Vande Mataram Amit Shah Vs Kharge को लेकर संसद भवन एक बार फिर सियासी अखाड़ा बन गया है। राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली, जिसने इतिहास के कई गड़े मुर्दे उखाड़ दिए। एक तरफ सत्ता पक्ष ने कांग्रेस पर तुष्टिकरण के लिए राष्ट्रगीत को बांटने का आरोप लगाया, तो दूसरी तरफ विपक्ष ने दस्तावेजों के साथ पलटवार किया।
‘वंदे मातरम के दो टुकड़े किए’
सदन में गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर बेहद गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि 1937 में जब ‘वंदे मातरम’ के 50 साल पूरे हुए थे, तब कांग्रेस पार्टी ने तुष्टिकरण की राजनीति के चलते इस गीत को सिर्फ दो अंतरों (Stanzas) तक सीमित कर दिया। शाह ने दावा किया कि इसी तुष्टिकरण की शुरुआत ने आगे चलकर देश के विभाजन की नींव रखी। उनका कहना था कि अगर कांग्रेस ने उस वक्त वोट बैंक की खातिर ‘वंदे मातरम’ के टुकड़े न किए होते, तो शायद भारत का बंटवारा न होता और देश अखंड रहता।
आपातकाल और गांधी परिवार पर निशाना
अमित शाह यहीं नहीं रुके। उन्होंने इंदिरा गांधी के दौर का जिक्र करते हुए कहा कि जब ‘वंदे मातरम’ के 100 साल पूरे हुए, तब देश में जश्न की जगह आपातकाल (Emergency) लगा दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि उस वक्त ‘वंदे मातरम’ गाने वालों को जेल में डाल दिया गया था। शाह ने यह भी तंज कसा कि अब जब इस गीत के 150 साल पूरे हो रहे हैं और लोकसभा में चर्चा हो रही है, तो गांधी परिवार का कोई भी सदस्य वहां मौजूद नहीं था। उन्होंने कहा कि विरोध कांग्रेस के नेतृत्व के खून में है।
खरगे ने खोला इतिहास का चिट्ठा
अमित शाह के हमलों का जवाब देने के लिए मल्लिकार्जुन खरगे पूरी तैयारी के साथ आए थे। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री पर नेहरू का अपमान करने का आरोप लगाया। खरगे ने पलटवार करते हुए पूछा कि जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे, तब उनकी देशभक्ति कहां थी? खरगे ने सदन में सबूत के तौर पर 1937 के ऐतिहासिक पत्रों का हवाला दिया।
सुभाष चंद्र बोस और टैगोर का पत्र
खरगे ने बताया कि 16 अक्टूबर 1937 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को पत्र लिखकर पूछा था कि कांग्रेस को ‘वंदे मातरम’ पर क्या रुख अपनाना चाहिए। इसके जवाब में टैगोर ने लिखा था कि गीत के पहले दो पद बहुत सुंदर हैं और उनमें मातृभूमि की वंदना है, जिस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। हालांकि, उन्होंने बाकी हिस्से को लेकर कुछ समुदायों की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखने की बात कही थी।
नेहरू नहीं, सबकी सहमति थी
खरगे ने सदन को बताया कि टैगोर की सलाह पर ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) ने फैसला लिया था। इस फैसले में सिर्फ नेहरू नहीं, बल्कि महात्मा गांधी, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद और खुद सुभाष चंद्र बोस भी शामिल थे। इन सभी दिग्गजों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था कि ‘वंदे मातरम’ के पहले दो अंतरों को ही राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकार किया जाए ताकि देश की एकता बनी रहे।
‘जानें पूरा मामला’
संसद में ‘वंदे मातरम’ के 150 साल पूरे होने पर चर्चा चल रही थी। इसी दौरान भाजपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने आजादी से पहले मुस्लिमों को खुश करने के लिए गीत के उन हिस्सों को हटा दिया था जिनमें देवी दुर्गा की स्तुति थी, क्योंकि यह एकेश्वरवाद के खिलाफ था। इसी को लेकर अमित शाह ने इसे देश के बंटवारे का कारण बताया, जबकि कांग्रेस ने इसे टैगोर और बोस जैसे महापुरुषों का सामूहिक निर्णय करार दिया।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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अमित शाह ने कांग्रेस पर तुष्टिकरण के लिए ‘वंदे मातरम’ को खंडित करने का आरोप लगाया।
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शाह ने कहा कि अगर गीत के टुकड़े न होते तो देश का बंटवारा नहीं होता।
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मल्लिकार्जुन खरगे ने 1937 में बोस और टैगोर के बीच हुए पत्राचार का हवाला दिया।
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खरगे ने बताया कि गीत को सीमित करने का फैसला गांधी, नेहरू, पटेल और बोस की सहमति से हुआ था।






