IndiGo Crisis Explained: पिछले चार दिनों से भारत का एविएशन सेक्टर अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। देश के कोने-कोने में एयरपोर्ट्स पर यात्रियों की चीख-पुकार, फर्श पर सोते बच्चे और अपनी ही शादी या इम्तिहान में न पहुंच पाने का दर्द बिखरा पड़ा है। इंडिगो एयरलाइंस (IndiGo) का टिकट कटाने वाले हजारों यात्री ठगे से महसूस कर रहे हैं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ‘मजबूत सरकार’ का दावा करने वाला तंत्र एक प्राइवेट कंपनी के आगे बेबस नजर आया। सरकार न केवल एयरलाइन पर लगाम लगाने में नाकाम रही, बल्कि दबाव में आकर उसने यात्रियों और पायलटों की सुरक्षा के लिए बनाए गए नियमों को ही वापस ले लिया। आइए, इस पूरे मामले की परतें खोलते हैं और समझते हैं कि आखिर आप तमाशा देखते-देखते खुद तमाशा कैसे बन गए।
ग्राउंड रिपोर्ट: 4 दिन में 1000 उड़ानें रद्द, जनता की लाचारी
3 दिसंबर से शुरू हुआ यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगता है। 4 दिसंबर को देश भर में इंडिगो की 550 फ्लाइट्स रद्द हुईं। 5 दिसंबर को दिल्ली से सवा सौ, बेंगलुरु से 102, मुंबई से 104, हैदराबाद से 92 और पुणे से 32 उड़ानें कैंसिल कर दी गईं। चंडीगढ़ एयरपोर्ट से भी 15 उड़ानें रद्द हुईं। कुल मिलाकर पिछले चार दिनों में 1000 से ज्यादा उड़ानें रद्द हो चुकी हैं। जो फ्लाइट्स उड़ भी रही हैं, वो 20-20 घंटे की देरी से चल रही हैं। सोशल मीडिया पर लोग अपनी बर्बाद हुई शादियों और छूटे हुए इम्तिहानों का दर्द साझा कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।
सुरक्षा नियमों पर इंडिगो की ‘जीत’ और डीजीसीए का ‘सरेंडर’
इस संकट की जड़ में डीजीसीए (DGCA) द्वारा लागू किए जाने वाले नए एफडीटीएल (FDTL – Flight Duty Time Limitation) नियम थे। ये नियम पायलटों को पर्याप्त आराम देने और थकान (Fatigue) कम करने के लिए बनाए गए थे, ताकि हवाई यात्रा सुरक्षित रहे। इन नियमों के तहत पायलटों के ड्यूटी के घंटे कम किए गए थे और नाइट लैंडिंग की सीमा 6 से घटाकर 2 कर दी गई थी। लेकिन इंडिगो ने इन नियमों का हवाला देकर अपनी सेवाएं ठप कर दीं। हैरानी की बात यह है कि डीजीसीए ने सख्ती दिखाने के बजाय इंडिगो के दबाव के आगे घुटने टेक दिए और इन सुरक्षा नियमों में ढील दे दी। पायलट संघ ने इस पर गहरा अफसोस जताते हुए कहा है कि यात्रियों की सुरक्षा से समझौता किया गया है।
क्या सरकार को ब्लैकमेल किया गया?
