Indian Rupee Hits All-Time Low: भारतीय रुपये ने गिरावट का एक नया और चिंताजनक रिकॉर्ड बना लिया है। इतिहास में पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 89.41 के स्तर तक गिर गया है। यह गिरावट सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि देश की आर्थिक सेहत पर लगा एक गहरा जख्म है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि एशिया में भारतीय रुपये का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है, लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर सरकार की तरफ से खामोशी छाई हुई है और मुख्यधारा का मीडिया भी इसे महज एक हेडलाइन तक सीमित कर आगे बढ़ गया है।
पड़ोसी देशों से भी पिछड़ा भारत का रुपया
रुपये की यह ऐतिहासिक गिरावट कई सवाल खड़े करती है। नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे हमारे पड़ोसी देशों की मुद्राओं को डॉलर के मुकाबले कोई खास नुकसान नहीं हो रहा है, लेकिन भारतीय रुपया लगातार गोते लगा रहा है। एक साल में रुपये में डॉलर के मुकाबले 4.6% की गिरावट दर्ज की गई है। यह स्थिति तब है जब देश में “सबसे मजबूत प्रधानमंत्री” होने का दावा किया जाता है।
सिर्फ डॉलर ही नहीं, हर बड़ी मुद्रा के सामने पस्त रुपया
चिंता की बात यह है कि रुपया सिर्फ डॉलर के सामने ही नहीं, बल्कि दुनिया की अन्य प्रमुख मुद्राओं के सामने भी कमजोर हुआ है। यूरो के सामने एक साल में रुपया 14.5 रुपये टूटा है, पाउंड के सामने 9.25 रुपये, चीन की मुद्रा युआन और जापान की मुद्रा येन के सामने भी रुपये ने घुटने टेक दिए हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये का यह “ऑल टाइम लो” (All Time Low) एक ऐसा सच है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।
‘मौसम का मज़ा लीजिए’ बनाम गिरती अर्थव्यवस्था
जब देश की मुद्रा रसातल में जा रही है, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के प्रदूषित मौसम का “मज़ा” लेने की बात कर रहे हैं। यह बयान उस गंभीरता का मजाक उड़ाता है जो गिरती अर्थव्यवस्था की मांग करती है। याद आता है वह दौर जब 2013-14 में डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरना (तब एक डॉलर लगभग 63.33 रुपये का था) “भारत की प्रतिष्ठा का गिरना” और “प्रधानमंत्री का कमजोर होना” बताया जाता था। आज जब एक डॉलर 89.41 रुपये का हो गया है, तो वही आवाजें खामोश क्यों हैं?
कमजोर रुपया: कभी बुरा, कभी अच्छा?
एक समय था जब देश को समझाया गया था कि कमजोर रुपया अर्थव्यवस्था के लिए बुरा है। आज, एक नया तर्क गढ़ा जा रहा है कि कमजोर रुपये से आयात (Import) महंगा होगा, जिससे लोग विदेशी सामान कम खरीदेंगे और व्यापार घाटा कम होगा। यह तर्क गले नहीं उतरता क्योंकि देश में कई जरूरी चीजें, जैसे दवाओं के कच्चे माल या हाई-टेक कंपोनेंट्स, आयात पर ही निर्भर हैं। रुपये के कमजोर होने से इनका उत्पादन महंगा होगा, जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा।
विदेशी निवेशकों का मोहभंग, 80 करोड़ लोग फ्री राशन पर
एक तरफ सरकार 8.2% जीडीपी ग्रोथ और कम महंगाई का ढिंढोरा पीट रही है, तो दूसरी तरफ 80 करोड़ लोग मुफ्त राशन पर निर्भर हैं। अगर अर्थव्यवस्था इतनी ही मजबूत है तो विदेशी निवेशक भारत से अपना पैसा क्यों निकाल रहे हैं? सिर्फ दो दिनों में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से 4000 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं। यह विरोधाभास बताता है कि धरातल पर स्थिति कुछ और ही है।
गोदी मीडिया की चुप्पी और जनता का ध्यान भटकाना
मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, इस गंभीर मुद्दे पर बहस करने के बजाय खामोश है। रुपये की गिरावट एक हेडलाइन बनकर रह जाती है। जनता का ध्यान भटकाने के लिए कभी मौसम का मज़ा लेने की बात होती है तो कभी चुनाव आयोग तनाव दूर करने के लिए बीएलओ के डांस का वीडियो जारी करता है, जबकि काम के बोझ से बीएलओ की मौत हो रही है। विपक्ष की आवाज़ को मीडिया में जगह नहीं दी जा रही है, जिससे जनता तक सही सवाल और मुद्दे नहीं पहुंच पा रहे हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 89.41 पर पहुंचा।
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एशिया में रुपये का प्रदर्शन सभी मुद्राओं में सबसे खराब रहा।
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डॉलर के अलावा यूरो, पाउंड, युआन और येन के सामने भी रुपया कमजोर हुआ।
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एक साल में डॉलर के मुकाबले रुपये में 4.6% की गिरावट आई।
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प्रधानमंत्री ने गिरते रुपये पर चुप्पी साधी, मौसम का मज़ा लेने की बात कही।
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विदेशी निवेशक लगातार भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं।






