Akhilesh Yadav on Voter List Revision: उत्तर प्रदेश में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सियासत गरमा गई है। समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी के दबाव में प्रशासन ज्यादा से ज्यादा वोट काटने की कोशिश कर रहा है। यह कवायद लोकतंत्र को मजबूत करने या नए मतदाता बनाने के लिए नहीं, बल्कि एक विशेष एजेंडे के तहत विपक्ष के वोट कम करने के लिए की जा रही है।
एसआईआर (SIR) का मूल उद्देश्य लोकतंत्र को मजबूत करना है ताकि सभी पात्र नागरिक मतदाता बन सकें और किसी का भी वोट न छूटे। यह पूरी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। आरोप है कि भाजपा ने जानबूझकर मतदाता सूची के काम के लिए वे तारीखें और दिन तय करवाए हैं, जिनमें सबसे ज्यादा शादियां हैं। यह एक सोची-समझी रणनीति है ताकि लोग अपने पारिवारिक कार्यक्रमों में व्यस्त रहें और वोट कटने पर ध्यान न दे सकें।
चुनाव आयोग पूरा कर रहा है भाजपा का ‘ड्रीम’
सपा ने चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सीधे सवाल खड़े किए हैं। आरोप लगाया गया है कि इस लोकतंत्र में इलेक्शन कमीशन भारतीय जनता पार्टी का ‘ड्रीम’ पूरा करना चाहता है। जो विशेष एसआईआर (SIR) चलाया जा रहा है, वह वोट बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि वोट काटने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। चुनाव आयोग का काम ज्यादा से ज्यादा वोट बनवाना है, लेकिन भाजपा के दबाव में ठीक इसका उल्टा हो रहा है।
शादियों के सीजन में जानबूझकर उलझाया गया
बीजेपी ने बहुत चालाकी से वे तारीखें चुनी हैं जब शादियों का साया सबसे ज्यादा है। अगर किसी भी पंडित से पूछा जाए, तो पता चलेगा कि यही वह समय है जब सबसे ज्यादा लगन और मुहूर्त हैं। ऐसे समय में लोग एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं, शादियों में व्यस्त रहते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं। इसी व्यस्तता का फायदा उठाकर वोट काटने का खेल खेला जा रहा है, ताकि लोग आपत्ति भी दर्ज न करा सकें।
बीएलओ पर काम का जानलेवा दबाव
मतदाता सूची के काम में लगे बीएलओ (Booth Level Officers) की स्थिति बेहद दयनीय है। बताया गया था कि उन्हें ट्रेनिंग दी जाएगी, फॉर्म अपलोड करना सिखाया जाएगा, लेकिन हकीकत में उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कई जगह बीएलओ अपने पूरे परिवार और बच्चों की मदद लेकर फॉर्म भर रहे हैं। यहां तक कि कई युवा अपनी प्राइवेट नौकरी छोड़कर अपनी मां (जो बीएलओ हैं) की मदद करने के लिए आए हैं। इस अव्यवस्था और दबाव के कारण बड़े पैमाने पर बीएलओ की जान जाने की खबरें भी सामने आई हैं।
ड्यूटी के दौरान गई कई बीएलओ की जान
प्रशासनिक दबाव का आलम यह है कि कई बीएलओ अपनी जान गवां चुके हैं। मुरादाबाद के बीएलओ सर्वेश सिंह ने काम के दबाव में 30 नवंबर को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। सर्वेश कुमार गंगवार की ड्यूटी के दौरान गिरकर मौत हो गई, उन पर फॉर्म भरने और बांटने का जबरदस्त प्रेशर था। वहीं, विजय कुमार वर्मा को काम के दौरान ब्रेन हेमरेज हुआ और इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। विपिन कुमार यादव की मृत्यु के बाद उनके परिवार ने वीडियो जारी कर काम के दबाव का आरोप लगाया। रंजू दुबे और बिजनौर में एक अन्य बीएलओ की कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई। ये मौतें सवाल खड़ा करती हैं कि आखिर इतना दबाव क्यों बनाया जा रहा है?
जल्दबाजी पर सवाल: यूपी में अभी चुनाव नहीं
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों की जा रही है? अभी उत्तर प्रदेश में कोई चुनाव नहीं है, इलेक्शन में अभी समय है। ऐसे में यह काम आराम से, सहूलियत के साथ और बहुत सावधानी से किया जा सकता था। सिंसियरिटी के साथ काम करने के बजाय हड़बड़ी दिखाकर लोकतंत्र में किसका सपना पूरा किया जा रहा है? ऐसा लगता है कि पूरा सिस्टम सिर्फ विपक्ष की पार्टियों के वोट काटने के लिए काम कर रहा है।
मुख्य बातें (Key Points)
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भाजपा के दबाव में ज्यादा से ज्यादा वोट काटने की कोशिश का आरोप।
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शादियों के सीजन में जानबूझकर पुनरीक्षण की तारीखें तय की गईं।
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काम के अत्यधिक दबाव के कारण कई बीएलओ की मौत (आत्महत्या और हार्ट अटैक)।
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चुनाव आयोग पर भाजपा का एजेंडा चलाने का गंभीर आरोप।






