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Delhi’s ‘Cloud Seeding’ FAIL: 1 करोड़ स्वाहा, बारिश 0…

IIT कानपुर का प्रयोग लगातार तीसरी बार नाकाम, कम नमी ने बिगाड़ा खेल, एक्सपर्ट्स ने बताया 'करोड़ों का तमाशा'

The News Air by The News Air
गुरूवार, 30 अक्टूबर 2025
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Delhi's 'Cloud Seeding' FAIL
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Delhi Pollution Control : दिल्ली की जहरीली हवा को साफ करने के लिए ‘शॉर्टकट’ के तौर पर आजमाया गया ‘क्लाउड सीडिंग’ (कृत्रिम बारिश) का प्रयोग लगातार तीसरी बार फेल हो गया है। IIT कानपुर के साथ मिलकर किए गए इन तीन प्रयोगों पर 1.07 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं, लेकिन नतीजा ‘जीरो’ रहा है।

अब इस महंगे प्रयोग की वैज्ञानिक समझ और करोड़ों के खर्च पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह सिर्फ एक ‘महंगा जुआ’ था?

1 करोड़ खर्च, नतीजा सिफर दिल्ली सरकार ने सर्दियों के लिए पांच ट्रायल का कुल बजट 3.21 करोड़ रुपये रखा था। एक औसत ट्रायल का खर्च 35 लाख रुपये से अधिक है। 28 अक्टूबर को हुए एक ट्रायल की लागत ही 60 लाख रुपये आई। अब तक हुए तीन असफल प्रयासों पर 1.07 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, और दिल्ली को प्रदूषण से कोई राहत नहीं मिली है।

यह प्रयोग इतना महंगा क्यों है? IIT कानपुर के मुताबिक, इस प्रयोग में विमान का रखरखाव, पायलट की फीस और विमान का कानपुर से दिल्ली तक 400 किमी का सफर शामिल है। विमान में फ्लेयर रैक, सिल्वर आयोडाइड मिक्सचर, सेंसर और रडार सिस्टम जैसे खास तकनीकी बदलावों पर भी 5 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आता है।

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क्यों फेल हुआ वैज्ञानिक ‘जुगाड़’? यह प्रयोग वैज्ञानिक आधार पर ही कमजोर था। IIT कानपुर के अनुसार, मंगलवार को जब ट्रायल किया गया, तब बादलों में नमी (Humidity) सिर्फ 10-15% थी। कृत्रिम बारिश के लिए कम से कम 50-60% नमी की जरूरत होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली में सर्दियों का मौसम वैसे भी बहुत सूखा होता है, जिससे इस मौसम में क्लाउड सीडिंग की सफलता लगभग नामुमकिन है।


यह पहली बार नहीं है कि भारत में कृत्रिम बारिश की कोशिश हुई। दिल्ली में 1957 और 1972 में ‘सूखे’ से राहत के लिए इसे आजमाया गया था। हालांकि, ‘प्रदूषण’ कम करने के लिए यह पहला प्रयोग था। आंध्र प्रदेश ने भी 2004 से 2009 के बीच सूखे के लिए इस पर 119 करोड़ रुपये खर्च किए थे, लेकिन नतीजे संतोषजनक नहीं रहे।


एक्सपर्ट्स ने बताया ‘महंगा तमाशा’ कई पर्यावरण विशेषज्ञों ने सरकार की इस कोशिश को ‘शॉर्टकट’ बताते हुए आलोचना की है। पर्यावरणविद् विमलेंदु झा ने इसे “महंगा तमाशा” करार दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण की असली वजह पराली, धूल, ट्रैफिक और औद्योगिक धुआं है। इन असली समाधानों पर काम करने की बजाय ऐसे महंगे प्रयोगों पर पैसा खर्च करना समझदारी नहीं है, जिनका असर सिर्फ एक-दो दिन रहता है।


खबर की मुख्य बातें (Key Points)
  • IIT कानपुर के साथ दिल्ली सरकार का ‘क्लाउड सीडिंग’ प्रयोग लगातार तीन बार फेल हो गया है।
  • तीन असफल ट्रायल पर अब तक 1.07 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं, लेकिन एक बूंद बारिश नहीं हुई।
  • प्रयोग की विफलता का मुख्य कारण बादलों में नमी की भारी कमी (सिर्फ 10-15%) थी, जबकि 50-60% की जरूरत होती है।
  • पर्यावरण विशेषज्ञों ने इसे ‘महंगा तमाशा’ और ‘शॉर्टकट’ बताते हुए असली समाधान (जैसे पराली, धूल) पर काम करने की सलाह दी है।
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