Quick Commerce Strike Alert – नए साल के जश्न की तैयारियों में जुटे लोगों के लिए एक बड़ी और बुरी खबर है। अगर आप भी 31 दिसंबर की पार्टी के लिए क्विक कॉमर्स ऐप्स (जैसे ब्लिंकिट, जेप्टो, स्विगी इंस्टामार्ट आदि) के जरिए खाने-पीने का सामान या जरूरी चीजें मंगाने की सोच रहे हैं, तो सावधान हो जाइए। देश भर के गिग वर्कर्स और डिलीवरी बॉयज ने 31 दिसंबर को हड़ताल पर जाने का ऐलान कर दिया है। क्रिसमस पर हुई अचानक स्ट्राइक के बाद, अब डिलीवरी वर्कर्स ने न्यू ईयर ईव पर अपनी सेवाओं को पूरी तरह ठप रखने का फैसला किया है, जिससे आपकी पार्टी का मजा किरकिरा हो सकता है।
16 घंटे काम, कमाई 1000 रुपये भी नहीं
नोएडा से ग्राउंड रिपोर्ट में डिलीवरी वर्कर्स ने अपनी बदहाली की दास्तान बयां की। उनका कहना है कि वे 12 से 16 घंटे कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन इसके बावजूद उनकी जेब में 1000 रुपये भी नहीं आते। एक डिलीवरी पार्टनर ने लाइव अपनी कमाई दिखाते हुए बताया, “कल मैंने 16 घंटे काम किया और मेरी कुल कमाई सिर्फ 1056 रुपये हुई। इसमें से 200 रुपये तो स्कूटी का किराया ही चला जाएगा, पेट्रोल का खर्च अलग। 16 घंटे खटने के बाद हाथ में कुछ नहीं बचता।”
घटता कमीशन और मनमानी कटौती
हड़ताल की मुख्य वजह कंपनियों द्वारा लगातार घटाया जा रहा कमीशन और मनमानी कटौतियां हैं। वर्कर्स का आरोप है कि पहले जो कमाई 90-100 रुपये प्रति घंटा होती थी, वह अब गिरकर 65 रुपये प्रति घंटा रह गई है। दूरी के हिसाब से मिलने वाला पैसा कम कर दिया गया है। इतना ही नहीं, समय पूरा देने के बावजूद कंपनियां छोटी-छोटी वजहों से 100-100 रुपये काट लेती हैं। वर्कर्स का कहना है कि बढ़ती महंगाई में घर का किराया और गाड़ी का खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है।
सबसे ज्यादा डिमांड वाले दिन ठप रहेगी सेवा
31 दिसंबर साल का वह दिन होता है जब क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर ऑर्डर की बाढ़ आ जाती है। स्नैक्स, ड्रिंक्स से लेकर पार्टी के सामान तक, हर चीज की रिकॉर्ड डिमांड होती है। ऐसे पीक टाइम पर हड़ताल का फैसला कंपनियों के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। गिग वर्कर्स का साफ कहना है कि जब तक कंपनियां उनके वेलफेयर के लिए ठोस कदम नहीं उठातीं और सरकार उन्हें पेंशन व अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में शामिल नहीं करती, उनका विरोध जारी रहेगा।
विश्लेषण: ‘सुविधा’ के पीछे का कड़वा सच (Expert Analysis)
क्विक कॉमर्स की दुनिया हमें ’10 मिनट में डिलीवरी’ का वादा करके लुभाती है, लेकिन इस सुविधा की कीमत अक्सर डिलीवरी पार्टनर्स अपनी गिरती सेहत और घटती कमाई से चुका रहे हैं। यह हड़ताल केवल वेतन का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह गिग इकॉनमी (Gig Economy) के उस काले सच को उजागर करती है जहां ‘एल्गोरिदम’ इंसानी जरूरतों पर हावी हो गया है। अगर नए साल पर हड़ताल सफल रहती है, तो यह कंपनियों को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर सकती है। यह उपभोक्ता के लिए भी सोचने का वक्त है कि हमारी ‘इंस्टेंट नीड्स’ को पूरा करने वाले हाथ असल में कितने खाली हैं।
जानें पूरा मामला (Background)
गिग वर्कर्स की नाराजगी काफी समय से चल रही है। क्रिसमस के मौके पर भी देश के कई हिस्सों में अघोषित हड़ताल देखी गई थी। अब 31 दिसंबर को लेकर वर्कर्स ने संगठित होकर विरोध का बिगुल फूंका है। उनकी मुख्य मांगें बेहतर पे-आउट स्ट्रक्चर (Payout Structure), इंसेंटिव में सुधार, और सामाजिक सुरक्षा (Social Security) की गारंटी है।
मुख्य बातें (Key Points)
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31 December को देश भर में क्विक कॉमर्स डिलीवरी ठप रहने की आशंका।
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गिग वर्कर्स ने Payment घटने और काम के घंटे बढ़ने के विरोध में हड़ताल बुलाई है।
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एक वर्कर ने बताया कि 16 घंटे काम करके भी बमुश्किल 1000 रुपये बन रहे हैं।
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कंपनियां समय पूरा देने के बाद भी Penalty के नाम पर पैसे काट रही हैं।
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वर्कर्स की मांग- सरकार उन्हें पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाए।






