Tenant Owner Rule बड़े शहरों में किराए के मकान में रहने वाले लाखों लोगों और मकान मालिकों के मन में अक्सर एक बड़ा डर और भ्रम बना रहता है कि क्या 12 साल तक लगातार रहने के बाद किराएदार कानूनी रूप से मकान का मालिक बन सकता है? इस अवधारणा को ‘एडवर्स पजेशन’ नियम का हवाला देकर सही बताया जाता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने इस जटिल कानूनी मामले पर स्थिति स्पष्ट कर दी है, जो मकान मालिकों के लिए राहत की बात है।
भारत के बड़े शहरों में काम के सिलसिले में आने वाले लोग अक्सर किराए के मकान में या कमरे का सहारा लेते हैं। इस कारण एक बड़ी आबादी किराएदारों की है और मकान मालिकों के बीच भी यह धारणा फैली हुई है कि अगर कोई किराएदार उनके घर में 12 साल से ज्यादा समय तक रह जाए, तो वह संपत्ति पर अपना अधिकार जता सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील ने दूर किया भ्रम
लोगों के मन में बसी इस बड़ी गलतफहमी को दूर करने के लिए, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अश्विनी दुबे ने कानूनी स्थिति साफ की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आमतौर पर किराएदार ‘एडवर्स पजेशन’ (Adverse Possession) के नियम के तहत मकान मालिक बनने का दावा नहीं कर सकते।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि किराएदार हमेशा मालिक की सहमति और अनुमति से ही संपत्ति में रहता है। यानी, उसका कब्ज़ा ‘शत्रुतापूर्ण’ (Hostile) नहीं होता, बल्कि ‘अनुमति से’ (Permissive) होता है, जो एडवर्स पजेशन के दावे के लिए सबसे बड़ी बाधा है।
एडवर्स पजेशन क्या है?
एडवोकेट अश्विनी दुबे ने बताया है कि एडवर्स पजेशन का दावा केवल उस स्थिति में हो सकता है, जब किसी व्यक्ति ने किसी संपत्ति पर लगातार कब्ज़ा बनाए रखा हो। इस नियम के तहत मालिकाना हक का दावा करने के लिए कुछ शर्तें पूरी करना अनिवार्य है:
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कब्जा लगातार, बिना किसी रुकावट के और सार्वजनिक जानकारी में होना चाहिए।
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कब्जा खुला यानी सभी की जानकारी में होना चाहिए और छिपा हुआ नहीं होना चाहिए।
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यह कानूनी सिद्धांत सरकारी जमीन पर लागू नहीं होता है।
मकान मालिक बनने के लिए क्या है कानूनी रास्ता
एडवर्स पजेशन का दावा केवल वही व्यक्ति कर सकता है, जिसने संपत्ति को अवैध रूप से और असली मालिक की जानकारी या विरोध के बावजूद कब्जे में रखा हो।
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, अब एडवर्स पजेशन के आधार पर कोई भी व्यक्ति मालिकाना हक पाने के लिए सीधे मुकदमा भी दायर कर सकता है। हालांकि, उसे ऊपर बताई गई सभी कानूनी शर्तों को पूरा करना होगा। इसलिए, जब तक मकान मालिक और किराएदार के बीच किराए का समझौता या संबंध बना रहता है, तब तक किराएदार का 12 साल तक रहना उसे मकान मालिक का दर्जा नहीं दिला सकता। यह खबर उन सभी मकान मालिकों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आई है, जो इस नियम को लेकर वर्षों से चिंता में थे।
क्या है पृष्ठभूमि
भारतीय कानून में ‘एडवर्स पजेशन’ का सिद्धांत काफी पुराना है, जिसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति किसी और की संपत्ति पर एक निश्चित अवधि (निजी संपत्ति के लिए 12 साल) तक खुला, निर्बाध और शत्रुतापूर्ण कब्ज़ा बनाए रखता है, और असली मालिक उस अवधि के भीतर कानूनी कार्रवाई नहीं करता, तो कब्ज़ा करने वाले को संपत्ति का मालिकाना हक मिल सकता है। यह नियम निष्क्रिय संपत्ति मालिकों को अपनी संपत्ति की देखभाल के लिए प्रेरित करता है। हालांकि, किराएदार और मालिक का संबंध भरोसे पर आधारित होता है, इसलिए किराएदार के लिए यह दावा करना बेहद मुश्किल हो जाता है कि उसका कब्ज़ा मालिक के खिलाफ शत्रुतापूर्ण था।
मुख्य बातें (Key Points)
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सुप्रीम कोर्ट के वकील के अनुसार, किराएदार 12 साल तक रहने के बावजूद ‘एडवर्स पजेशन’ के तहत मकान मालिक नहीं बन सकता।
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इसका कारण यह है कि किराएदार मालिक की अनुमति से संपत्ति पर होता है, जबकि नियम के लिए ‘खुला और शत्रुतापूर्ण’ कब्जा ज़रूरी है।
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एडवर्स पजेशन का दावा करने के लिए कब्ज़ा लगातार, बिना रुकावट के, सार्वजनिक और खुला होना चाहिए।
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एडवर्स पजेशन का सिद्धांत सरकारी जमीन पर लागू नहीं होता है।






