चंडीगढ़, 08 जनवरी (The News Air) पंजाब के किसान आंदोलन में फिर से हलचल मच गई है। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल (Jagjit Singh Dallewal) खनौरी बॉर्डर (Khanouri Border) पर डेढ़ महीने से अनशन पर हैं। साथ ही हजारों किसान टेंट लगाकर डटे हुए हैं। यहां तक कि 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकालने की तैयारी हो चुकी है। लेकिन सवाल यह है कि हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh) के किसान इस आंदोलन से दूर क्यों हैं?
हरियाणा के किसानों की खामोशी : हरियाणा में किसान आंदोलन वैसा जोर नहीं पकड़ पाया जैसा पंजाब में दिख रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं।
- राजनीतिक स्थिति: हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में हरियाणा में भाजपा (BJP) की सरकार वापस लौटी है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी (Nayab Singh Saini) ने किसानों के लिए भावांतर भरपाई योजना (Bhavantar Bharpai Yojana) शुरू की है। इसके तहत अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में कोई कमी होती है, तो किसानों को मुआवजा दिया जाता है।
- एमएसपी पर समर्थन: हरियाणा सरकार ने 24 फसलों को MSP पर खरीदने की योजना लागू की है। इससे किसानों को फायदा हुआ है और आंदोलन की जरूरत कम महसूस हो रही है।
- संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा नहीं: पंजाब के संगठनों द्वारा चलाए जा रहे इस आंदोलन का हिस्सा हरियाणा के किसान नहीं हैं। कुछ किसान नेताओं का कहना है कि उन्हें सम्मान के साथ बुलाया जाए, तभी वे शामिल होंगे।
यूपी के किसानों की चुप्पी : पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान भी इस आंदोलन में सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। जानकार मानते हैं कि इसका कारण क्षेत्रीय मुद्दों की प्राथमिकता है। यूपी के किसान वर्तमान में गन्ना भुगतान और बिजली दरों जैसे स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
पंजाब के किसानों का संघर्ष : जगजीत सिंह डल्लेवाल का अनशन अभी भी जारी है। डॉक्टरों की सलाह और इलाज के अनुरोध को उन्होंने ठुकरा दिया है। उनकी मांगें स्पष्ट हैं—केंद्र सरकार से एमएसपी कानून की गारंटी।
क्या होगा आगे? : 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली से किसान आंदोलन को नई दिशा मिलने की उम्मीद है। लेकिन हरियाणा और यूपी के किसानों की चुप्पी इस आंदोलन को सीमित कर सकती है।