सवाल यह उठता है कि इन नियमों की सूचना जनवरी 2024 में ही दे दी गई थी। इंडिगो के पास तैयारी के लिए और नए पायलट भर्ती करने के लिए 2 साल का समय था। 2 लाख करोड़ की कंपनी और 60% मार्केट शेयर रखने वाली इंडिगो क्या 200-300 नए पायलट तैयार नहीं कर सकती थी? जानकारों का मानना है कि इंडिगो ने जानबूझकर ‘हायरिंग फ्रीज’ रखी और कम संसाधनों में ज्यादा मुनाफा कमाने की रणनीति अपनाई। जब नियम लागू होने का समय आया, तो उसने जनता को मोहरा बनाकर सरकार को ब्लैकमेल किया और सरकार झुक गई।
कंट्रोल रूम में मंत्री जी और जमीन पर अराजकता
इस संकट के दौरान सरकार की भूमिका सिर्फ ‘अपील’ करने तक सीमित रही। नागरिक उड्डयन मंत्री राममोहन नायडू ने मंत्रालय के कंट्रोल रूम की फोटो ट्वीट की, जिसमें कुर्सी-मेज के अलावा कुछ नजर नहीं आया। वहीं, राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल के सोशल मीडिया पर यात्रियों की परेशानी का कोई जिक्र तक नहीं था। सरकार यह कहते हुए गिड़गिड़ाती रही कि कोहरा है, शादी का सीजन है, इसलिए सहयोग करें। सवाल यह है कि क्या सरकार को पहले से नहीं पता था कि दिसंबर में कोहरा और छुट्टियां होती हैं? जब दूसरी एयरलाइंस ने अपना किराया 40 से 500 प्रतिशत तक बढ़ा दिया, तब भी मंत्रालय मूकदर्शक बना रहा।
मोनोपोली का खतरा और चंदे का खेल
राहुल गांधी और कई आर्थिक विशेषज्ञों ने बार-बार चेतावनी दी है कि किसी भी सेक्टर में ‘मोनोपोली’ (एकाधिकार) या ‘डुओपोली’ (दो कंपनियों का राज) देश के लिए खतरनाक है। भारत के एविएशन सेक्टर में इंडिगो और टाटा समूह का कब्जा 90% से ज्यादा है, जिसमें अकेले इंडिगो के पास 60% से अधिक हिस्सेदारी है। अमेरिका में 10 बड़ी एयरलाइंस के बीच कम्पटीशन है, लेकिन भारत में विकल्प खत्म होते जा रहे हैं। जब एक ही कंपनी इतनी ताकतवर हो जाती है, तो वह सरकार की नीतियों को भी प्रभावित करने लगती है। रिपोर्टों के मुताबिक, इंडिगो के प्रमोटर राहुल भाटिया ने राजनीतिक दलों को करोड़ों का चंदा दिया है, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा सत्ताधारी पार्टी को गया है। क्या यही कारण है कि जवाबदेही तय नहीं हो पा रही?
‘उड़ान’ योजना की हवा निकली
सरकार ‘उड़ान’ योजना के तहत हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई जहाज में बैठाने का दावा करती है, लेकिन हकीकत यह है कि आज लोग एयरपोर्ट पर धक्के खा रहे हैं। संसद में बताया गया कि उड़ान योजना के तहत बने 15 एयरपोर्ट आज ठप पड़े हैं। करोड़ों की लागत से बने शिमला, लुधियाना, कुशीनगर, और मुरादाबाद जैसे एयरपोर्ट्स पर ताले लटके हैं। यह जनता के टैक्स के पैसों की बर्बादी है, जिसकी कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।
मुख्य बातें (Key Points)
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1000+ उड़ानें रद्द: चार दिनों में देश भर में 1000 से ज्यादा उड़ानें रद्द, लाखों यात्री प्रभावित।
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सुरक्षा से समझौता: डीजीसीए ने इंडिगो के दबाव में आकर पायलट थकान रोधी नियमों (FDTL) को वापस लिया।
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तैयारी की कमी: 2 साल का समय होने के बावजूद इंडिगो ने नए नियमों के हिसाब से पायलट भर्ती नहीं किए।
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सरकार की बेबसी: नागरिक उड्डयन मंत्रालय संकट को संभालने और किराया नियंत्रण में पूरी तरह विफल रहा।
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मोनोपोली का असर: इंडिगो के एकाधिकार के कारण एक कंपनी के संकट ने पूरे देश को बंधक बना लिया।






