Putin Delhi Visit रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का विमान जब दिल्ली की सरजमीं पर उतरा, तो पूरी दिल्ली रूसी और भारतीय झंडों से पटी हुई नजर आई। लेकिन इस सजावट के पीछे कूटनीति का एक ऐसा बवंडर चल रहा है, जिसने न केवल दुनिया की महाशक्तियों को, बल्कि भारत की घरेलू राजनीति को भी हिलाकर रख दिया है। यह यात्रा महज दो दोस्तों की मुलाकात नहीं है, बल्कि एक ऐसे ‘कॉन्फ्लिक्ट जोन’ का निर्माण है, जहां अमेरिका, यूरोप, चीन और भारत के हित आपस में टकरा रहे हैं।
पुतिन की यात्रा और वो 5 चुभते सवाल
इस हाई-प्रोफाइल दौरे के साथ पांच ऐसे गंभीर सवाल जुड़ गए हैं, जिनके जवाब भविष्य की दिशा तय करेंगे:
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दिल्ली ही क्यों? युद्ध के इस भीषण दौर में, जब पुतिन पर कई प्रतिबंध लगे हैं, उन्होंने अपनी विदेश यात्रा के लिए दिल्ली को ही क्यों चुना?
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ट्रंप होते तो क्या होता? अगर क्वाड (Quad) की बैठक के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दिल्ली आ जाते, तो क्या पुतिन अपनी यात्रा स्थगित कर देते? ठीक वैसे ही जैसे सुरक्षा कारणों से इजरायल के पीएम नेतन्याहू ने अपना दौरा रद्द किया।
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अमेरिका को खाली हाथ क्यों लौटाया? दिल्ली आने से ठीक पहले, अमेरिका के दो प्रतिनिधि मॉस्को गए थे बातचीत करने के लिए। पुतिन ने उन्हें खाली हाथ क्यों लौटा दिया?
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यूरोप का दोहरा डर: इस वक्त पूरा यूरोप दो डरों के साये में क्यों है? एक डर रूस के हमले का है और दूसरा डर अमेरिका (ट्रंप) द्वारा साथ छोड़ देने का है।
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नई विश्व व्यवस्था: क्या दिल्ली की यह बैठक एक ‘नई विश्व व्यवस्था’ (New World Order) का ऐलान कर देगी? क्या भारत अब किसी एक गुट को चुनने के लिए मजबूर होगा?
राहुल गांधी का बड़ा आरोप: ‘सरकार असुरक्षित है’
कूटनीति के इस शोर के बीच भारत की घरेलू राजनीति में एक अलग भूचाल आया हुआ है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है कि उन्हें व्लादिमीर पुतिन से मिलने नहीं दिया जा रहा है। राहुल ने इसे सरकार की ‘असुरक्षा’ (Insecurity) और ‘घबराहट’ बताया है। राहुल गांधी ने कहा, “जनरली इस सरकार की पॉलिसी है कि विपक्ष के नेता (LoP) को विदेशी मेहमानों से दूर रखा जाए। वाजपेयी जी और मनमोहन सिंह जी के समय यह परंपरा (Tradition) थी कि विदेशी राष्ट्रध्यक्ष विपक्ष के नेताओं से मिलते थे। ओबामा जब आए थे, तब सुषमा स्वराज उनसे मिली थीं। लेकिन मोदी जी इस नॉर्म को फॉलो नहीं करते। विदेश मंत्रालय मेहमानों को ‘सुझाव’ देता है कि वे विपक्ष से न मिलें।”
अमेरिका-रूस की ‘अजीब’ दोस्ती और यूरोप की बेचैनी
इस दौरे के पीछे ट्रंप और पुतिन के रिश्तों की भी एक कहानी है। ट्रंप दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति थे जिन्होंने 2017 में खुले तौर पर पुतिन का समर्थन किया था। हालांकि, इस बार ट्रंप का जो ‘शांति समझौता’ सामने आया है, उससे न तो यूक्रेन खुश है और न ही यूरोप संतुष्ट है। यूरोप को डर है कि अमेरिका अपने सहयोगियों की रक्षा करने के बजाय रूस के साथ व्यापारिक सौदेबाजी में ज्यादा रुचि ले रहा है। ट्रंप खुद कह चुके हैं कि उन्हें नहीं पता कि पुतिन क्या करेंगे।
भारत के सामने ‘बैलेंस’ की चुनौती
भारत के सामने स्थिति ‘इधर कुआं, उधर खाई’ वाली है। एक तरफ अमेरिका के साथ टैरिफ और डॉलर की मार है, तो दूसरी तरफ रूस के साथ बढ़ता व्यापार घाटा। भारत और रूस का व्यापार 65 अरब डॉलर तक पहुंच गया है और अगले साल तक 100 अरब डॉलर होने का अनुमान है, लेकिन इसमें बड़ा हिस्सा भारत द्वारा खरीदे गए तेल और हथियारों का है, जिससे ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) बढ़ रहा है। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के चेयरमैन के मुताबिक, भारत अब चाहता है कि रूस सिर्फ सामान न बेचे, बल्कि भारत में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, एआई (AI) और ज्वाइंट वेंचर्स में इन्वेस्ट करे।
डिफेंस डील और दिल्ली का ‘कॉन्फ्लिक्ट जोन’
पुतिन की यात्रा सिर्फ चाय-पानी के लिए नहीं है। रूसी और भारतीय रक्षा मंत्री आमने-सामने बैठे हैं। चर्चा के केंद्र में सुखोई-57 (Sukhoi-57), एस-400 (S-400) एयर डिफेंस सिस्टम और सुखोई-30 का अपग्रेडेशन है। साथ ही अंटार्कटिका और हिंद महासागर में सहयोग पर भी बात हो रही है। यह बैठक दुनिया को संदेश दे रही है कि दिल्ली अब एक ‘डिप्लोमैटिक कॉन्फ्लिक्ट जोन’ बन चुका है, जहां दुनिया की महाशक्तियों के हित टकरा रहे हैं और भारत अपनी शर्तों पर रास्ता खोजने की कोशिश कर रहा है।
जानें पूरा मामला
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर हैं। यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है और अमेरिका में ट्रंप की वापसी की आहट है। भारत, जो अपनी गुटनिरपेक्षता के लिए जाना जाता है, अब रूस और पश्चिम के बीच संतुलन साधने की कड़ी परीक्षा से गुजर रहा है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस कूटनीतिक मौके का इस्तेमाल केवल अपनी छवि चमकाने के लिए कर रही है और लोकतांत्रिक परंपराओं को तोड़ रही है।
मुख्य बातें (Key Points)
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पुतिन की यात्रा से 5 बड़े भू-राजनीतिक सवाल खड़े हुए हैं।
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राहुल गांधी का आरोप- सरकार ‘इनसिक्योरिटी’ के चलते उन्हें पुतिन से मिलने नहीं दे रही।
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वाजपेयी और मनमोहन सिंह के दौर में विपक्ष से मिलने की परंपरा थी, जिसे अब तोड़ा जा रहा है।
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भारत-रूस व्यापार 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद, लेकिन व्यापार घाटा चिंता का विषय।
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सुखोई-57 और एस-400 जैसे बड़े रक्षा सौदों पर दोनों देशों की नजर।






