नई दिल्ली, 11 जनवरी (The News Air) उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने शनिवार को कर्नाटक (Karnataka) के बेंगलुरु में 25वें राष्ट्रीय सम्मेलन में लोक सेवा आयोग (Public Service Commissions) और यूपीएससी (UPSC) के कार्यों और वर्तमान स्थितियों पर गंभीर टिप्पणी की। उन्होंने सेवा विस्तार (Service Extension), पेपर लीक (Paper Leak), और राजनीति की विभाजनकारी प्रकृति (Divisive Politics)** जैसे मुद्दों पर बेबाकी से अपने विचार व्यक्त किए।
Hon'ble Vice-President, Shri Jagdeep Dhankhar addressed the inaugural session of the 25th National Conference of the Chairpersons of State Public Service Commission in Bengaluru, Karnataka today. @TCGEHLOT @siddaramaiah #NationalConferenceOfStatePSCs pic.twitter.com/IAqcA94xY2
— Vice-President of India (@VPIndia) January 11, 2025
सेवा विस्तार पर उपराष्ट्रपति की सख्ती : उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सेवा विस्तार और सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों (Post-Retirement Appointments) पर सवाल उठाते हुए कहा: “सेवा में विस्तार उन्हीं लोगों को दिया जाता है जो लाइन में हैं। यह ‘अपेक्षा के तार्किक सिद्धांत’ (Doctrine of Legitimate Expectations) की अवहेलना है। इस देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। कोई भी अपरिहार्य नहीं है।” उन्होंने लोक सेवा आयोगों (State PSCs) और यूपीएससी को निष्पक्षता बनाए रखने के लिए दृढ़ रहने की सलाह दी।
पेपर लीक: युवा पीढ़ी का भरोसा डगमगा रहा है : पेपर लीक (Paper Leaks) के बढ़ते मामलों पर उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए इसे एक “व्यापार” करार दिया।
उन्होंने कहा:“यदि पेपर लीक होते रहेंगे, तो चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता का कोई मतलब नहीं रहेगा। युवाओं में अब परीक्षा के साथ-साथ पेपर लीक का डर भी जुड़ गया है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।”
राजनीति की ध्रुवीकृत प्रकृति पर निशाना : उपराष्ट्रपति ने देश की राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण (Political Polarization) पर चिंता व्यक्त की। “इस समय राजनीति अत्यधिक विभाजनकारी और ध्रुवीकृत है। बातचीत के चैनल बंद हो चुके हैं। हमें एक शांत राजनीतिक माहौल की जरूरत है ताकि भारत का विकास सुनिश्चित हो सके।”
उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति में सामंजस्य (Harmony in Politics) सिर्फ इच्छाधारी सोच नहीं बल्कि एक आवश्यकता है।
संस्थानों को मजबूत करने की अपील : श्री धनखड़ ने संस्थानों (Institutions) की मजबूती पर जोर देते हुए कहा कि किसी भी संस्था को कमजोर करना पूरे देश के लिए नुकसानदायक है। “संस्थानों का कमजोर होना ऐसा है जैसे शरीर में चुभन हो। पूरा देश उस दर्द को महसूस करेगा। राज्यों और केंद्र को तालमेल के साथ काम करना होगा।”
बुद्धिजीवियों पर टिप्पणी: ‘सार्थक भूमिका निभाने की जरूरत’ : बुद्धिजीवियों (Intellectuals) की भूमिका पर उन्होंने कहा: “बुद्धिजीवियों को समाज में वैमनस्य को शांत करने की दिशा में काम करना चाहिए। लेकिन आजकल ज्ञापन पर हस्ताक्षर करना सत्ता में पद पाने का पासवर्ड बन गया है। यह प्रवृत्ति चिंताजनक है।”
उन्होंने कहा कि पूर्व नौकरशाहों और राजनयिकों को राजनीति से परे रहते हुए निष्पक्षता का पालन करना चाहिए।
सम्मेलन में उपस्थित गणमान्य व्यक्ति : इस राष्ट्रीय सम्मेलन में कर्नाटक के राज्यपाल श्री थावरचंद गहलोत (Thawar Chand Gehlot), मुख्यमंत्री श्री सिद्धारमैया (Siddaramaiah), यूपीएससी अध्यक्ष श्रीमती प्रीति सूदन (Preeti Sudan)** और विभिन्न राज्य लोक सेवा आयोगों के अध्यक्ष उपस्थित रहे।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अपनी तीखी टिप्पणियों और सुझावों के माध्यम से लोक सेवा आयोगों, राजनीति और संस्थानों को सुधारने की दिशा में नए दृष्टिकोण प्रस्तुत किए। उनका यह बयान देश की शासन व्यवस्था को एक नई दिशा देने की अपील करता है।