PM Modi Parliament Absence: संसद के शीतकालीन सत्र का आगाज जिस तरह से हुआ, उसने देश की संसदीय राजनीति में एक नई और अजीब स्थिति पैदा कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद परिसर में मीडिया को संबोधित करते हुए विपक्ष को ‘ड्रामा’ न करने की नसीहत तो दी, लेकिन जब बात सदन के भीतर चर्चा की आई, तो वे वहां से नदारद रहे। यह भारतीय राजनीति की एक ऐसी तस्वीर है जहां प्रधानमंत्री संसद के बाहर तो बोलते हैं, लेकिन भीतर सवालों का सामना करने के लिए मौजूद नहीं रहते।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि प्रधानमंत्री के तीखे बयानों के बावजूद विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक शब्द भी नहीं कहा। उनकी यह ‘रणनीतिक खामोशी’ बता रही है कि विपक्ष अब प्रधानमंत्री द्वारा तय की गई पिच पर खेलने के लिए तैयार नहीं है।
‘ड्रामा’ बताकर निकल गए प्रधानमंत्री
सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री ने मीडिया के सामने विपक्ष को आड़े हाथों लिया। उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में मिली जीत का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ लोग पराजय को पचा नहीं पा रहे हैं और हताशा में संसद में हंगामा करते हैं। पीएम मोदी ने दो टूक कहा, “ड्रामा करने के लिए जगह बहुत होती है, यहां ड्रामा नहीं डिलीवरी होनी चाहिए।” उन्होंने विपक्ष को नसीहत दी कि नारे लगाने के लिए पूरा देश खाली पड़ा है, लेकिन सदन में नीति पर बात होनी चाहिए। यह बयान देकर प्रधानमंत्री ने एक तरह से पहले ही दिन टकराव की लकीर खींच दी।
सदन के भीतर जाने से क्यों कतराए पीएम?
बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर वह कौन सा डर या रणनीति है जिसके चलते प्रधानमंत्री संसद के भीतर रुकने से बच रहे हैं? प्रधानमंत्री राज्यसभा में गए, नए सभापति (उपराष्ट्रपति) का अभिवादन किया और फिर वहां से निकल गए। वे न तो किसी चर्चा में शामिल हुए और न ही अपनी सरकार की उपलब्धियों या चुनाव आयोग की कार्यवाही (SIR) पर सदन के भीतर कोई बात रखी। विपक्ष का मानना है कि प्रधानमंत्री जानबूझकर संसद में विपक्ष का सामना नहीं करना चाहते, क्योंकि वे जानते हैं कि वहां चुनाव आयोग और ईवीएम जैसे तीखे सवाल उनका इंतजार कर रहे हैं।
राहुल गांधी की खामोशी के मायने
आमतौर पर प्रधानमंत्री के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया देने वाले राहुल गांधी ने इस बार चुप्पी साध ली। जब मीडिया ने उनसे पीएम के बयान पर सवाल पूछा, तो उन्होंने साफ मना कर दिया और कहा, “आई एम नॉट टॉकिंग राइट नाउ” (मैं अभी बात नहीं कर रहा हूं)। राजनीतिक विश्लेषक इसे राहुल की नई रणनीति मान रहे हैं। वे समझ चुके हैं कि प्रधानमंत्री की गैर-मौजूदगी में संसद में बोलने का कोई खास असर नहीं होगा। राहुल गांधी अब शायद संसद के बजाय जनता की अदालत (जैसे रामलीला मैदान) में सीधे संवाद करने की तैयारी कर रहे हैं।
विपक्ष के बिना ही चल रही सरकार
संसद के पहले दिन का घटनाक्रम यह भी इशारा करता है कि सरकार ने मान लिया है कि उसे विपक्ष की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री की गैर-मौजूदगी में भी सरकार अपने एजेंडे पर आगे बढ़ रही है। लोकसभा में हंगामे के बीच ही जीएसटी संशोधन बिल और 4155 करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च की मंजूरी ले ली गई। सरकार ने साफ संकेत दिया है कि विपक्ष चाहे जो भी करे, विधायी कार्य नहीं रुकेंगे। सरकार इस सत्र में एटॉमिक एनर्जी, हायर एजुकेशन कमीशन और तंबाकू पर सेस जैसे करीब 10 से 12 महत्वपूर्ण बिल लाने की तैयारी में है।
लोकतंत्र के मंदिर में ‘एकाधिकार’ का संदेश?
विपक्ष के नेताओं का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री 19 दिनों तक चलने वाले सत्र में सदन में नहीं आते हैं, तो संसद की चर्चा का क्या महत्व रह जाएगा? कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और अन्य विपक्षी नेता यह सवाल उठा रहे हैं कि जब देश में चुनाव आयोग की निष्पक्षता और बीएलओ (BLO) पर दबाव जैसे गंभीर मुद्दे हैं, तब प्रधानमंत्री का चर्चा से भागना क्या दर्शाता है? यह स्थिति बताती है कि सत्ता पक्ष अब अपने बहुमत के दम पर एकतरफा रास्ता अपना चुका है।
क्या है पृष्ठभूमि
संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से शुरू हुआ है। हाल ही में आए बिहार चुनाव के नतीजों और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को लेकर विपक्ष हमलावर है। विपक्ष संसद में इन मुद्दों पर, विशेषकर एसआईआर (वोटर लिस्ट रिविजन) पर चर्चा चाहता है। वहीं, प्रधानमंत्री ने सत्र शुरू होने से पहले ही विपक्ष के रवैये को ‘ड्रामा’ करार देकर उनके हौसले पस्त करने की कोशिश की है, जिसके जवाब में विपक्ष ने अब ‘मौन’ और ‘सड़क संघर्ष’ का रास्ता चुना है।
मुख्य बातें (Key Points)
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प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के बाहर विपक्ष को ‘ड्रामा’ न करने की सलाह दी, लेकिन सदन में चर्चा के लिए नहीं रुके।
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राहुल गांधी ने पीएम के बयानों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, साधी रणनीतिक चुप्पी।
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विपक्ष का आरोप- पीएम संसद में सवालों का सामना करने से डर रहे हैं।
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हंगामे के बीच सरकार ने जीएसटी संशोधन समेत कई प्रस्ताव पास करा लिए।
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विपक्ष का मानना है कि प्रधानमंत्री की गैर-मौजूदगी में संसद में बोलने का कोई औचित्य नहीं।






