Congress RJD Alliance Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने महागठबंधन की नींव हिलाकर रख दी है। करारी हार के बाद कांग्रेस के भीतर आत्ममंथन और बगावत का दौर शुरू हो गया है। पटना से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर जारी है और सबसे बड़ी खबर यह निकलकर आ रही है कि कांग्रेस के कई विधायक अब राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से अलग होकर अपनी राह बनाना चाहते हैं।
बिहार चुनाव के परिणाम आए हुए करीब 20 दिन बीत चुके हैं और नई सरकार अपना काम भी शुरू कर चुकी है, लेकिन कांग्रेस अभी तक इस हार के सदमे से उबर नहीं पाई है। 2020 में 19 विधायकों के साथ विधानसभा पहुंचने वाली कांग्रेस इस बार महज 6 सीटों पर सिमट गई है। 60 सीटों पर चुनाव लड़कर 54 सीटें हारना पार्टी के स्ट्राइक रेट और नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
दिल्ली की बैठक में उठी अलग होने की मांग
हार के कारणों की समीक्षा के लिए हाल ही में दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान के नेतृत्व में एक अहम बैठक हुई। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की मौजूदगी में हुई इस बैठक में बिहार से जीते हुए तमाम विधायक शामिल हुए। सूत्रों के हवाले से खबर है कि इसी बैठक में कुछ विधायकों ने आरजेडी से अलग होने की मांग पुरजोर तरीके से उठाई। उनका मानना है कि बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व आरजेडी कर रही है और तेजस्वी यादव को आगे रखा गया है, जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा है।
हार का ठीकरा आरजेडी के सिर
कांग्रेस के अंदर एक बड़ा धड़ा यह मान रहा है कि पार्टी की इस दुर्गति का मुख्य कारण गठबंधन सहयोगी आरजेडी ही है। नेताओं का कहना है कि ऐसे सहयोग का क्या फायदा, जिसकी वजह से दूसरे साथी को हार का मुंह देखना पड़े। दबी जुबान में आरजेडी के कुछ नेताओं ने भी यह कहा कि कांग्रेस की वजह से उन्हें नुकसान हुआ, लेकिन कांग्रेस के लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि अगर ऐसा था तो आरजेडी अकेले चुनाव लड़कर सबसे बड़ी पार्टी क्यों नहीं बन पाई, जैसा कि वह 2020 में बनी थी।
पटना में मंथन, भविष्य की रणनीति पर चर्चा
इस बीच, आज पटना स्थित कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के नेतृत्व में एक और महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई। इस बैठक का मकसद न केवल हार के कारणों की समीक्षा करना था, बल्कि पार्टी की भविष्य की दिशा तय करना भी था। आरजेडी से अलग होने की मांग के बीच यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है।
तेजस्वी-राहुल की जोड़ी भी नहीं दिखा पाई कमाल
गौरतलब है कि चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी ने करीब 100 रैलियां और सभाएं की थीं। हालांकि, यह संख्या 2020 के चुनाव की तुलना में लगभग आधी थी, जब उन्होंने करीब 200 सभाएं की थीं। राहुल गांधी ने बिहार में जमकर पसीना बहाया, लेकिन नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए। चुनाव के दौरान भी ऐसी खबरें आई थीं कि तेजस्वी यादव राहुल गांधी को साइडलाइन करते नजर आ रहे थे, जिससे कांग्रेस नेतृत्व नाराज था।
क्या है भविष्य?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस आलाकमान विधायकों की मांग मानते हुए आरजेडी से अलग होने का फैसला लेगा? दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के बीच मनमुटाव की खबरें तो हैं ही, लेकिन क्या यह गठबंधन टूटने की वजह बनेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल, कांग्रेस किसी प्लान बी पर भी विचार कर सकती है ताकि बिहार में पार्टी को फिर से खड़ा किया जा सके।
मुख्य बातें (Key Points)
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बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 60 में से सिर्फ 6 सीटें जीत पाई।
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दिल्ली में हुई बैठक में कांग्रेस विधायकों ने आरजेडी से अलग होने की मांग की।
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कांग्रेस नेताओं का मानना है कि हार का मुख्य कारण आरजेडी के साथ गठबंधन है।
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राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी भी चुनाव में कोई कमाल नहीं दिखा सकी।
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पटना में प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में भविष्य की रणनीति पर मंथन जारी है।






