Bengaluru Stampede Tragedy : बेंगलुरु (Bengaluru) के चिन्नास्वामी स्टेडियम (Chinnaswamy Stadium) के पास हुई भगदड़ की घटना ने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया है। इस हादसे में 11 लोगों की मौत और 75 से अधिक घायल हो गए। कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने गुरुवार को इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और 10 जून तक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने इस त्रासदी पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि समाचार पत्रों के माध्यम से जो जानकारी सामने आई है, उससे स्थिति की गंभीरता स्पष्ट होती है।
राज्य सरकार ने कोर्ट में दावा किया कि मौके पर 1000 से अधिक पुलिसकर्मी, जिनमें पुलिस कमिश्नर, डीसीपी और एसपी भी शामिल थे, तैनात थे। जबकि डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार (DK Shivakumar) का दावा है कि 5000 पुलिसकर्मी मौजूद थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि कार्यक्रम स्थल पर एंबुलेंस की तैनाती कहां थी, इसकी जानकारी भी दी जाए।
वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण श्याम (Arun Shyam) ने कोर्ट में प्रस्तुत किया कि विधान सौधा (Vidhana Soudha) और स्टेडियम दोनों स्थानों पर कार्यक्रम थे, इसलिए आपदा प्रबंधन की भूमिका स्पष्ट होनी चाहिए। हाई कोर्ट ने इस मामले को स्वतः संज्ञान याचिका के रूप में पंजीकृत कर 10 जून (10 June) को फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
कर्नाटक के अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि स्टेडियम के पास 2.5 लाख से ज्यादा लोग जुटे थे जबकि पुलिस बल में कुल 1483 अधिकारी तैनात थे। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार इस घटना को लेकर बेहद गंभीर है और मुख्यमंत्री (CM) के पहले बयान में मुआवजा और इलाज की व्यवस्था की बात की गई थी।
इस केस में याचिकाकर्ता के वकील ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि RCB (Royal Challengers Bangalore) के खिलाड़ियों को सम्मानित करने का निर्णय किसने लिया। उन्होंने कहा कि तीन गेट खोलने की अनुमति देना और स्टेडियम की क्षमता से ज्यादा भीड़ एकत्र करना प्रशासन की आपराधिक लापरवाही है।
इसी बीच, बेंगलुरु शहरी उपायुक्त जी जगदीश (G Jagadeesh) ने स्टेडियम का दौरा कर कहा कि वह 15 दिनों के भीतर जांच पूरी करेंगे। उन्होंने बताया कि वह केएससीए (KSCA), आरसीबी प्रबंधन, इवेंट मैनेजर और पुलिस कमिश्नर बी दयानंद (B Dayananda) को नोटिस भेजेंगे और लोगों से साक्ष्य मांगेंगे। उन्होंने कहा कि वे इस बात की जांच करेंगे कि इस त्रासदी के लिए कौन जिम्मेदार है, लेकिन यह कार्यप्रणाली पूरी होने के बाद ही निष्कर्ष दिया जा सकता है।
यह मामला अब सिर्फ एक हादसा नहीं बल्कि प्रशासनिक विफलता और भीड़ नियंत्रण में लापरवाही का प्रतीक बन चुका है, जिसे लेकर कोर्ट, जनता और शासन तीनों के बीच सवालों की लहर दौड़ गई है।






