Election Commission AI Technology भारत में चुनावों की निष्पक्षता को लेकर एक बड़ी क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में सेंध लगाने वाले फर्जी और डुप्लीकेट मतदाताओं पर नकेल कसने के लिए अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया है। स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत अब करोड़ों वोटर्स की पहचान बेहद हाईटेक तरीके से की जा रही है।
एसआईआर (SIR) का फॉर्म भरते समय अगर आपके मन में यह सवाल उठा है कि आखिर करोड़ों लोगों की भीड़ में चुनाव आयोग फर्जी नामों को कैसे ढूंढ निकालता है, तो इसका जवाब नई तकनीक में छिपा है। चुनाव आयोग अब वोटर लिस्ट को पूरी तरह साफ-सुथरा बनाने के लिए एक एडवांस एआई सिस्टम का इस्तेमाल कर रहा है। यह सिस्टम चेहरे की पहचान करने से लेकर डुप्लीकेट एंट्री, ट्रैकिंग और यहां तक कि मृत मतदाताओं के नाम हटाने तक का काम चुटकियों में कर रहा है।
करोड़ों तस्वीरों की एक साथ स्कैनिंग
चुनाव आयोग द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा यह एआई सॉफ्टवेयर इतना शक्तिशाली है कि यह करोड़ों वोटर फोटो को एक साथ स्कैन करने की क्षमता रखता है। यह आसानी से पहचान लेता है कि किसी एक व्यक्ति की फोटो अलग-अलग जगहों पर तो इस्तेमाल नहीं की गई है। अगर कोई व्यक्ति दो अलग-अलग मतदान क्षेत्रों में एक ही फोटो के साथ रजिस्टर्ड पाया जाता है, तो एआई सिस्टम तुरंत उसे ‘फ्लैग’ कर देता है। जहां इंसान को मैनुअल जांच में हफ्तों लग सकते हैं, वहीं यह सिस्टम हजारों फोटो को मिनटों में खंगाल लेता है।
चेहरे की बारीक डिटेल्स पर नजर
इस प्रक्रिया का सबसे अहम हिस्सा ‘फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी’ है। यह सिस्टम पूरे देश के डेटाबेस में एक फोटो की तुलना दूसरी फोटो से करता है। यह चेहरे के माइक्रो फीचर्स को मैच करता है—जैसे आंखों के बीच की दूरी, नाक का आकार, होठों की बनावट और जबड़े की लाइन। यह तकनीक इतनी एडवांस है कि अगर फोटो में थोड़ा बहुत बदलाव भी हो जाए, तब भी एआई उसके पैटर्न को पकड़ लेता है और डुप्लीकेट होने का अलर्ट भेज देता है।
संदीग्ध पैटर्न की पहचान
सिर्फ डुप्लीकेट ही नहीं, यह एआई सिस्टम फर्जी और मृत वोटर्स को पहचानने में भी माहिर है। यह डेटाबेस में असामान्य पैटर्न खोजता है। उदाहरण के लिए, अगर एक ही फोटो का बार-बार इस्तेमाल किया गया हो, फोटो बहुत पुरानी हो, एड्रेस की एंट्री संदिग्ध हो, या फिर एक ही फोन नंबर और डॉक्यूमेंट से कई रजिस्ट्रेशन किए गए हों, तो एआई ऐसे मामलों को तुरंत ‘रेड फ्लैग’ कर देता है। इससे किसी भी गलत नाम का लिस्ट में बचे रहना मुश्किल हो गया है।
अंतिम फैसला इंसान के हाथ में
हालांकि, एआई यहां सिर्फ एक मददगार की भूमिका में है और वह अंतिम फैसला नहीं लेता। एआई द्वारा संदिग्ध मामलों का अलर्ट भेजने के बाद, चुनाव आयोग का फील्ड स्टाफ मौके पर जाकर उसकी ग्राउंड वेरिफिकेशन करता है। इस हाइब्रिड मॉडल (एआई + मानव) से गलतियों की गुंजाइश कम हो गई है। इससे डेटा प्रोसेसिंग तेज हुई है, पारदर्शिता बढ़ी है और मानव त्रुटि (Human Error) में भारी कमी आई है।
क्या है पृष्ठभूमि
भारत निर्वाचन आयोग समय-समय पर मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) अभियान चलाता है। पहले यह प्रक्रिया पूरी तरह मैनुअल होती थी, जिसमें काफी समय लगता था और गलतियां होने की संभावना बनी रहती थी। अब एआई के आने से यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि लोकतंत्र में एक वोटर का एक ही वोट हो और वह सुरक्षित रहे।
मुख्य बातें (Key Points)
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चुनाव आयोग अब वोटर लिस्ट से फर्जी नाम हटाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर रहा है।
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एआई सॉफ्टवेयर करोड़ों फोटो को स्कैन करके चेहरे के माइक्रो फीचर्स (आंख, नाक, फेस स्ट्रक्चर) का मिलान करता है।
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एक ही फोन नंबर या डॉक्यूमेंट से हुए कई रजिस्ट्रेशन को सिस्टम तुरंत संदिग्ध मानकर फ्लैग करता है।
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एआई केवल अलर्ट देता है, अंतिम जांच फील्ड अधिकारी द्वारा फिजिकल वेरिफिकेशन के जरिए ही की जाती है।






