Trump Mamdani Dialogue Fascism : New York के मेयर ज़ोहरान ममदानी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की White House में मुलाकात ने दुनिया को चौंका दिया। ममदानी ने ट्रंप को उनके सामने ‘Fascist’ कहा, जिस पर ट्रंप ने कोई आपत्ति नहीं जताई। यह घटना भारत के लोकतंत्र में नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री के बीच संवादहीनता पर गंभीर सवाल खड़े करती है, जहाँ पिछले 12 सालों में इस तरह का खुला संवाद संभव नहीं हो सका है।
अमेरिका के लोकतंत्र में भले ही कई खराबियां आ चुकी हैं, लेकिन वहां विचारधारा के अलग-अलग छोर पर खड़े ट्रंप और ममदानी थोड़ी देर के लिए एक साथ खड़े हो सकते हैं, बात कर सकते हैं और सवालों के जवाब दे सकते हैं। वाइट हाउस के ओवल ऑफिस में हुई इस मुलाकात ने दुनिया को दिखाया कि थोड़ी देर का संवाद भी लोकतंत्र की जड़ों में खाद डालता है।
ट्रंप के सामने पत्रकार ने ‘फैसिस्ट’ शब्द पर सवाल किया
पत्रकार ने राष्ट्रपति ट्रंप के सामने ही ममदानी से पूछा कि आप ट्रंप को फैसिस्ट कहते रहे हैं, क्या आप उस पर अब भी कायम हैं? इस पर वहीं पास बैठे राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, “कोई बात नहीं आप हां ही कह दीजिए, मुझे बुरा नहीं लगेगा।” और ममदानी ने हाँ कह दिया।
ममदानी ने चुनाव जीतने के दौरान कहा था कि वह ट्रंप के लिए किसी बुरे सपने जैसा हैं और एक प्रगतिशील मुस्लिम प्रवासी के रूप में उन चीजों के लिए लड़ रहे हैं जिनमें उनका यकीन है।
भारत में क्यों नहीं संभव है ऐसा संवाद?
सवाल यह है कि क्या 140 करोड़ का देश इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता कि लोकसभा में सदन के नेता और नेता प्रतिपक्ष इस तरह से मिलें और सवालों के जवाब दें? क्या भारत की राजनीति में संवाद की कल्पनाओं को जड़ से सुखा दिया गया है? क्या आप इसकी बात अब सोच भी नहीं सकते?
भारत में आप इस तरह की प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं देख सकते, जहाँ प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष एक बंद कमरे में मिलें, बात करें और फिर सभी सवालों के जवाब दें।
12 साल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों नहीं?
प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी का यह 12वां साल चल रहा है, मगर 12 साल में एक बार भी वह इस तरह से प्रेस के सामने नहीं आ सके, जबकि उन्हें हजार बार आना चाहिए था।
यूनिवर्सिटी ऑफ मिजोरी की किंडर इंस्टीट्यूट के आंकड़े बताते हैं कि अपने पहले कार्यकाल के शुरुआती 100 दिनों में ट्रंप ने 87 प्रेस वार्ता की थी, जो ओबामा से भी ज्यादा थी। दूसरे कार्यकाल में भी ट्रंप ने पहले 100 दिनों में करीब 130 बार प्रेस के साथ बातचीत की है।
आज तक भारत के चुनाव आयोग को लेकर दर्जनों सवाल खड़े हैं, लेकिन चुनाव आयोग से सवाल करने के लिए तरह-तरह के लोग जमा किए जाते हैं जो राहुल गांधी को पत्र लिखते हैं कि उन्होंने चुनाव आयोग पर सवाल उठाकर लोकतंत्र पर हमला कर दिया।
फासीवाद: सत्ता का सबसे क्रूर चेहरा
‘फैसिस्ट’ हंसी-मजाक का शब्द नहीं है, बल्कि यह सत्ता का सबसे क्रूर चेहरा है। फासीवाद का इतिहास बताता है कि यह सत्ता का ऐसा तंत्र है जो केवल राष्ट्रवाद के नाम पर उन्माद पैदा करती है, लोगों को सनका देती है और उनके भीतर असुरक्षा पैदा करती है। फासीवादी शक्तियाँ नागरिक को नागरिक का दुश्मन बना देती हैं और कुछ नागरिकों की नागरिकता पर संदेह पैदा करती हैं।
फासीवाद का एक लक्षण है इसमें नेता के करिश्मे को पैदा किया जाता है, किसी मसीहा की तरह पेश किया जाता है, जैसे वो नेता नहीं, धरती का अवतार है।
लोकतंत्र पर मंडराता ‘दादा डेमोक्रेसी’ का खतरा
यह घटना भारत के लोकतंत्र पर मंडराते एक बड़े खतरे को दिखाती है। भारत का लोकतंत्र अपने-अपने गली मोहल्लों का लोकतंत्र हो गया है। इसका नाम ‘दादा डेमोक्रेसी’ रख देना चाहिए, जहाँ मोहल्ले का दादा लोगों को धर्म से लेकर जाति के नाम पर डराकर रखता है, जेल का भूत दिखाता है और खुद को दुनिया का दादा समझता रहता है। सारी संस्थाओं के लोग डरे-सहमे नजर आते हैं और उसी की भाषा बोल रहे हैं।
अगर किसी बात से इस लोकतंत्र को खतरा है तो इससे है कि लोगों ने सोचना-पूछना बंद कर दिया है कि देश के प्रधानमंत्री नेता प्रतिपक्ष के साथ मिल क्यों नहीं सकते और प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों नहीं कर सकते हैं।
क्या है पृष्ठभूमि
ज़ोहरान ममदानी (डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट) ने न्यूयॉर्क के मेयर के चुनाव में ट्रंप के समर्थित उम्मीदवार को हराया था। चुनाव के दौरान, ट्रंप ने ममदानी को ‘कम्युनिस्ट मेयर’ कहा था और न्यूयॉर्क की फंडिंग कम करने की धमकी दी थी। इसके बावजूद, जीत के बाद जब दोनों की मुलाकात हुई, तो ट्रंप ने ममदानी के विचारों की तारीफ की कि वे न्यूयॉर्क में आम लोगों के लिए घर बनाना चाहते हैं। ट्रंप ने सहयोग की बात की, जबकि ममदानी ने वहीं खड़े होकर विरोध के बावजूद सहयोग के इरादे को दोहराया। इस मुलाकात ने दिखाया कि राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद, जनहित में संवाद और जवाबदेही संभव है।
मुख्य बातें (Key Points)
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न्यूयॉर्क मेयर ज़ोहरान ममदानी ने White House में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के सामने उन्हें ‘फैसिस्ट’ कहा।
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यह संवाद भारत में प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के बीच 12 सालों से चली आ रही संवादहीनता के बिल्कुल विपरीत है।
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वीडियो में कहा गया है कि फासीवाद सत्ता का सबसे क्रूर चेहरा है, जो राष्ट्रवाद का इस्तेमाल कर लोगों को उन्मादी बनाता है।
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भारत में सवाल करने वालों को घेरने के लिए 272 रिटायर्ड लोगों से पत्र लिखवाए जाते हैं, जो लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है।






