Nitish Kumar Taking Oath as Bihar CM : बिहार की राजनीति में आज का दिन एक बार फिर ‘यथास्थिति’ (Status Quo) के नाम रहा। पटना के गांधी मैदान में एक भव्य समारोह में नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित एनडीए (NDA) के कई दिग्गज मौजूद थे, लेकिन जो तस्वीर उभरकर आई, वह जीत के जश्न से ज्यादा एक ‘समझौते’ की कहानी बयां कर रही थी। बीजेपी को सत्ता में हिस्सेदारी तो मिली, लेकिन राजपाट यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार के पास ही रही।
गांधी मैदान में शपथ, मगर जोश नदारद
पटना के गांधी मैदान में भारी भीड़ जुटी थी, लेकिन वह जोश और उत्साह नदारद था जो आमतौर पर किसी बड़ी चुनावी जीत या बदलाव के बाद देखने को मिलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी के बावजूद माहौल में वह बिजली नहीं दौड़ रही थी जिसके लिए बीजेपी के कार्यक्रम जाने जाते हैं। भीड़ शांत और संयमित थी। जब मंत्री शपथ लेने के बाद पीएम मोदी के पास जाकर उनका अभिवादन कर रहे थे, तो नीतीश कुमार एक-दो कुर्सी की दूरी पर बैठे बस देखते रह गए। उनकी मौजूदगी मंच को भर नहीं रही थी, बल्कि एक अजीब सा खालीपन लिए हुए थी।
बीजेपी का सपना फिर रह गया अधूरा
2014 से ही बीजेपी और पीएम मोदी का यह सपना रहा है कि बिहार में उनका अपना मुख्यमंत्री हो, जिसे वे शपथ दिला सकें। लेकिन आज फिर वही कहानी दोहराई गई। चुनाव भर नीतीश कुमार के नाम की घोषणा से बचती रही बीजेपी को अंततः उन्हीं के आगे झुकना पड़ा। रणनीति चाहे जो रही हो, लेकिन नतीजा यही निकला कि बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार के लिए ‘रिजर्व’ है। भले ही बीजेपी के पास पैसा, ताकत, मीडिया और कार्यकर्ता सब कुछ हो, लेकिन नीतीश कुमार इन सबके बिना भी उन पर भारी पड़ गए।
शपथ ग्रहण या ‘संतोषजनक’ समारोह?
इस शपथ ग्रहण को अगर ‘संतोषजनक समारोह’ कहा जाए तो गलत नहीं होगा। बीजेपी को कई चीजों से संतोष करना पड़ा है—स्पीकर पद से, कुछ ज्यादा मंत्री पदों से और दो-दो डिप्टी सीएम (सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा) से। लेकिन मुख्यमंत्री का पद न मिलने का ‘मलाल’ शायद इन सब से भी नहीं भरा जा सकता। शपथ ग्रहण के दौरान नीतीश कुमार की देह भाषा भी विजय मुद्रा वाली नहीं थी। 74 साल के नीतीश कुमार पीएम मोदी के सामने थके हुए और बस ‘बिठा दिए गए’ जैसे लग रहे थे।
मंत्रिमंडल में वही पुराने चेहरे, परिवारवाद या राष्ट्रवाद?
नीतीश कुमार का नया मंत्रिमंडल भी लगभग पुराने जैसा ही है। उन्होंने अपने कोटे से उन्हीं 8 चेहरों को मंत्री बनाया जो पहले से थे। वहीं, बीजेपी कोटे से दीपक प्रकाश पहली बार मंत्री बने हैं, जो उपेंद्र कुशवाहा के बेटे हैं। वीडियो रिपोर्ट के मुताबिक, चूंकि वे बीजेपी के साथ हैं, इसलिए उन पर ‘परिवारवाद’ का ठप्पा नहीं, बल्कि ‘राष्ट्रवाद’ की मुहर है। नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में महिलाओं की भागीदारी भी नाममात्र (26 में से सिर्फ 3) है, जबकि महिला वोटरों की खूब चर्चा होती है।
विकास के वादे और पलायन की टीस
मंच से 50 लाख करोड़ के निवेश और मेक इन इंडिया (Make in India) के बड़े-बड़े वादे किए गए, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। बिहार आज भी 6000 रुपये महीने की कमाई वाला राज्य है। छठ के बाद स्टेशनों पर पलायन करती भीड़, ट्रेनों में जानवरों की तरह ठुंसे लोग और उनकी आंखों में तैरती बेबसी—यह सब बताता है कि बिहार अभी भी 2005 वाली स्थिति में ही खड़ा है। पुल-पुलिया तो बन गए, लेकिन आम आदमी की जिंदगी नहीं बदली।
जानें पूरा मामला (Background)
हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव के बाद एनडीए (JDU+BJP) ने फिर से सरकार बनाई है। चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने कभी खुलकर नीतीश कुमार को सीएम फेस नहीं बताया था, जिससे कयास लग रहे थे कि शायद इस बार बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। लेकिन चुनाव नतीजों के बाद पुरानी स्थिति ही बहाल रही। नीतीश कुमार सीएम बने और बीजेपी को डिप्टी सीएम व अन्य मंत्री पदों से संतोष करना पड़ा। यह समारोह उसी राजनीतिक घटनाक्रम की परिणति था।
मुख्य बातें (Key Points)
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नीतीश कुमार ने 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
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बीजेपी के सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा बने डिप्टी सीएम।
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पीएम मोदी समारोह में मौजूद रहे, लेकिन बीजेपी अपना सीएम बनाने में नाकाम रही।
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मंत्रिमंडल में ज्यादा बदलाव नहीं, महिलाओं की भागीदारी बेहद कम।
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शपथ ग्रहण में जोश की कमी और नीतीश कुमार की ‘असहज’ देह भाषा चर्चा का विषय रही।






