नई दिल्ली, 01अगस्त (The News Air): राजधानी दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर में पिछले हफ्ते एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबने से 3 छात्रों की मौत हो गई। ये मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ कि विश्वस्तरीय दिल्ली में बारिश के पानी में डूबने से 2 और मौतें हो गईं। बुधवार को मूसलाधार बारिश के बाद दिल्ली की सड़कें दरिया का रूप ले लीं। गाजीपुर इलाके में भारी जलजमाव में डूबने से 22 साल की एक महिला और उसके 3 साल के बेटे की मौत हो गई। ये हाल सिर्फ दिल्ली का नहीं है। गुरुवार को राजस्थान की राजधानी जयपुर में भारी बारिश के बाद बेसमेंट में डूबने से 3 लोगों की मौत हो गई। देहरादून में आर्मी से रिटायर्ड शख्स समेत 2 की डूबने से मौत हो गई। दिल्ली से सटे गुरुग्राम में राह चलते करंट लगने से 3 जिंदगियां खत्म हो गईं।
सोचकर देखिए कि दुनिया की उभरती महाशक्तियों में खुद को गिन रहा देश, दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाला देश, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी वाला देश, विश्वगुरु बनने का सपना देखने वाला देश, 2047 तक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने को लालायित देश…और उसकी राजधानी में मौसमी बरसात के पानी में डूबने से जिंदगियां चली जा रही हैं। बाकी शहरों का भी वही हाल है। जरा सी बारिश क्या हुई, सड़कें तालाब बन जाती हैं। सड़कें दरिया बन जाती हैं। स्विमिंग पूल बन जाती हैं। मौत का ट्रैप बन जाती हैं। क्या पता पानी के नीचे कोई मेनहोल खुला हो जिसमें राह चलता शख्स समा जाए। क्या पता पानी के भीतर तारों के मकड़जाल से निकलकर छिपा हुआ कोई तार मौत बनकर इंतजार कर रहा हो। कुछ भी हो सकता है। हो सकता क्या है, हो रहा है।
आखिर जरा सी बारिश में हमारे शहर घंटों तक तालाब में क्यों तब्दील हो जाते हैं? इसके लिए दोषी सरकारें तो हैं ही, हम भी कम नहीं हैं। अतिक्रमण की वजह से नालियां तक पाट दी जाती हैं। चोक कर दी जाती हैं। बढ़ते शहरीकरण की अंधी दौड़ में कुकुरमुत्तों की तरह नई-नई अवैध कॉलोनियां उग जाती हैं। अनियमित कॉलोनियां। जहां बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। अवैध कॉलोनियां बसती भी तो ऐसे हैं। न सड़क, न नाली। वोट बैंक की वजह से सियासी चुप्पी और नौकरशाही के करप्शन या फिर लापरवाही की वजह से ऐसी कॉलोनियां उगती ही जाती हैं।
दुनिया की बड़ी ताकतों में शुमार होने का दम भरने वाला देश अपने शहरों में प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम तक नहीं बना पा रहा। शहरों से पानी ड्रेनेज लाइन के जरिये नदियों तक छोड़ा जाता है। लेकिन आम तौर पर ड्रेनेज सिस्टम ब्लॉक रहते हैं। मॉनसून से पहले गाद नहीं निकलता। डिसिल्टिंग के नाम पर करोड़ों के वारे-न्यारे हो जाते हैं लेकिन अक्सर काम सिर्फ कागजों में होता है। बारिश के पानी की निकासी के लिए बनने वालीं स्टॉर्म वॉटर ड्रेन मिट्टी, कूड़े और कचरे से चोक रहती हैं। ऊपर से स्टॉर्म वॉटर ड्रेन से ही सीवेज लाइन को भी कनेक्ट कर दिया जाता है, इससे समस्या और बढ़ती है। भारत में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। शहरों पर लोड बढ़ रहा लेकिन उसके इन्फ्रास्ट्रक्चर उस लोड को सहने लायक नहीं रहते। इन्हीं सबका नतीजा है जरा सी बारिश से सड़कों पर सैलाब और उनमें दम तोड़तीं जिंदगियां। आखिर कब जागेंगे हम? एक देश के तौर पर। एक समाज के तौर पर। एक व्यक्ति के तौर पर। आखिर कब जागेंगे हम?