त द्वारा दायर अपील को भी खारिज कर दिया था।
डीएमके ने इस मुद्दे को लोकसभा में भी उठाया और भारतीय जनता पार्टी को इस पूरे मामले में घसीटा। डीएमके का आरोप है कि चूंकि तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए बीजेपी सांप्रदायिक तनाव भड़काने की कोशिश कर रही है।
सरकार और बीजेपी का पलटवार
विपक्ष के आरोपों पर बीजेपी ने भी पलटवार किया है। बीजेपी का कहना है कि राज्य सरकार भक्तों को उनके पूजा के अधिकार से वंचित करना चाहती है। वहीं, केंद्रीय मंत्री किरण रिजीजू ने न्यायपालिका का बचाव करते हुए जोर देकर कहा कि कोई भी न्यायपालिका पर आक्षेप नहीं लगा सकता है।
विपक्ष का सीधा आरोप है कि जज एक खास राजनीतिक दल (इशारा बीजेपी की तरफ) के इशारे पर काम कर रहे हैं और ऐसे फैसले दे रहे हैं जो संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के खिलाफ हैं।
अब आगे क्या होगा?
जज को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 100 सांसदों के समर्थन की जरूरत होती है, जबकि यहां विपक्ष के 107 सांसदों ने दस्तखत किए हैं। अब गेंद लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के पाले में है।
स्पीकर को अब यह तय करना है कि वे महाभियोग के लिए दिए गए आधारों का अध्ययन करें और दस्तखत करने वाले सांसदों का सत्यापन करें। यह पूरी तरह उन पर निर्भर करता है कि वे इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं या नहीं। अगर स्पीकर मंजूरी देते हैं, तो एक तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई जाएगी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक जज, किसी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक वरिष्ठ कानून विशेषज्ञ शामिल होंगे। यह समिति आरोपों की जांच करेगी और अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो फिर संसद के दोनों सदनों में वोटिंग कराई जाएगी।
मुख्य बातें (Key Points)
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मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए 107 विपक्षी सांसदों ने नोटिस दिया है।
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यह पूरा विवाद तिरुपन कुंद्रम पहाड़ी पर दरगाह के पास स्थित मंदिर के दीप स्तंभ पर दीया जलाने के अदालती आदेश से जुड़ा है।
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विपक्ष ने जज पर एक खास राजनीतिक विचारधारा के तहत काम करने और संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ फैसले देने का आरोप लगाया है।
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महाभियोग प्रस्ताव पर आगे की कार्रवाई का फैसला अब लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को करना है।






