Posting Zero Trend एक ऐसा समय था जब सोशल मीडिया पर लोग दिन-रात अपनी हर गतिविधि शेयर करते थे, लेकिन अब वह दौर बीत चुका है। अब लोग, खासकर युवा पीढ़ी, सोशल मीडिया पर अपनी निजी जिंदगी का प्रदर्शन करने से उकता गए हैं और उन्होंने पोस्ट करना लगभग बंद कर दिया है।
एक दौर था जब इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और फेसबुक पर किलो के भाव में फोटो और वीडियो पोस्ट होते थे। लोग कहीं से भी लाइव हो जाते थे और कमेंट्स की बाढ़ आ जाती थी।
लेकिन अब वह समय बीत चुका है। लोग अब सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते-करते थक चुके हैं। अब उन्हें दुनिया को यह नहीं दिखाना है कि वे कहां छुट्टी मना रहे हैं या क्या खा रहे हैं।
संक्षेप में कहें तो लोगों का सोशल मीडिया से अब मन भर गया है। इसी वजह से आजकल एक नई टर्म ‘पोस्टिंग जीरो’ (Posting Zero) की खूब चर्चा हो रही है।
क्या है ‘पोस्टिंग जीरो’ का मतलब?
इसका सीधा सा मतलब है सोशल मीडिया पर कुछ भी नया पोस्ट न करना। न तो अपनी तस्वीर डालना और न ही अपने विचार जताना। कुल मिलाकर सोशल मीडिया से दूरी बना लेना।
इस नए ट्रेंड की अगुवाई वह युवा पीढ़ी कर रही है, जिसने कभी सोशल मीडिया पर अपनी पूरी जिंदगी खोलकर रख दी थी। द फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट भी इस बदलाव की तस्दीक करती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 50 देशों में ढाई लाख यूजर्स पर किए गए एक सर्वे में पाया गया कि पिछले कुछ समय में सोशल मीडिया के इस्तेमाल में 10% तक की गिरावट आई है।
सोशल मीडिया से क्यों उकता गए लोग?
बड़ा सवाल यह है कि जिस सोशल मीडिया से लोग चिपके रहते थे, आज उससे दूर क्यों भाग रहे हैं? यह समस्या किसी एक उम्र वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि यूनिवर्सल लगती है।
पहले जब आप फीड खोलते थे, तो दोस्तों की छुट्टियों की तस्वीरें और उनकी जिंदगी के अपडेट्स मिलते थे। लेकिन अब आपको सिर्फ स्पोंसर्ड पोस्ट्स ही दिखाई देती हैं।
एल्गोरिथम का चक्र ऐसा है कि अगर गलती से वायरल गाने पर बनी एक रील देख ली, तो फ्लड गेट्स खुल जाते हैं। रात के 12 कब बजते हैं और भोर के पांच कब, पता ही नहीं चलता।
एआई और परफेक्शन का दबाव
इस थकान में एक नया नाम एआई जनरेटेड कंटेंट का भी जुड़ा है। यह लोगों के लिए एक खिलौने जैसा हो गया है, जो एक कमांड पर कुछ भी बदल सकता है – मर्द को औरत या किसी को मंगल ग्रह पर पहुंचाना।
‘पोस्टिंग जीरो’ के पीछे एक बड़ा कारण परफेक्शन का दबाव भी है। यूजर्स हर जगह परफेक्ट दिखने वाली पोस्ट देख-देखकर थक गए हैं।
उन्हें लगता है कि साधारण तस्वीर अब नहीं चलती। आपको क्यूरेटेड और फिल्टर्ड कंटेंट के साथ जीवन दिखाना होता है। हर पोस्ट पर लाइक्स और कमेंट्स का भारी दबाव महसूस होता है।
प्राइवेट स्पेस की तलाश में यूजर्स
तो अब यूजर्स आखिर चाहते क्या हैं? वे अब निजी और छोटे प्लेटफॉर्म्स की ओर रुख कर रहे हैं। जैसे प्राइवेट मैसेजिंग ग्रुप्स या क्लोज्ड फ्रेंड लिस्ट में बातचीत करना।
वे किसी तथाकथित बड़ी ऑडियंस के लिए पोस्ट करने के बजाय सीमित लोगों के साथ जुड़ना पसंद कर रहे हैं। ऐसी जगह जहां उन्हें लाइक्स के पैमाने पर न तोला जाए।
लोग ऐसी जगह तलाश रहे हैं जहां किसी पोस्ट पर मोरल पुलिसिंग न हो, हेट कमेंट न आएं और उन्हें या उनसे जुड़े लोगों को ट्रोल न किया जाए।
‘पोस्टिंग जीरो’ शब्द की कहानी
इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार कायल चेका ने ‘द न्यूयॉर्कर’ मैगजीन के अपने वीकली कॉलम ‘इनफाइनाइट स्क्रॉल’ में किया था। उन्होंने लिखा था कि हम ‘पोस्टिंग जीरो’ जैसी स्थिति की ओर बढ़ सकते हैं।
इसका मतलब है कि आम लोग सोशल मीडिया पर चीजें शेयर करना बंद कर देंगे क्योंकि वे शोर, रुकावट और खुद को सबके सामने एक्सपोज करने से थक चुके हैं।
दरअसल, यह शब्द ‘गूगल जीरो’ (Google Zero) की थ्योरी से प्रेरित है। यह एक काल्पनिक इंटरनेट है जहां एआई इतना ताकतवर हो जाता है कि वह सभी सवालों का जवाब खुद दे देता है और यूजर्स को वेबसाइटों पर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। बस इसी तर्ज पर ‘पोस्टिंग जीरो’ बना है।
मुख्य बातें (Key Points)
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युवा पीढ़ी अब सोशल मीडिया पर निजी जीवन शेयर करने से बच रही है, जिसे ‘पोस्टिंग जीरो’ ट्रेंड कहा जा रहा है।
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द फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, सोशल मीडिया के इस्तेमाल में हाल ही में 10% की गिरावट देखी गई है।
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परफेक्ट दिखने का दबाव, एल्गोरिथम का शोर और ट्रोलिंग का डर इस ट्रेंड के प्रमुख कारण हैं।
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यूजर्स अब पब्लिक पोस्टिंग के बजाय प्राइवेट मैसेजिंग और क्लोज्ड ग्रुप्स को प्राथमिकता दे रहे हैं।






