Pakistan Hybrid Government को लेकर एक बार फिर पाकिस्तान में सियासी तूफान खड़ा हो गया है। इस बार बहस की वजह बना है खुद पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ (Khawaja Asif) का बयान, जिसमें उन्होंने सेना और सरकार के गठबंधन को ‘हाइब्रिड सिस्टम’ कहकर उसका समर्थन किया। मामला तब और गरमाया जब सेना प्रमुख असीम मुनरो (Asim Munir) की डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) से लंच मीटिंग हुई और उस पर ख्वाजा आसिफ ने ट्वीट करके तारीफ की।
इस मसले पर डॉन (Dawn) जैसे प्रतिष्ठित पाकिस्तानी अखबार ने तीखी आलोचना करते हुए सवाल उठाया कि क्या सेना और सरकार का ऐसा गठबंधन लोकतंत्र का अपमान नहीं है? संपादकीय में कहा गया कि मंत्री इस मॉडल की तारीफ इस तरह कर रहे हैं जैसे यह पाकिस्तान के लिए गर्व की बात हो।
ख्वाजा आसिफ ने अपने पोस्ट में लिखा कि पाकिस्तान की स्थिति में जो सुधार आया है, वह इस्लामाबाद (Islamabad) और रावलपिंडी (Rawalpindi) के बीच रिश्तों के बेहतर होने का नतीजा है। गौरतलब है कि इस्लामाबाद पाकिस्तान की राजधानी है, जबकि रावलपिंडी सेना मुख्यालय। इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर यह मुद्दा बहस का केंद्र बन गया। कई लोगों ने यह भी पूछा कि क्या वही व्यक्ति ये कह रहा है जिसकी पार्टी ने कभी ‘सिविलियन सुप्रीमेसी’ (नागरिक प्रधानता) का नारा दिया था?
रक्षा मंत्री ने अरब न्यूज (Arab News) को दिए इंटरव्यू में भी इस हाइब्रिड शासन प्रणाली को सराहा और कहा कि यह मॉडल पाकिस्तान में चमत्कार कर रहा है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर 1990 के दशक में यह मॉडल अपनाया गया होता, जब नवाज़ शरीफ़ (Nawaz Sharif) दो बार प्रधानमंत्री बने, तो देश की हालत बेहतर होती। उन्होंने माना कि सेना और राजनीतिक नेतृत्व के बीच टकराव ही लोकतंत्र की प्रगति को रोकता है।
हालांकि, इस बयान के बाद पाकिस्तानी विश्लेषकों ने ख्वाजा आसिफ के बयान की तह तक जाकर उसकी निंदा की है। डॉक्टर रसूल बख्श रईस (Dr. Rasool Bakhsh Rais) ने कहा कि यह पाकिस्तान की तीसरी हाइब्रिड सरकार है। उन्होंने बताया कि पहले जनरल ज़ियाउल हक (Zia-ul-Haq) और जनरल परवेज़ मुशर्रफ (Pervez Musharraf) ने राजनीतिक मोर्चे बनाए थे, लेकिन इस बार खुद पीएमएल-एन (PML-N) और पीपीपी (PPP) जैसे दल फौज के लिए मुखौटा बनकर काम कर रहे हैं। उनका उद्देश्य है – अपने खिलाफ़ केस खत्म कराना और इमरान खान (Imran Khan) की पीटीआई (PTI) को खत्म करना।
सबसे बड़ा सवाल तब उठा जब सेना प्रमुख असीम मुनरो अमेरिका में ट्रंप से मिले, लेकिन इस मीटिंग में प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ (Shahbaz Sharif) नदारद रहे। डॉक्टर रईस के अनुसार, इससे यह साफ़ हो गया कि पाकिस्तान की असली सत्ता का केंद्र प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि सेना है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक अहमद बिलाल महबूब (Ahmed Bilal Mehboob) ने भी माना कि ख्वाजा आसिफ पहले नेता नहीं हैं जिन्होंने इस ‘हाइब्रिड सिस्टम’ को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि इमरान खान के कार्यकाल में भी सेना ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति और बजट जैसे निर्णयों में अहम भूमिका निभाई थी।
इस तरह, पाकिस्तान में एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या वाकई में वहां लोकतंत्र है, या सेना की छाया में काम करती एक दिखावटी सरकार?






