सिर्फ प्रेस रिलीज जारी कर देने भर से कानून नहीं बदल जाते… सुप्रीम कोर्ट को क्यों करनी पड़ी यह टिप्पणी

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में कहा कि नीति में बदलाव के संबंध में कैबिनेट के फैसले पर सरकार ने जारी प्रेस विज्ञप्ति को कानून नहीं माना जा सकता है। इसके आधार पर लाभ का दावा नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा माना जाएगा कि नया कानून अधिसूचना जारी होने पर लागू होगा। जस्टिस बी आर गवई, प्रशांत कुमार मिश्रा और के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी करने का मतलब यह नहीं है कि मौजूदा कानून या नीति उसी दिन से बदल गई है। यह सरकार द्वारा एक वादा है, न कि कानून में अपने आप बदलाव।

कोर्ट ने नाभा पावर लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी, जिसमें पीआईबी की ओर से मेगा पावर परियोजनाओं के लिए सीमा शुल्क छूट के लिए नए कानूनी व्यवस्था पर कैबिनेट के फैसले पर जारी प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर राहत मांगी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

हालांकि प्रेस विज्ञप्ति 1 अक्टूबर 2009 को जारी की गई थी, वित्त मंत्रालय ने 11 और 14 दिसंबर 2009 को अधिसूचनाएं जारी की थीं। कंपनी ने दलील दी थी कि यह माना जाना चाहिए कि कानून में प्रेस विज्ञप्ति की तारीख को संशोधन किया गया था, जिसे कानून माना जा सकता है। पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि हमारी राय में, प्रेस विज्ञप्ति ने 01.10.2009 को मौजूदा कानून को नहीं बदला/संशोधित/रद्द नहीं किया। यह सबसे अच्छे प्रस्ताव की घोषणा थी जिसे कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। इसे वहां उल्लिखित शर्तों को पूरा करने के बाद ही आकार दिया जाना था। क्या अपीलकर्ता यह मान सकता था कि 01.10.2009 की प्रेस विज्ञप्ति ने एक नई कानूनी व्यवस्था निर्धारित की है? हमें नहीं लगता और हम उसी अनुसार आदेश देते हैं। प्रेस विज्ञप्ति कैबिनेट के फैसले का सारांश है।

इस दलील में कोई दम नहीं कि…

अदालत ने कहा कि यह (प्रेस विज्ञप्ति) भारत संघ का एक वादा था, न कि कानून में अपने आप परिवर्तन। इसमें कहा गया है कि कानून में बदलाव करने वाली अधिसूचनाएं 11 और 14 दिसंबर, 2009 को हुईं और इस दलील में कोई दम नहीं है कि 1 अक्टूबर को पुरानी कानूनी व्यवस्था खत्म हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि उस मामले में न तो आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के फैसले और न ही प्रेस विज्ञप्ति को कानून में बदलाव के लिए प्रासंगिक तारीख माना गया था और केवल उस तारीख को जिस दिन कार्यालय ज्ञापन जारी किया गया था, जिसमें आगे के निर्देश दिए गए थे। नई कोयला वितरण नीति के कार्यान्वयन को कानून में बदलाव की घटना माना गया था।

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