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Home Breaking News

41 साल बाद भी भोपाल की हवा में जहर, पढ़िए Bhopal Gas Tragedy की रूह कंपाने वाली दास्तां

2-3 दिसंबर 1984 की रात ने हजारों जिंदगियां निगल लीं, आज भी तीसरी पीढ़ी भुगत रही है उस गलती की सजा।

The News Air by The News Air
बुधवार, 3 दिसम्बर 2025
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Bhopal Gas Tragedy Anniversary
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Bhopal Gas Tragedy Anniversary: 1984 की वो काली रात… 2 और 3 दिसंबर के दरमियानी वक्त जब भोपाल की फिजाओं में ऑक्सीजन नहीं, बल्कि मौत बह रही थी। आज 41 साल बाद भी यह तारीख भारतीय कैलेंडर में सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी प्रशासनिक नाकामी और कॉरपोरेट लापरवाही का ऐसा बदसूरत दाग है जो मिटा नहीं है। उस आधी रात को यूनियन कार्बाइड से रिसी मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस ने हजारों हंसते-खेलते परिवारों को हमेशा के लिए खामोश कर दिया। यह सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज एक घटना नहीं है, बल्कि ‘इंडिया की सबसे लंबी चलने वाली हेल्थ इमरजेंसी’ है।

क्या भोपाल आज भी 1984 जी रहा है?

हर साल 3 दिसंबर को मेमोरियल पर मोमबत्तियां जलती हैं और नेताओं के भाषण होते हैं, लेकिन असल हकीकत जाननी हो तो जेपी नगर की गलियों में चलिए। कारखाने से चंद कदम दूर बसे इस इलाके में आज भी हवा में वो दर्द और थकान पसरी है। यहां आकर महसूस होता है कि लोग सिर्फ उम्र से बूढ़े नहीं हुए, बल्कि उस जहरीली गैस ने उन्हें समय से पहले ही बूढ़ा कर दिया है। त्रासदी 1984 में हुई थी, लेकिन उसका दर्द 2025 में भी जिंदा है।

वह रात, जो कभी खत्म नहीं हुई

70 साल की नफीसा बी जब चार कदम चलती हैं, तो उनकी सांसें टूटने लगती हैं। उस रात गैस ने उनसे उनका पति और तीन बच्चे छीन लिए। आज मुआवजे या ‘गैस राहत’ के नाम पर उन्हें 1200 रुपये मिलते हैं, जिससे एक छोटी सी दुकान के सहारे जिंदगी की गाड़ी खींच रही हैं। इसी गली के 66 वर्षीय अब्दुल हफीज, जो कभी पुताई का काम करते थे, आज अपने हाथ-पैर तक नहीं हिला पाते।

उनकी आंखों में वह मंजर आज भी कैद है। वे बताते हैं, “हमीदिया अस्पताल में डॉक्टरों ने मेरी 14 साल की भांजी को मृत घोषित कर दिया था। जब मैंने उसे लाशों के ढेर से उठाया, तो उसकी उंगलियां हिलीं… वह जिंदा थी। मुझे आज भी उसकी उंगलियों का वो कांपना याद है।”

इलाज के नाम पर सिर्फ ‘इंतजार की डोज’

60 साल की फरीदा बी की जिंदगी किसी युद्ध के बाद बचे मलबे जैसी हो गई है। उनका साढ़े आठ साल का बेटा ‘अम्मी-अम्मी’ कहते हुए उनकी गोद में ही दम तोड़ गया था। पति कैंसर से चल बसे और आज वे खुद कई बीमारियों से जूझ रही हैं। भोपाल मेमोरियल अस्पताल, जो गैस पीड़ितों के लिए ही बना है, वहां पीड़ितों का आरोप है कि उन्हें दवा नहीं, सिर्फ ‘इंतजार की डोज’ मिलती है। सरकारी अस्पतालों में दवाएं खत्म हैं और डॉक्टर कम, इसलिए लोग आज भी महंगे प्राइवेट इलाज के लिए मजबूर हैं। डॉक्टर बस यही कहते हैं- “यह गैस का असर है, यह तो रहेगा ही, जिंदगी अब ऐसी ही चलेगी।”

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डीएनए तक पहुंच चुका है जहर

क्या यह त्रासदी खत्म हो गई है? जवाब है- नहीं। इस जहरीली गैस का दंश अब तीसरी पीढ़ी के खून और जीन (Genes) तक पहुंच चुका है। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड एनवायरनमेंट हेल्थ की रिपोर्ट बताती है कि एमआईसी (MIC) गैस ‘जीनोटॉक्सिक’ है, यानी यह सीधे डीएनए पर हमला करती है। यही वजह है कि आज वहां पैदा होने वाले बच्चों में शारीरिक विकृतियां, कैंसर और कमजोर दिमाग की समस्याएं आम हैं। जहां सामान्य बच्चे 9-12 महीने में चलने लगते हैं, वहीं गैस प्रभावित परिवारों के बच्चे डेढ़ साल बाद ही चल पाते हैं।

चेतावनी को किया गया अनसुना

इस तबाही को रोका जा सकता था। पत्रकार राजकुमार केसरवानी ने घटना से ढाई साल पहले ही चेताया था कि यूनियन कार्बाइड का प्लांट एक ज्वालामुखी है। उन्होंने लिखा था- “बचाइए हुजूर, इस शहर को बचाइए।” लेकिन सरकार ने इसे अनसुना कर दिया क्योंकि यूनियन कार्बाइड उस समय मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा विदेशी निवेशक था। जब आईएएस अधिकारी एमए बुच ने प्लांट हटाने की सिफारिश की, तो उनका ट्रांसफर कर दिया गया।

कातिलों को मिला वीआईपी ट्रीटमेंट

41वीं बरसी पर लोग आज भी यही पूछ रहे हैं कि उनके कातिलों को किसने बचाया? 3 दिसंबर की सुबह जब शहर लाशों से पटा था, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह अपने परिवार के साथ सरकारी विमान से इलाहाबाद चले गए थे। मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को 7 दिसंबर को गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन उसे वीआईपी ट्रीटमेंट मिला। एसपी और डीएम खुद उसे रिसीव करने गए, गेस्ट हाउस में रखा और सरकारी विमान से दिल्ली भेज दिया, जहां से वह अमेरिका भाग गया। हजारों मौतों के जिम्मेदार लोगों को सिर्फ 14 दिन की जेल हुई और वे जमानत पर छूट गए।

जानें पूरा मामला

भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है। 2-3 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कीटनाशक संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग स्थायी रूप से विकलांग या बीमार हो गए। आज भी न्याय और उचित मुआवजे की लड़ाई जारी है, और वहां की मिट्टी व पानी में जहर घुला हुआ है।

मुख्य बातें (Key Points)
  • भोपाल गैस त्रासदी को 41 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन यह आज भी एक हेल्थ इमरजेंसी बनी हुई है।

  • तीसरी पीढ़ी के बच्चों में डीएनए डैमेज और शारीरिक विकृतियां साफ दिखाई दे रही हैं।

  • पीड़ितों का आरोप है कि अस्पतालों में उन्हें इलाज के बजाय इंतजार करना पड़ता है।

  • चेतावनी के बावजूद सरकार ने यूनियन कार्बाइड पर कार्रवाई नहीं की और एंडरसन को भागने दिया गया।

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