Dollar vs Rupee: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का सबब बना हुआ है रुपये का गिरता स्तर। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 90 के करीब पहुंच चुका है, जिससे आयात महंगा हो रहा है, पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है और आम आदमी महंगाई की आशंका से परेशान है। लेकिन, इस आर्थिक उथल-पुथल के बीच एक वर्ग ऐसा भी है जिसके चेहरे पर मुस्कान तैर रही है – वे परिवार जिन्हें विदेशों से रेमिटेंस (Remittance) मिलता है।
कमजोर रुपया इन परिवारों के लिए एक ‘बोनस’ की तरह काम कर रहा है। आइए, इस दिलचस्प पहलू को विस्तार से समझते हैं कि कैसे रुपये की गिरावट कुछ लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है, जबकि बाकी अर्थव्यवस्था इसके दबाव में है।
रुपये की गिरावट: अर्थव्यवस्था पर असर
पिछले कुछ समय से भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हो रहा है। पहले जहां एक डॉलर के बदले 82 से 83 रुपये मिलते थे, अब यह आंकड़ा 90 रुपये के आसपास पहुंच गया है। इसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य जरूरी आयातित सामान महंगे हो गए हैं, जिससे कंपनियों की लागत बढ़ रही है और महंगाई का खतरा भी बढ़ गया है। पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधन के दामों में उछाल से रोजमर्रा की चीजें महंगी हो रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) बाजार में हस्तक्षेप कर रुपये को स्थिर रखने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अमेरिकी ब्याज दरों, युद्ध जैसे वैश्विक तनाव और कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के कारण डॉलर मजबूत बना हुआ है। सरकार और अर्थशास्त्रियों के लिए यह चिंता का विषय है क्योंकि अगर यह स्थिति लंबी खिंची तो घरेलू कीमतें बेकाबू हो सकती हैं।
रेमिटेंस पाने वालों के लिए ‘फ्री बोनस’
इस सिक्के का दूसरा पहलू काफी सकारात्मक है। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा रेमिटेंस प्राप्त करने वाला देश है। हर महीने विदेशों से अरबों डॉलर भारत आते हैं, जो लाखों परिवारों का सहारा बनते हैं। रुपये की कमजोरी ने इस धन की कीमत को और बढ़ा दिया है।
उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति पहले विदेश से 1000 डॉलर भेजता था, तो भारत में उसके परिवार को लगभग 82,000 रुपये मिलते थे। लेकिन अब, रुपये के 90 तक पहुंचने पर, वही 1000 डॉलर 90,000 रुपये बनकर आते हैं। यानी बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के परिवार को 8,000 रुपये का सीधा फायदा हो रहा है। यह ‘बोनस’ परिवार के खर्चों, जैसे बच्चों की पढ़ाई, मेडिकल खर्च या दैनिक जरूरतों को पूरा करने में बड़ी राहत दे रहा है।
किन राज्यों को हो रहा सबसे ज्यादा फायदा?
सबसे ज्यादा रेमिटेंस खाड़ी देशों जैसे सऊदी अरब, यूएई, कतर, कुवैत और बहरीन से आता है। इसके अलावा अमेरिका और यूरोप से भी बड़ा योगदान मिलता है। डॉलर के अलावा, दिरहम या यूरो भेजने वालों को भी फायदा हो रहा है क्योंकि इनकी कीमत भी रुपये के मुकाबले बढ़ी है।
यह फायदा उन राज्यों को सबसे ज्यादा मिल रहा है जहां से बड़ी संख्या में लोग विदेशों में काम करने जाते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के लाखों परिवारों के लिए खाड़ी देशों से आने वाला पैसा उनकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। केरल में, जहां से बड़ी संख्या में लोग नर्सिंग और अन्य सेवाओं के लिए विदेशों में हैं, रेमिटेंस मध्यम वर्ग को मजबूत बना रहा है।
रुपये की गिरावट: एक दोधारी तलवार
रुपये की गिरावट एक दोधारी तलवार की तरह है। एक तरफ, रेमिटेंस से विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ रहा है, जो अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक सहारा देता है। वहीं दूसरी तरफ, महंगाई और आयातित वस्तुओं की बढ़ती कीमतों का बोझ आम आदमी पर पड़ रहा है। यदि वैश्विक बाजार में अस्थिरता बनी रहती है, तो यह स्थिति लंबी खिंच सकती है और आरबीआई को रुपये को स्थिर रखने के लिए और सतर्क रहना होगा।
कुल मिलाकर, गिरते रुपये ने जहां बाजार में हलचल मचा रखी है, वहीं रेमिटेंस पाने वाले परिवारों के लिए यह एक अवसर बनकर आया है। यह दर्शाता है कि आर्थिक उतार-चढ़ाव के बीच भी कुछ लोगों के लिए फायदे छिपे होते हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 90 के करीब पहुंचा, जिससे महंगाई की आशंका बढ़ी।
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विदेशों से रेमिटेंस पाने वाले परिवारों को कमजोर रुपये से हो रहा है फायदा।
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पहले के मुकाबले 1000 डॉलर भेजने पर अब लगभग 8000 रुपये ज्यादा मिल रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश, बिहार और केरल जैसे राज्यों के परिवारों को सबसे ज्यादा लाभ।
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रुपये की गिरावट एक दोधारी तलवार है, जो एक तरफ फायदा तो दूसरी तरफ महंगाई का बोझ ला रही है।






