Anti-Smog Gun Failure Delhi राजधानी दिल्ली में प्रदूषण के खिलाफ चल रहे सरकारी उपायों पर अब गंभीर सवाल उठने लगे हैं। सड़कों पर चल रही एंटी-स्मॉग गन को एकतरफा ‘बकवास’ बताते हुए, विशेषज्ञों ने कहा है कि ये उपकरण PM 2.5 के जहर को कम करने में नाकाम हैं, बल्कि सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर जनता की आँखों में धूल झोंक रही है।
स्मॉग गन सिर्फ PM10 पर है असरदार
सड़क पर चल रही एंटी-स्मॉग गन से हवा साफ हो रही है या नहीं, इसे लेकर वैज्ञानिक आधार पर सवाल उठाए जा रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, एंटी-स्मॉग गन के छिड़काव से केवल PM10 (धूल के कणों) पर ही असर पड़ेगा। जबकि दिल्ली की हवा के लिए सबसे बड़ा खतरा PM 2.5 से है, जिसकी मात्रा पर इस छिड़काव से कोई असर नहीं पड़ेगा। क्लाउड टेक कंपनी के संस्थापक विमल सैनी ने भी पुष्टि की है कि ये गन सिर्फ 150 से 200 फीट तक ही असरदार हो सकती है। इसका असर भी सिर्फ आधे से एक घंटे के लिए होगा और हवा चलने पर यही कण फिर से उड़कर ऊपर आ जाएंगे। यह एक तरह का इमरजेंसी उपाय है, और प्रदूषण को रोकने के लिए उसके सोर्स पर ही काम करना होगा।
50 करोड़ का खर्च, नतीजा शून्य
दिल्ली की सड़कों पर एंटी-स्मॉग गन लगाने के विचार को बेवकूफी बताया जा रहा है, क्योंकि इन पर बेहिसाब खर्चा किया जा चुका है:
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स्मॉग टावर का हाल: कनॉट प्लेस (सीपी) का स्मॉग टावर, जो 23 करोड़ रुपये की लागत से बना था, काफी समय से बंद पड़ा है। अक्टूबर 2023 में बंद होने के बाद, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद इसे चालू किया गया, लेकिन जनवरी में सैलरी न दिए जाने के कारण इसे फिर से बंद कर दिया गया। यह टावर सिर्फ 200 से 400 मीटर के इलाके में PM 2.5 और PM 10 के प्रदूषण को करीब 20% ही कम करता है।
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किराए पर गन: दिल्ली सरकार की एजेंसियों ने अक्टूबर और नवंबर 2025 के लिए 300 एंटी-स्मॉग गन किराए पर लेने का आदेश दिया, जिस पर 5 महीने (फरवरी 2026 तक) के लिए 5 करोड़ 88 लाख रुपये से अधिक का किराया खर्च होगा।
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टावर की लागत: कनॉट प्लेस और आनंद विहार के दो स्मॉग टावर बनाने में ही 50 करोड़ रुपये फूंक दिए गए हैं, जिससे सबको पता है कि कुछ होने वाला नहीं है।
सरकार समाधान से क्यों भाग रही?
प्रदूषण कम करने के लिए जो कदम उठाए जाने चाहिए, सरकार उनसे भागती नजर आ रही है:
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स्रोत पर कार्रवाई नहीं: प्रदूषण के मूल कारण, जैसे कारों की संख्या कम करना या पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुधारना, पर कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है।
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पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी: गली-गली में कारें खड़ी हैं, जबकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पर बसें जरूरत के अनुपात में कम हैं। जितने पैसे फ्लाई ओवर बनाने में डूबाए गए, उससे आधे में शहर में हजारों बसें उतारी जा सकती थीं।
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राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: 2020 में प्रधानमंत्री मोदी ने 100 शहरों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए ‘होलिस्टिक अप्रोच’ और ‘मिशन मोड’ में काम करने की बात कही थी, लेकिन दिल्ली में 2 महीने से लोग हवा में सांस नहीं ले पा रहे हैं और कोई मिशन नजर नहीं आ रहा।
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पीयूसी सर्टिफिकेट: मौजूदा PUC (Pollution Under Control) सर्टिफिकेट आउटडेटेड हैं, क्योंकि उनमें पार्टिकुलेट मैटर (PM) और नॉक्स (NOx) प्रदूषण नहीं मापा जाता, जो स्मॉग में योगदान करते हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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दिल्ली में एंटी-स्मॉग गन सिर्फ PM10 पर ही असरदार है, जबकि असली खतरा PM 2.5 से है, जिस पर इसका कोई वैज्ञानिक प्रभाव नहीं है।
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कनॉट प्लेस का 23 करोड़ रुपये का स्मॉग टावर बंद है, और 300 गन किराए पर लेने में लगभग 6 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, जबकि इनसे कोई बड़ा सुधार नहीं हो रहा है।
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प्रदूषण को खत्म करने के लिए कारों की संख्या कम करने या पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुधारने जैसे मूल समाधानों पर काम नहीं किया जा रहा है।
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दिल्ली की हवा का AQI डॉलर के दाम जैसा हो गया है, जिस पर कोई नोट नहीं करता, जबकि लाल किले की हवा भी सांस लेने लायक नहीं है (AQI 300-350)।






