MGNREGA Spending Cap : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) में पहली बार केंद्र सरकार ने खर्च की सीमा तय कर दी है, जिसने ग्रामीण रोजगार (Rural Employment) को लेकर नई बहस छेड़ दी है। यह योजना, जो देशभर के ग्रामीण इलाकों में श्रमिकों को 100 दिन के रोजगार की गारंटी देती है, अब वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में 60% खर्च सीमा के दायरे में होगी। इस फैसले से ग्रामीण विकास (Rural Development) और रोजगार सृजन पर क्या असर पड़ेगा? आइए जानते हैं इस खबर की पूरी सच्चाई।
केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) के लिए ऐतिहासिक फैसला लिया है। पहली बार इस योजना पर खर्च की सीमा लागू की गई है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय (Ministry of Rural Development) ने वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में मनरेगा (MGNREGA) के तहत होने वाले खर्च को कुल वार्षिक आवंटन का 60% तक सीमित कर दिया है। अब तक यह योजना मांग के आधार पर संचालित होती थी, जिसमें खर्च की कोई सीमा नहीं थी। इंडियन एक्सप्रेस (Indian Express) की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) ने इस योजना को मासिक/त्रैमासिक व्यय योजना (MEP/QEP) के दायरे में लाने का निर्देश दिया है, जो खर्च पर नियंत्रण का एक तरीका है।
रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) ने 29 मई, 2025 को ग्रामीण विकास मंत्रालय (Ministry of Rural Development) को एक पत्र भेजकर मनरेगा (MGNREGA) के लिए 60% खर्च सीमा तय करने की जानकारी दी। यह व्यवस्था इसलिए लागू की गई, ताकि कैश फ्लो को नियंत्रित किया जा सके और गैर-जरूरी उधारी को कम किया जाए। बता दें कि 2017 में वित्त मंत्रालय ने मासिक/त्रैमासिक व्यय योजना (MEP/QEP) की शुरुआत की थी, लेकिन मनरेगा को इससे छूट दी गई थी। हालांकि, वित्त वर्ष 2025-26 की शुरुआत में ही वित्त मंत्रालय ने साफ कर दिया कि अब मनरेगा को भी इस ढांचे में शामिल करना होगा।
ग्रामीण विकास मंत्रालय (Ministry of Rural Development) ने वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) के बजट विभाग को मनरेगा (MGNREGA) के लिए एक खर्च योजना पेश की थी, जिसमें पहली दो तिमाहियों में अधिक खर्च की मंजूरी मांगी गई थी। लेकिन वित्त मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और खर्च को 60% तक सीमित कर दिया। इसका मतलब है कि सितंबर 2025 तक कुल बजटीय आवंटन का केवल 60% ही खर्च किया जा सकता है। बाकी 40% राशि अगली दो तिमाहियों में खर्च की जाएगी। इस फैसले से मनरेगा के तहत ग्रामीण सड़क निर्माण (Rural Road Construction), सिंचाई (Irrigation), और जल संरक्षण (Water Conservation) जैसे कार्य प्रभावित हो सकते हैं।
वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए मनरेगा (MGNREGA) का कुल बजट आवंटन 86,000 करोड़ रुपये है। नई व्यवस्था के तहत, पहली छमाही में केवल 51,600 करोड़ रुपये ही खर्च किए जा सकते हैं। अधिकारियों के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष की लगभग 21,000 करोड़ रुपये की देनदारियां अभी भी लंबित हैं। ऐसे में नई खर्च सीमा से ग्रामीण रोजगार (Rural Employment) सृजन पर असर पड़ सकता है। यह फैसला तब आया है, जब लोग 100 दिन की रोजगार गारंटी को बढ़ाकर 150 दिन करने और दैनिक मजदूरी (Daily Wage) को 370 रुपये से बढ़ाकर 400 रुपये करने की मांग कर रहे हैं। कुछ राज्यों में मजदूरी पहले से ही 400 रुपये प्रतिदिन है।
यह फैसला ग्रामीण भारत (Rural India) के लिए एक बड़ा बदलाव ला सकता है, क्योंकि मनरेगा (MGNREGA) ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक मजबूत आधार है। इस योजना के तहत लाखों श्रमिकों को रोजगार मिलता है, और यह ग्रामीण विकास (Rural Development) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खर्च सीमा लागू होने से कई राज्यों में रोजगार के अवसर कम हो सकते हैं, जिससे ग्रामीण श्रमिकों की आजीविका पर असर पड़ सकता है। सरकार का कहना है कि यह कदम वित्तीय अनुशासन के लिए जरूरी है, लेकिन इसका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलेगा। यह मामला अब चर्चा का विषय बन गया है, और लोग इस फैसले के दीर्घकालिक प्रभावों को जानना चाहते हैं।






