Rahul Gandhi Meets Putin: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आधिकारिक दौरे पर भारत आ रहे हैं, लेकिन क्या वे नेता विपक्ष राहुल गांधी से मिलेंगे? यह सवाल एक बार फिर से भारतीय राजनीति और कूटनीतिक गलियारों में गूंज उठा है। कांग्रेस और राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि 2014 के बाद से केंद्र की भाजपा सरकार विदेशी मेहमानों को विपक्ष के नेता (Leader of Opposition – LOP) से मिलने से रोक रही है, जो एक पुरानी लोकतांत्रिक परंपरा का उल्लंघन है।
राहुल गांधी ने खुद इस मुद्दे को उठाते हुए कहा है कि यह एक स्थापित परंपरा और प्रोटोकॉल रहा है कि विदेशी गणमान्य व्यक्ति भारत दौरे के दौरान नेता प्रतिपक्ष से मुलाकात करते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में यह चलन सामान्य था। लेकिन, मौजूदा सरकार विदेशी मेहमानों को ‘सुझाव’ देती है कि वे LOP से न मिलें। राहुल ने इसे सरकार की ‘असुरक्षा’ (Insecurity) का परिचायक बताया है।
परंपरा या असुरक्षा?
राहुल गांधी का कहना है कि विपक्ष का नेता भी भारत का प्रतिनिधित्व करता है और विदेशी मेहमानों से मिलकर एक दूसरा नजरिया पेश करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि जब वे विदेश जाते हैं, तब भी सरकार वहां के लोगों को उनसे न मिलने के लिए कहती है और अब जब विदेशी नेता भारत आ रहे हैं, तो यही किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्रालय इस स्थापित ‘नॉर्म’ का पालन नहीं कर रहे हैं।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा कि यह बहुत अजीब है कि एक स्थापित प्रोटोकॉल को तोड़ा जा रहा है। प्रियंका ने सवाल उठाया कि आखिर सरकार को किस बात का डर है? लोकतंत्र में चर्चा और विपक्ष की आवाज को दबाना सही नहीं है। उन्होंने इसे सरकार की ‘इनसिक्योरिटी’ का स्पष्ट संकेत बताया।
शशि थरूर का बैलेंसिंग एक्ट
इस पूरे मामले में कांग्रेस सांसद और पूर्व राजनयिक शशि थरूर का रुख कुछ अलग नजर आया। जब उनसे इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में अच्छा होगा कि विदेशी मेहमान सबसे मिलें। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वे इसके ‘डिटेल्स’ नहीं जानते और यह मामला उनके ‘पे ग्रेड’ से ऊपर का है। थरूर ने कहा कि राहुल गांधी ने अपनी बात रखी है और सरकार को इसका जवाब देना चाहिए। थरूर के इस बयान को बैलेंसिंग एक्ट के तौर पर देखा जा रहा है, खासकर तब जब पिछले कुछ समय से उनकी भाजपा से नजदीकी की खबरें सुर्खियों में रही हैं।
कूटनीति में पारदर्शिता का अभाव
यह मामला सिर्फ एक मुलाकात का नहीं, बल्कि भारतीय कूटनीति में बढ़ती अपारदर्शिता का भी संकेत है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर रायबरेली से चुने गए सांसद और नेता विपक्ष को पुतिन या अन्य विदेशी मेहमानों से मिलने क्यों नहीं दिया जा रहा? क्या सरकार को डर है कि इससे कोई साजिश रची जाएगी?
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में प्रसार भारती के चेयरमैन नवनीत सहगल के इस्तीफे और पीएमओ में अहम भूमिका निभाने वाले हिरन जोशी के तबादले की खबरें भी आई हैं, जिन्हें लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। कांग्रेस ने हिरन जोशी के मामले में ‘विदेशी एंगल’ का भी जिक्र किया है। कूटनीति जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सरकार की खामोशी कई सवाल खड़े करती है।
मुख्य बातें (Key Points)
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राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि सरकार उन्हें व्लादिमीर पुतिन से मिलने से रोक रही है।
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कांग्रेस का कहना है कि यह विदेशी मेहमानों के LOP से मिलने की पुरानी परंपरा का उल्लंघन है।
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प्रियंका गांधी ने इसे सरकार की ‘असुरक्षा’ का सबूत बताया।
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शशि थरूर ने कहा कि लोकतंत्र में संवाद होना चाहिए, लेकिन उन्होंने सीधे सरकार की आलोचना से परहेज किया।
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यह मामला भारतीय कूटनीति में बढ़ती अपारदर्शिता और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है।






