नई दिल्ली: 1469 में रूस का एक व्यापारी अफनसी निकितिन उत्तरी मॉस्को के एक शहर टवेर से भारत पहुंचा। उसकी नौका महाराष्ट्र के अलीबाग के पास वहीं उतरी, जहां से कुछ दूर ही 25 साल बाद वॉस्कोडिगामा कालीकट के पास पहुंचा था। निकितिन महाराष्ट्र के पास बीदर में बहमनी राज्य में तीन साल के लिए रहा। इसी के बाद से भारत-रूस संबंधों की शुरुआत हुई। वोल्गा से गंगा के बीच कारोबार शुरू हो गया। 1615 के बाद से गुजरात से व्यापारी वोल्गा नदी के किनारे बसे अस्तरखान आते और अच्छी किस्म के सूती कपड़े बेचते।
ये कपड़े तब के रूसी शासक यानी जार को इतना भाते कि वो भारतीयों को राजधानी मॉस्को में अच्छे कपड़े बेचने को कहते। जार शासको ने मॉस्को में एक भारतीयों को वस्त्र उद्योग कायम करने की मंजूरी दे दी। रूस में भारतीय कारोबारियों का एक संपन्न समुदाय विकसित हो गया, जो 19वीं सदी के मध्य तक खूब फला-फूला। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दौरे पर जा रहे हैं, उससे पहले रूस में भारतीयों और भारतीय संस्कृति की मौजूदगी की एक दिलचस्प कहानी जान लेते हैं।
रूसी ने भारत में पहली बार यूरोपीय नाट्य थिएटर बनाया
रूस के यरोस्लाव में रहने वाले एक एक कलाकार गेरासिम लेबदेव ने 1785 के बाद भारत में 12 साल बिताए और रूस में भारतीय विधाओं को आगे बढ़ाया। खासतौर पर रूस में हिंदी, बांग्ला और संस्कृत की किताबों को पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला शुरू किया। लेबदेव ने 1795 में तत्कालीन कलकत्ता में भारत में पहले यूरोपीय शैली नाटक थिएटर की स्थापना की और बंगाली थिएटर का पहला आधुनिक शो आयोजित किया।
पहली बार रूस में भगवद्गीता का अनुवाद, पढ़ी जाती है रामायण
लेबदेव ने भारत-यूरोपीय भाषा विज्ञान पर कई किताबें संकलित की और पहला बंगाली-रूसी शब्दकोश प्रकाशित किया। उनके बाद 1788 में एक और लेखक निकोलाई नोवीकोव ने पहली बार रूस में भगवद्गीता का पहला रूसी अनुवाद किया और उसे रूस में पॉपुलर बनाया।
19वीं सदी में रूसी शिक्षाविद् काउंट नोवारोव ने 1835 में सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय में एक संस्कृत चेयर की स्थापना की। उस समय वह पब्लिक इंस्ट्रक्शन के मंत्री और विज्ञान के इंपीरियल एकेडमी के अध्यक्ष थे। वहीं, एक और रूसी प्रोफेसर पावेल याकोवलेविच पेत्रोव ने व्याकरण नोट और संस्कृत शब्दावली के साथ रामायण के एक हिस्से का अनुवाद रूसी भाषा में किया।
प्रोफेसर इवान पाब्लोविच तिलक और बंकिम चंद्र दोस्त
रूस के एक और प्रोफेसर इवान पाव्लोविच मिनायेव ने सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय में संस्कृत सिखाई। उन्होंने 1874 और 1886 के बीच भारत की यात्रा की। वह उस वक्त भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दिग्गजों बाल गंगाधर तिलक और बंकिमचंद्र चटर्जी के अच्छे दोस्त भी रहे। इसके अलावा, भारतीय दर्शन और धर्म से प्रभावित होकर एक रूसी महिला हेलेना पेर्टोवना 1852 में भारत में आईं और दशकों तक यहां रहने के बाद उन्होंने 1875 में थियोसोफिकल सोसायटी स्थापित की। उन्नीसवीं सदी में, कई प्रख्यात रूसी कलाकारों ने कैनवास और कागज पर भारत के अपने अनुभवों को लिपिबद्ध किया । ग्रैंड ड्यूक एलेक्सी सल्तीकोव 1841-1843 और 1844-1846 तक भारत में रहा और सेंट पीटर्सबर्ग में उनकी वापसी पर पत्रों पर उनकी किताब और चित्र प्रकाशित हुये जिसने रूसी जनता की कल्पना को साकार किया था।
रूसी शासक के पोते ने महाराजा संग किया बाघ का शिकार
रूसी क्रांति से पहले जब जार वंश का शासन था, तब एक रूसी शासक निकोलस द्वितीय ने दिसंबर, 1890 से लेकर जनवरी 1891 में भारत की यात्रा की। बाद में जार एलेक्जेंडर द्वितीय के पोते ने अपने दोस्त कपूरथला के महाराजा के साथ बाघ का शिकार करने के लिए 1902 में भारत का दौरा किया।
जब हैफकाइन के टीकों ने हजारों भारतीयों के बचाए प्राण
