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Rashtrapati vs Supreme Court: क्या Article 143 पलटेगा Apex Court का फैसला?

8 April Verdict पर संकट! राष्ट्रपति की आपत्ति से बदल सकता है सुप्रीम आदेश?

The News Air by The News Air
Saturday, 17th May, 2025
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President objection What does Article 143 say
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Article 143 Supreme Court Verdict : भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने अनुच्छेद 143(1) [Article 143(1)] के तहत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से एक अहम संवैधानिक सलाह मांगी है, जिससे भारत के संघीय ढांचे और कार्यपालिका की भूमिका पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। राष्ट्रपति ने यह सवाल उठाया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय के लिए राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए कोई समयसीमा तय कर सकता है? यह सवाल 8 अप्रैल के उस ऐतिहासिक फैसले के बाद उठा जिसमें कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों को तीन माह के भीतर निपटाना अनिवार्य है।

क्या है अनुच्छेद 143(1)?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 143(1) [Article 143(1)] राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह किसी कानूनी या संवैधानिक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह ले सकें। हालांकि कोर्ट की राय बाध्यकारी नहीं होती, परंतु इसका संवैधानिक और राजनीतिक महत्व अत्यधिक होता है। इस राय को संविधान के अनुच्छेद 145(3) [Article 145(3)] के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच देती है। राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए इस नए संदर्भ में कुल 14 कानूनी सवाल शामिल हैं।

क्या सुप्रीम कोर्ट राय देने से इनकार कर सकता है?

इतिहास गवाह है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी दो बार राष्ट्रपति की सलाह को अस्वीकार किया है। 1993 में जब राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (Ram Janmabhoomi–Babri Masjid) विवाद पर मंदिर की पूर्वस्थिति को लेकर राय मांगी गई थी, तब कोर्ट ने इसे धार्मिक भावना और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ मानते हुए अस्वीकार कर दिया था। इससे पहले 1982 में पाकिस्तान से आए प्रवासियों के पुनर्वास कानून पर राय मांगी गई थी, लेकिन वह मुद्दा बाद में अप्रासंगिक हो गया।

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क्या यह निर्णय पलटने का प्रयास है?

कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि अनुच्छेद 143 का उपयोग किसी फैसले की समीक्षा या पुनर्विचार के लिए नहीं किया जा सकता। 1991 में कावेरी जल विवाद (Cauvery Water Dispute) पर भी कोर्ट ने यही कहा था कि पहले से आए निर्णयों पर राष्ट्रपति की राय मांगना न्यायपालिका की गरिमा के विरुद्ध है। अगर सरकार को किसी निर्णय पर आपत्ति है, तो उसे पुनर्विचार याचिका (Review Petition) या क्युरेटिव याचिका (Curative Petition) दायर करनी चाहिए, न कि अनुच्छेद 143 का सहारा लेना चाहिए।

राष्ट्रपति ने पूछे कौन-कौन से सवाल?

भेजे गए 14 सवालों में अधिकतर 8 अप्रैल के फैसले से संबंधित हैं। प्रश्न संख्या 12 में पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को यह पहले तय करना चाहिए कि कोई मामला संविधान की व्याख्या से जुड़ा है या नहीं, जिससे वह उसे बड़ी पीठ के पास भेज सके। वहीं, प्रश्न संख्या 13 में अनुच्छेद 142 (Article 142) यानी सुप्रीम कोर्ट की “पूर्ण न्याय की शक्ति” की सीमाएं जाननी चाही गई हैं। प्रश्न संख्या 14 में यह पूछा गया है कि केंद्र-राज्य विवादों की मूल सुनवाई का अधिकार केवल सुप्रीम कोर्ट को है या अन्य अदालतों को भी?

कार्यपालिका और न्यायपालिका में टकराव?

इस पूरे घटनाक्रम के मूल में वो स्थिति है जब राज्यपाल (Governor) विपक्ष-शासित राज्यों के विधेयकों को लंबित रखते हैं या राष्ट्रपति को भेज देते हैं। उदाहरणस्वरूप, तमिलनाडु (Tamil Nadu) के राज्यपाल आर एन रवि (R N Ravi) ने 10 विधेयकों को राष्ट्रपति को भेज दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे केंद्र-राज्य संबंधों में संतुलन से जोड़ा और समयसीमा को आवश्यक बताया। लेकिन राष्ट्रपति को निर्देश मिलने के बाद केंद्र सरकार ने इसे कार्यपालिका के अधिकारों पर आघात माना। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) और महान्यायवादी आर वेंकटरमणी (Attorney General R Venkataramani) ने इसे कार्यपालिका की गरिमा के विरुद्ध बताया।

यह घटनाक्रम स्पष्ट करता है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच की संवैधानिक सीमाएं एक बार फिर चर्चा में हैं और आने वाले समय में सुप्रीम कोर्ट की राय का राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर पड़ सकता है।

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