Justice BR Gavai Reservation Statement: देश में आरक्षण को लेकर चल रही बहस के बीच पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने सियासी और सामाजिक गलियारों में हलचल तेज कर दी है। उन्होंने अनुसूचित जातियों (SC) के लिए आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ (Creamy Layer) के सिद्धांत का समर्थन करते हुए डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों का हवाला दिया और अपने आलोचकों को तथ्यों के साथ जवाब दिया।
आरक्षण का मुद्दा हमेशा से ही पक्ष और विपक्ष के बीच चर्चा का विषय रहा है। इसी बीच, मुंबई विश्वविद्यालय में समान अवसर को बढ़ावा देने वाले एक कार्यक्रम में पहुंचे पूर्व जस्टिस गवई ने साफ शब्दों में कहा कि आरक्षण का लाभ उन लोगों तक पहुंचना चाहिए जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
‘साइकिल’ के उदाहरण से समझाई आरक्षण की हकीकत
कार्यक्रम के दौरान जस्टिस गवई ने डॉ. बी.आर. अंबेडकर के दृष्टिकोण को समझाने के लिए ‘साइकिल’ का एक बहुत ही रोचक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब के विचार में सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) किसी पिछड़े व्यक्ति को साइकिल देने जैसा है।
उन्होंने सवाल उठाया, “क्या अंबेडकर सोचते थे कि ऐसे व्यक्ति को कभी साइकिल नहीं छोड़नी चाहिए?” गवई ने दावा किया कि बाबा साहेब ऐसा बिल्कुल नहीं सोचते थे। उनके अनुसार, बाबा साहेब का लक्ष्य औपचारिक नहीं, बल्कि वास्तविक अर्थों में सामाजिक और आर्थिक न्याय लाना था। उनका मानना था कि आरक्षण उन लोगों को साइकिल देने जैसा है जो पीछे रह गए हैं, ताकि वे भी बराबरी पर आ सकें।
अपने ही समुदाय की आलोचना का शिकार
जस्टिस गवई ने खुलासा किया कि जब उन्होंने अनुसूचित जातियों के आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ का सिद्धांत लागू करने संबंधी फैसला दिया था, तो उन्हें अपने ही समुदाय के लोगों की भारी नाराजगी झेलनी पड़ी थी। उनकी व्यापक स्तर पर आलोचना की गई थी।
उन्होंने बताया कि इंद्रा साहनी केस में क्रीमी लेयर का सिद्धांत तय हुआ था और अपने एक फैसले में उन्होंने खुद कहा था कि यह सिद्धांत एससी (SC) वर्ग पर भी लागू होना चाहिए। उनका मानना है कि आरक्षण का लाभ पीढ़ियों तक एक ही परिवार तक सीमित रहने के बजाय जरूरतमंदों तक पहुंचना चाहिए।
आलोचकों को दिया तथ्यात्मक जवाब
इस मुद्दे पर कुछ लोगों ने जस्टिस गवई पर व्यक्तिगत आरोप भी लगाए। आलोचकों का कहना था कि वे खुद आरक्षण का लाभ लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं और अब दूसरों के लिए क्रीमी लेयर की बात कर रहे हैं।
इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति में आरक्षण नहीं होता है। इसलिए, यह आरोप पूरी तरह से तथ्यहीन और बेबुनियाद है। उन्होंने विरोधियों को याद दिलाया कि न्यायपालिका के उच्च पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर होती है, न कि आरक्षण के जरिए।
‘हिंदू विरोधी’ होने के आरोपों पर भी बोले
अपने संबोधन में उन्होंने अतीत की कुछ घटनाओं का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि उन पर ‘हिंदू विरोधी’ होने के गलत आरोप भी लगाए गए थे, जो पूरी तरह असत्य हैं।
उन्होंने 1 नवंबर की उस घटना का भी जिक्र किया जब अदालत में उन पर जूता फेंकने की कोशिश की गई थी। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं का उन पर कोई असर नहीं पड़ा और वे अपने सिद्धांतों पर अडिग हैं।
जानें पूरा मामला (Background)
दरअसल, इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी (OBC) आरक्षण के लिए ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा पेश की थी, जिसके तहत आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग को आरक्षण के दायरे से बाहर रखा गया था। अब चर्चा इस बात पर है कि क्या यही सिद्धांत अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) पर भी लागू होना चाहिए, जिसका समर्थन जस्टिस गवई ने किया है।
मुख्य बातें (Key Points)
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पूर्व CJI बी.आर. गवई ने SC वर्ग में भी क्रीमी लेयर लागू करने की वकालत की।
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डॉ. अंबेडकर के ‘साइकिल’ वाले उदाहरण से समझाया कि आरक्षण बैसाखी नहीं बनना चाहिए।
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स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति में आरक्षण नहीं होता।
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जूता फेंकने की घटना और हिंदू विरोधी होने के आरोपों को बेबुनियाद बताया।