तत्कालीन रूस और अब के यूक्रेन के एक प्रांत ओडेशा में जन्मे माइक्रोबायोलॉजिस्ट व्लादिमीर हैफकाइन 1893 में भारत आए। वह यहां पर करीब 22 साल रहे। उन्होंने मुंबई में रहकर हैजा के संक्रमण के बारे में पता लगाया। उन्होंने तब जानलेवा बन चुके प्लेग और हैजा के खिलाफ टीके का आविष्कार किया, जिसने हजारों जिंदगियां बचाईं। वह मुंबई में एंटी-प्लेग प्रयोगशाला के 1899 में संस्थापक-निदेशक थे। बाद में उनके सम्मान में इस प्रयोगशाला का नाम हैफकाइन इंस्टीट्यूट रखा गया।
रूसी साहित्यकार से प्रभावित थे महात्मा गांधी
रूस के चर्चित साहित्यकार लियो टॉल्स्टॉय हिंदू और बौद्ध धर्म ग्रंथों से बेहद प्रभावित थे। ये वही लियो टालस्टाय हैं, जिनका दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान महात्मा गांधी पर बहुत गहरा प्रभाव था। गांधीजी ने सामुदायिक सेवा के माध्यम से अहिंसा, सत्य और आत्म-साक्षात्कार में अपने प्रारंभिक प्रयोगों के लिए जोहानिसबर्ग के पास टालस्टाय फॉर्म बनाया।
गुरुदेव ने स्टालिन की आलोचना की तो बैन हुईं किताबें
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को जिस कविता संग्रह गीतांजलि के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला, उसमें सार्वभौमिक शांति, प्रेम और सद्भाव की बात की गई है। 1913 में टैगोर की गीतांजलि के रिलीज होने के बाद इसके रूसी भाषा में कई अनुवाद किए गए। टैगोर की लंबे समय से रूस जाने की चाहत 1930 में तब पूरी हुई, जब वह मॉस्को के एक अखबार इस्तेवस्तिया को साक्षात्कार देने पहुंचे थे। उस वक्त टैगोर ने स्टालिन के रूस में ‘मन की आजादी’ की कमी को लेकर खूब आलोचना की थी। जब सोवियत सरकार ने उकनी किताबों के प्रकाशन पर पाबंदी लगा दी थी।
नेहरू 1927 में पिता के साथ पहुंचे थे रूस
जवाहर लाल नेहरू और उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित अपने पिता मोतीलाल नेहरू के साथ 1917 क्रांति की दसवीं सालगिरह के समारोह के लिए पहली बार 1927 में सोवियत संघ गए थे। आजादी के बाद कई प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों ने रूस का दौरा किया। भारत के लिए रूस कितना मायने रखता है, इस बात की तस्दीक इससे होती है कि सोवियत संघ ही वह पहला देश था जिसके साथ भारत ने 13 अप्रैल 1947 को भारत की स्वतंत्रता के चार महीनों बाद ही राजनयिक संबंधों की स्थापना की थी।
मोदी के रूस दौरे से क्यों परेशान हैं अमेरिका-ब्रिटेन
दक्षिण एशियाई यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली में प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि मोदी के रूस दौरे से अमेरिका-ब्रिटेन समेत यूरोपीय देश बेहद परेशान हैं। दरअसल, इन देशों को ये चिंता सता रही है कि व्यापार और रक्षा सहयोग सहित रूस के साथ भारत की लगातार भागीदारी यूक्रेन में रूस की आक्रामकता को रोकने के दबाव के इंटरनेशनल कैंपेन को कमजोर करेगी।
रूस से ज्यादा तेल खरीदता है भारत
अमेरिका और यूरोपीय देश चाहते हैं कि भारत अपनी तेल जरूरतों का बड़ा हिस्सा रूस से खरीदता है। ऐसे में उसे रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का सम्मान करना चाहिए। इस साल की शुरुआत में सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) ने रूस से भारत के कच्चे तेल के आयात पर रिपोर्ट जारी की थी, जो फरवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण करने के समय से 13 गुना बढ़ चुका था। यही वजह है कि भारत-रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2023-24 में 64 अरब डॉलर तक बढ़ गया था। इसमें भारत का निर्यात केवल चार अरब डॉलर है। दरअसल, पश्चिम का मीडिया यह बताता है कि यूक्रेन में हमले से पहले की तुलना में रूस आज ज्यादा समृद्ध है। इसकी बड़ी वजह भारत और चीन हैं, जो रूसी कच्चे तेल के बड़े खरीदार हैं।