Premanand Maharaj : वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज ने आजकल गाड़ियों पर ‘ऊं नमः शिवाय’ या ‘जय श्री राम’ जैसे मंत्र लिखवाने के ट्रेंड पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। एक भक्त के सवाल पर उन्होंने साफ कहा कि गाड़ियों और घरों के बाहर मंत्र लिखवाना “नरक जाने का रास्ता” है, क्योंकि यह मंत्रों का घोर अपमान है।
‘मंत्र कीर्तन नहीं, जप होता है’
प्रेमानंद महाराज ने ‘ऊं नमः शिवाय’ (पंचाक्षरी मंत्र) का उदाहरण देते हुए कहा कि शिवपुराण में इसका विधान बहुत गंभीर है। यह मंत्र गुरु से दीक्षा लेकर जपा जाता है, यह सार्वजनिक उच्चारण की वस्तु नहीं है। उन्होंने कहा कि आजकल फिल्मों, सिनेमा और मंचों पर इसका उच्चारण होने लगा है, इस तरह से मंत्र सिद्ध नहीं होता।
महाराज जी ने स्पष्ट किया, “मंत्र कीर्तन नहीं होता, मंत्र जप होता है। नाम कीर्तन (जैसे हरे कृष्ण) कर सकते हो, खूब करो, इसमें कोई मनाही नहीं।”
‘दिखावे से नहीं मिलता फल’
उन्होंने कहा कि मंत्र जब तक भीतर नहीं उतरेगा और मन में निरंतर नहीं चलेगा, तब तक वह सिद्ध नहीं होता। प्रेमानंद महाराज ने कहा, “जो अंदर से चल रहा है, जिसे कोई जान नहीं रहा, वही सच्चा तप है। दिखावे के लिए जो बोलते हैं, वो साधना नहीं, प्रदर्शन है।”
‘शास्त्रों की विधि का पालन करें’
प्रेमानंद महाराज ने समझाया कि मंत्र दो प्रकार के होते हैं- उपांशु (धीमे स्वर में) और मानसिक (मन में)। जब तक इन शास्त्रीय विधियों का पालन नहीं होगा, तब तक साधना से कल्याण नहीं होगा। उन्होंने कहा कि मनमाने आचरण से केवल विकार बढ़ेंगे, क्योंकि मंत्र जपने से ही हृदय पवित्र होता है और भगवत-साक्षात्कार की योग्यता आती है।
क्यों उठा यह सवाल?
यह पूरा प्रसंग तब शुरू हुआ जब एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज से सवाल पूछा कि आजकल लोग अपनी गाड़ियों के बंपर या शीशों पर ‘ऊं नमः शिवाय’, ‘जय श्री राम’ या ‘जय माता दी’ जैसे मंत्र लिखवा लेते हैं, क्या यह सही है? इसी के जवाब में महाराज जी ने यह सख्त चेतावनी दी।
मुख्य बातें (Key Points):
- प्रेमानंद महाराज ने गाड़ी पर मंत्र लिखवाने को ‘नरक का रास्ता’ और मंत्रों का अपमान बताया है।
- उन्होंने कहा कि मंत्र हृदय में जपने की चीज है, बाहर प्रदर्शन करने की नहीं।
- महाराज जी ने समझाया कि ‘मंत्र जप’ (जैसे ‘ऊं नमः शिवाय’) होता है, जबकि ‘नाम कीर्तन’ किया जा सकता है।
- उन्होंने चेतावनी दी कि मनमाने आचरण और दिखावे से साधना सिद्ध नहीं होती, बल्कि विकार बढ़ते हैं।






